जन्नत के करीब लाता है माह-ए-रमजान का रोजा
वैशाली। माह-ए-रमजान भाईचारगी का महीना है। इस महीने में मुसलमान की रोजी-रोटी में बढ़ोत्तरी कर दी ज
वैशाली। माह-ए-रमजान भाईचारगी का महीना है। इस महीने में मुसलमान की रोजी-रोटी में बढ़ोत्तरी कर दी जाती है। जिसने किसी रोजेदार को इफ्तार कराया तो उसकी खताएं माफ कर दी जाती है। जहन्नम से आजादी मिल जाती है। रोजा इफ्तार कराने वालों को रोजा रखने के बराबर सबाब मिलता है और रोजा खोलने वालों के सबाब में कमी भी नहीं आती है। एक हदीस में बयां किया गया है कि खुजूर से रोजा खोला करो क्योंकि उसमे बरकत है। अगर खुजूर नहीं मिले तो पानी से इफ्तार कर लो इस लिए कि यह पाक और पवित्र है।
रमजान का रोजा अन्य दिनों के रोजों पर अधिक सबाब रखता है। अगर कोई रमजान का एक रोजा भी जानबूझ कर छोड़ दे और इसके बदले रमजान के बाद पूरा साल भी रोजा रखे तो दोनों का सबाब बराबर नहीं होगा। रमजान का रोजा जन्नत से करीब और जहन्नम से दूर करता है। हजरत अब्बदुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु तआला से रिवायत है कि रसूले खुदा ने फरमाया रोजा और कुरआन दोनों क्यामत में शिफाअत (पैरवी) करेगें। रोजा कहेगा मेरी वजह से इस बंदे ने खाना-पीना छोड़ा, मेरी सिफारिश इसके हक में कुबूल हो। कुरआन कहेगा मेरी वजह से इस बंदे ने रात की मीठी-मीठी नींद को छोड़ा, इसके हक में मेरी शिफाअत (पैरवी) कुबूल हो। अल्लाह तआला दोनो की सिफारिश कुबूल करेगा।
अगर एक रोजेदार कुरआन मे बयान किए गए तकवा वाला रोजा रख कुरआन की तिलावत करता रहा, रात मे बीस रिकआत की तरावीह की नमाज पढ़ता रहा, अपने को झूठ, गीबत, झगड़ा आदि से दूर रखा तो हजरत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहे वसल्लकम की हदीस है कि ऐसे बंदे को खुदा जन्नत के खास दरवाजे से प्रवेश कराएगा जिससे कोई और रोजेदार के अतिरिक्त दाखिल नहीं होगा। रोजेदार के प्रवेश करने के बाद वह दरवाजा बंद कर दिया जाएगा।