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पांचवें दिन भी सोनपुर के बैजलपुर में देखा गया तेंदुआ

संवाद सहयोगी, सोनपुर : शनिवार को पांचवें दिन भी सोनपुर के बैजलपुर में तेंदुआ को देखा गया। वन विभाग द

By Edited By: Published: Sat, 31 Jan 2015 09:31 PM (IST)Updated: Sat, 31 Jan 2015 09:31 PM (IST)
पांचवें दिन भी सोनपुर के बैजलपुर में देखा गया तेंदुआ

संवाद सहयोगी, सोनपुर : शनिवार को पांचवें दिन भी सोनपुर के बैजलपुर में तेंदुआ को देखा गया। वन विभाग द्वारा किए जा रहे नित्य नये प्रयोगों के बाद भी तेंदुआ उनकी पकड़ से बाहर है। तेंदुआ को काबू में करने के लिए रोजाना ही उसके लायक व्यंजन का इंतजाम किया जा रहा है पर चालाक तेंदुआ वन अधिकारियों की पकड़ में नहीं आ रहा है।

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शुक्रवार की रात उसे पकड़ने के लिए लगाये गये एक केज में मुर्गा और दूसरे केज में लावारिस कुत्ते को बांधा गया था। रात में मुर्गे के केज के पास तेंदुआ आया और कई चक्कर लगाकर फिर घने झाडि़यों में छिप गया। अभियान में लगे रेंजर शिव कुमार राम ने इस संबंध में बताया कि शुक्रवार की रात उसके पंजे के ताजा निशान केज के चारों तरफ पाए गए। रोजना आजमाए जा रहे प्रयोगों की कड़ी में शनिवार को एक नया प्रयोग किया गया। बकरे का ताजा गोस्त दोनों केजों में रखा गया है। इसके आसपास बकरे के रक्त का छिड़काव किया गया है। मकसद यह कि गंध सूंघकर तेंदुआ वहां पहुंचेगा। इसके साथ ही एक और तरकीब आजमाया जा रहा है। केज को गंडक नदी के किनारे ढलान पर उतारकर चारों तरफ से बालू से ढ़क कर रखा गया है ताकि तेदुओं को यह आभास नहीं हो वह जमीन के बजाय केज में पहुंच जाए। केज को इस तरह रखा गया है जरा सी हरकत होते ही इसका शटर गिर जायेगा। विभाग को यह अनुमान है कि संभवत: इस प्रयोग के जाल में वह पकड़ा जायेगा। शनिवार को कई लोगों ने उस तेंदुओं को सरसों के खेत में बैठा हुआ देखा। दूसरी ओर पांच दिनों से इस तेंदुए के भय के कारण न केवल बैजलपुर बल्कि आसपास के कई गांवों के लोग दहशत में हैं। ग्रामीणों में इसे लेकर भय के साथ-साथ विभाग के प्रति आक्रोश भी पनप रहा है। लोग आतंकित है न जाने कब, किधर से तेंदुआ निकलकर उन पर हमला कर दे। अक्सर वह गंडक नदी तट के आसपास कभी बांसबाड़ी तो कभी खजूरबन्ना तो कभी सरसों के खेत में दिखाई पड़ जा रहा है। जरा सा शोरगुल होते ही वह अपना स्थान बदल लेता है। दो-दो केज लगाये गये हैं। वहां के अनुभवी लोगों का कहना है कि बाल्मीकीनगर टाइगर प्रोजेक्ट रिजर्व से रास्ता भटककर अक्सर इस क्षेत्र में कभी तेंदुआ कभी चीता तो कभी बाघ आ जाता है। इसमें गंडक नदी का तटवर्ती सुनसान इलाका और घनी झाड़ियां उसे सुरक्षित यहां तक लाने में सहायक सिद्ध होती है। इधर हिंसक वन प्राणियों के लिए इस क्षेत्र में बहुतायत संख्या में शिकार मौजूद है। यह क्षेत्र ऐसा है जहां आनंदपुर से कल्याणपुर, शिकारपुर, टरमा मगरपाल तथा खुशहालपुर होते हल्दिया चौंर के बहुत बड़े क्षेत्र में नीलगायों और बनैले सुअरों के रूप में उन हिंसक पशुओं को आहार मिल जाता है। इसके अलावा झाड़ियों में खरगोश तथा छोटे-छोटे कई अन्य वन प्राणी हैं जो बाघ, चीता और तेंदुआ का मुफीद आहार है। हालांकि क्षेत्र में छुपे उक्त तेंदुए द्वारा किसी भी पालतू जानवर की शिकार की सूचना नहीं मिली है। कहते हैं कि एक बार भोजन ग्रहण कर लेने के बाद तेंदुए को लगभग एक सप्ताह तक उसके खाने की जरूरत नहीं होती। गंडक नदी का यह तटवर्ती इलाका इसके पहले भी तेंदुआ और बाघ को लेकर सुर्खियों में रहा है। 2 नवम्बर 11 को यहां के आनंदपुर में हमलाकर एक तेंदुआ ने तीन लोगों को जख्मी कर दिया था। बाद में वन विभाग के लाख प्रयासके बावजूद लोगों की भीड़ ने खदेड़कर उस तेंदुआ को मार डाला था। उसके बाद खुशहालपुर में पहुंचे बाघ ने हमलाकर सारण के डीएफओ डा. के गणेश कुमार पर आक्रमण कर दिया था। उन्हें जख्मी करने के बाद वन विभाग के भारी कवायद के बाद भी बाघ भागने में कामयाब रहा। इसी बीच लगातार कई बार इस इलाके में दुर्लभ प्रजाति के हिरण भी पाये गये। ग्रामीणों ने पकड़कर वन विभाग के हवाले किया। अभी भी यहां का इलाका घने जंगलों से अच्छादित है। शिकार के बाद हिंसक वन प्राणियों के पीने के लिए बगल में ही कलकल बहते गंडक नदी का जल प्रचुर पात्रा में उपलब्ध है। पांच दिनों से उक्त तेंदुओं को नहीं पकड़े जाने से लोगों में विभाग के प्रति भारी नाराजगी है।


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