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आवारा कुत्तों के आतंक, अस्पताल में नहीं दी जा रही एंटी रैबिज सूई

सोनपुर प्रखंड एवं आस-पास के क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या ने जहां एक तरफ आम लोगों का जीना दूभर किया हुआ है वहीं इन कुत्तों के काटने से जख्मी लोग एंटी-रैबीज इंजेक्शन लगवाने को अनुमंडल क्षेत्र स्थित सरकारी अस्पतालों का चक्कर काटने को विवश हैं।

By Edited By: Published: Thu, 08 Dec 2016 09:37 PM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2016 09:37 PM (IST)
आवारा कुत्तों के आतंक, अस्पताल में नहीं दी जा रही एंटी रैबिज सूई

वैशाली। सोनपुर प्रखंड एवं आस-पास के क्षेत्रों में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या ने जहां एक तरफ आम लोगों का जीना दूभर किया हुआ है वहीं इन कुत्तों के काटने से जख्मी लोग एंटी-रैबीज इंजेक्शन लगवाने को अनुमंडल क्षेत्र स्थित सरकारी अस्पतालों का चक्कर काटने को विवश हैं। इस क्षेत्र की सड़कों पर बड़ी संख्या में खुलेआम इधर-उधर भटक रहे इन आवारा कुत्तों के काटने से जख्मी हुए आम लोग जब एंटी-रैबीज इंजेक्शन लेने के लिए सरकार संचालित प्रखंड एवं अनुमंडलीय अस्पतालों में पहुंचते हैं तो उनके जख्मों का उपचार करने की बजाए चिकित्सक उसे यह कह कर बैरंग वापस लौटा दिया करते हैं कि वे अगले 11 दिनों तक उस कुत्ते पर नजर रखें, जिसने उसे काटा है। इन 11 दिनों में यदि वह कुत्ता अपने अंदर की रैबीज के इंफेक्शन से खुद ही मर जाता है, तभी यह बात साबित होगी कि जिस कुत्ते ने उसे काटा है। उसके रैबीज से आदमी के प्रभावित होने की संभावना है और तभी उसे एंटी-रैबीज इंजेक्शन दिया जा सकता है।

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चिकित्सकों के दिए इस बेतुके तर्क को सुनने के बाद भी कुत्ता काटने से पीड़ित हुआ व्यक्ति यदि एंटी-रैबीज इंजेक्शन लगाने की गुहार लगाता है तो चिकित्सक उसे यह कहकर यूं ही लौटा देते हैं कि इस अस्पताल में कुत्ता काटने का एंटी-रैबीज इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है।पीड़ित व्यक्ति स्वयं ही खुले बाजार से एंटी-रैबीज इंजेक्शन खरीद लगवा ले। इसके बाद जब पीड़ित व्यक्ति अस्पताल में एंटी-रैबीज इंजेक्शन न होने की बात की सत्यता जानने हेतु अस्पताल परिसर स्थित दवा भंडार गृह जाता है तो उसे भंडार गृह में ताला लगा दिखाई देता है और जब इस भंडार गृह का प्रभार संभाल रहे कर्मी की खोजबीन की जाती है तो वह अपने ड्यूटी से गायब मिलता है। अंतत: थक-हार कर कुत्ता काटने से डरा हुआ व्यक्ति एंटी-रैबीज इंजेक्शन खरीदने बाजार के लिए निकल जाता है और महंगे दामों पर उसे खरीद किसी झोला-छाप गवंई चिकित्सक के यहां जाकर उसे लगवा कर स्वयं को संतुष्ट कर लेता है। आम आदमी यदि इस बात की सत्यता परखना चाहें तो वह सोनपुर स्थित रेफरल अस्पताल का एक चक्कर लगा लें। जहां उन्हें अस्पताल के मुख्य काउंटर के ठीक उपर दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में यह लिखा मिल जाएगा कि, इस अस्पताल में एंटी-रैबीज के इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है।


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