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घोड़ों की हिनहिनाहट से गुलजार हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला

वैशाली। हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले का घोड़ा बाजार घोड़ों की हिनहिनाहट से गुलजार हो रहा है। एक तरफ जहां

By Edited By: Published: Mon, 23 Nov 2015 08:52 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2015 08:52 PM (IST)
घोड़ों की हिनहिनाहट से गुलजार हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला

वैशाली। हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले का घोड़ा बाजार घोड़ों की हिनहिनाहट से गुलजार हो रहा है। एक तरफ जहां गाय, बैल, और भैंस आदि पशुओं की आवक में निरंतर कमी होती जा रही है, वहीं घोड़ा बाजार अपनी गौरव गाथा के साथ दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। कहते हैं कि कभी मुगल शासक औरंगजेब तथा सन् 1857 के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर कुवंर ¨सह ने भी इसी मेले से घोड़े की खरीदारी की थी। घोड़ों में किसी घोड़े का नाम महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक रखा गया है तो किसी ने अपने घोड़े का नाम पवन और तूफान रखा हुआ है। मेला घूमने आए विदेशी पर्यटकों के लिए यह बाजार खास होता है। खरीदारी से पूर्व जब ग्राहक घोड़े की चाल देखने के लिए इसे दौड़ाता है, तब बड़े भू-भाग में फैले इस बाजार का ²श्य देखते ही बनता है। बीच में अपने सवार को लिए मस्तानी चाल में सरपट दौड़ता घोड़ा और अगल-बगल आश्चर्य से देखती दर्शकों की भीड़। इसी में अमेरिका, जापान, यूके, ब्राजील, इंडानेशिया, कनाडा, डेनमार्क आदि देशों से आए सैलानियों की फटाफट चलते कैमरे का अछ्वुत नजारा इन सैलानियों को देखकर शह सवार भी अपने घोड़े की अनेक कलाओं को प्रदर्शित करते हुए गर्व का अनुभव करता है। कभी शह सवार घोड़ों को दौ पैरों पर खड़ा कर देता है तो कभी स्वयं तेज रफ्तार दौड़ते घोड़े की पीठ पर खड़ा होकर काफी दूर निकल जाता है। एक नहीं ऐसे अनेक घोड़ों की कलाबाजियों से रोज इस बाजार की रौनक बढ़ती चली जाती है। इसमें राजस्थानी, मुल्तानी और इरानी तथा अफगानी नस्ल के भी अनेक घोड़े लाए जाते हैं। यही नहीं दैनिक उपयोग में लाए जाने वाले घोड़े की अनेक नस्ल भी इस बाजार में उपलब्ध हैं। बड़े और मस्त घोड़ों के अलावा मामूली तथा छोटे नस्ल के भी सैकड़ों घोड़े इस बाजार में मौजूद होते हैं। कुछ घोड़े ऐसे आते हैं कि देश के विभिन्न घोड़ा दौड़ में अव्वल स्थान प्राप्त किए हुए होते हैं। बाजार में एक तरफ जहां राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद के घोड़े भी जाए जा चुके हैं, वहीं कई वर्षों से पूरे तामझाम के साथ बाहुबली विधायक अनंत ¨सह का भी घोड़ा आता है। गत वर्ष पूर्व मंत्री नरेंद्र ¨सह का भी घोड़ा यहां आकर्षण के केंद्र में भी रह चुका है। वैसे ही राज्य के अनेक शौकिया घोड़ा पालकों द्वारा यहां बिक्री के लिए नहीं बल्कि प्रदर्शन के लिए अपना घोड़ा लाया जाता है। जरूरत है, सरकारी स्तर तथा मेला आयोजकों के अवसर पर मेले में पशु पालकों एवं घोड़ों को सुविधा मुहैया कराए जाने की। सुविधा मुहैया होते ही न केवल इस बाजार का आर्थिक पक्ष सु²ढ़ होगा बल्कि बड़ी संख्या में आए घोड़ों का पड़ाव भी लंबे समय तक होगा।

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