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दम तोड़ रही नलकूप शताब्दी योजना

सुपौल। कृषि कार्यो में सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार द्वारा चलाई गई निजी नलक

By Edited By: Published: Wed, 27 Jul 2016 05:54 PM (IST)Updated: Wed, 27 Jul 2016 05:54 PM (IST)
दम तोड़ रही नलकूप शताब्दी योजना

सुपौल। कृषि कार्यो में सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार द्वारा चलाई गई निजी नलकूप शताब्दी सिंचाई योजना जिले में दम तोड़ती नजर आ रही है। लघु सिंचाई विभाग के मनमानी रवैये के कारण इस योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। एक तरफ मौसम के साथ-साथ सबकुछ दांव पर लगा देने वाले किसान अपनी राशि लगा कर अपने खेतों में बोरिंग गड़वाते हैं। सरकार द्वारा दी जाने वाली साधारण अनुदान की राशि के लिए विभाग की चिरौरियां करते-करते उनकी एड़ियां घिस जाती है और थक-हार कर किसान अपने घर बैठ जाते हैं।

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क्या है योजना

निजी नलकूप शताब्दी सिंचाई योजना के तहत किसान अपनी राशि लगा कर अपने खेतों में बोरिंग गड़वाते हैं। किसानों को बोरिंग गाड़ने के उपरांत निर्धारित अनुदान की राशि देने का प्रावधान है। इसके लिए किसानों को कम से कम एक एकड़ जमीन का प्रावधान है। इसके लिए किसानों को कम से कम एक एकड़ जमीन होनी चाहिए। गड़ाए गए बोरिंग के भौतिक सत्यापन उपरांत किसानों को आरटीजीएस के माध्यम से खाते में राशि देनी है। परन्तु भौतिक सत्यापन के नाम पर विभाग की आनाकानी करना किसानों के लिए काफी महंगा पड़ जाता है। थक हार कर किसान अपने घर बैठ जाते हैं। इसका इस बात से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि गत वित्तिय वर्ष 2014-15 में इस योजना के तहत करीब डेढ़ सौ आवेदन किसानों से प्राप्त हुआ। जिसमें महज 13 किसानों का ही भौतिक सत्यापन संभव हो पाया। शेष आवेदन का क्या हुआ इसका जवाब देने से कर्मी समेत अधिकारी भी चुप रहना ही मुनासिब समझ रहे हैं।

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कहते हैं किसान

पिपरा प्रखंड के निर्मली निवासी किसान भूपेन्द्र साह, रतौली के भोला सिंह, पथरा उत्तर के शिवजी मंडल ने कहा कि वे लोग अपने निजी जमीन में पिछले रबी फसल में ही बोरिंग करवाने उपरांत विभाग ने आवेदन सहित सभी आवश्यक दस्तावेज लगाकर कार्यालय को समर्पित किया। जहां बोला गया कि बोरिंग सत्यापन उपरांत अनुदान राशि मिलेगी। लेकिन आज तक न कोई सत्यापन को पहुंचा और न अनुदान ही मिल पाया। इन लोगों ने बताया कि शुरूआत में एक-दो दिन कार्यालय भी गया। परन्तु आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला।

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''कर्मियों की कमी कहीं न कहीं योजना की सफलता में बाधक बन रही है। बावजूद यह प्रयास रहता है कि उपलब्ध संसाधन से योजना को सफल बनाया जाए।

-महेन्द्र प्रसाद हिमांशु

कार्यपालक अभियंता

लघु सिंचाई


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