सोनपुर मेला : मैकदे झूमते पैमानों में होती हलचल
वैशाली। नशा शराब में होता तो नाचती बोतल.. मैकदे झूमते पैमानों में होती हलचल। फिल्म शराबी
वैशाली। नशा शराब में होता तो नाचती बोतल.. मैकदे झूमते पैमानों में होती हलचल। फिल्म शराबी के इन गीत की पंक्तियों से रूबरू होना हो, तो एशिया फेम सोनपुर मेला के महेश्वर चौक से गाय बाजार के बीच कभी रात की बेला में आइये। जैसे-जैसे रात अपने जवानी की ओर बढ़ती है, वैसे ही मयकसों के लड़खड़ाते कदमों से सोनपुर-हाजीपुर मुख्य मार्ग पर आहट देने लगती है यहां मेला और थियेटर को लेकर मद्यपान की दुकानें रात भर खुली रहती हैं। चाहे वह रात के 8 बजे का समय हो, या मध्य रात्रि के बाद 2 बजे का। यह बाजार मेले के दौरान हमेशा अपने-आप में मस्त रहता है। आस-पास के रेस्टोरेंट में थियेटर देखने के लिए आए युवा अपनी रातों को रंगीन बनाने के लिए यहां बैठकर पैमाने खाली करते रहते हैं। जब शरुर अपने शबाब की ओर बढ़ता है, तब इनके कदम भी थियेटरों से उठती मदमस्त धुनों की ओर रफ्ता-रफ्ता बढ़ता चला जाता है। थियेटर हॉल में नर्तकियों की अदाएं इनके नशे के शरुर को और बढ़ा देता है। आवाज आती है, गुलाबी-गुलाबी आंखों से पिला दे तो फिर पीने का नाम न लूं।
मेला में चल रहे थियेटरों का आलम ये है कि मेले में राजधानी पटना, छपरा, वैशाली तथा मुजफ्फरपुर आदि जिले के केवल वैसे युवा जो दिखने से छात्र लगते हैं, कई जत्थों में शाम ढ़लते ही मेले में पहुंचने लगते हैं। इंतजार होता है टिकट काउंटर खुलने का और शो शुरू होने का। इधर दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए थियेटरों की लगभग सभी नर्तकियों को एक साथ मंच पर गाने की धुन पर थिरकते हुए मंजर को बाहरी दर्शकों को दिखाने के लिए थियेटर का मुख्य पर्दा हटा दिया जाता है। मेले की हृदयस्थली नखास में इस बार तीन थियेटर लगाए गए हैं। जैसे ही अंदर चल रहे कार्यक्रमों को दिखाने के लिए थियेटरों के पर्दे हटते हैं कि यहां सड़कों से गुजर रही भीड़ थोड़ी देकर के ठमक जाती है। जो थियेटर के आशिक हैं, वे टिकट खिड़की की ओर बढ़ते हैं। शेष लोग बाहर से ही इस नजारे को देख मेले की भीड़ में गुम हो जाते हैं। रात्रि के 9 बजे के बाद जब मेले का लाउडस्पीकरों के सारे शोर थम जाते हैं, उसके बाद शुरू होता है थियेटरों के पाश्चात्य धुन पर आधारित गानों का सिलसिला। इन सभी थियेटरों के साउंड बाक्स और लाउड स्पीकरों से निकल रही मिलीजुली आवाज मिलकर एक अलग ही संगीत का नजारा उत्पन्न करती है। यह क्रम भोर तक चलता रहता है। उधर सोनपुर-हाजीपुर मुख्य मार्ग के अलावा बाजार भी विशेषकर नशा का आनंद लेने वालों के लिए रात भर जवान रहता है। अब सामान्य दर्शक यह तय नहीं कर पाते कि थियेटर देखने के लिए क्या नशा का सेवन करना जरूरी है अथवा थियेटर अपने आप में ही एक नशा है ? हालांकि इस बार किसी थियेटर के बाहरी ²श्य को देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य वर्षों की तुलना में दर्शकों की भीड़ में इस बार अभी तक अप्रत्याशित रूप से कम नजर आ रही है। थियेटरों में दिल्ली, लखनऊ व कानपुर से लेकर अन्य कई स्थानों के कलाकारों को इस बार थियेटर संचालकों ने बुलाया है।