विकास की बयार से पीछे छूट गया भुतही पुल
सुपौल। सूबे के साथ-साथ जिले में बह रही विकास की बयार से वंचित रह गया पिपरा प्रखंड स्थित रत
सुपौल। सूबे के साथ-साथ जिले में बह रही विकास की बयार से वंचित रह गया पिपरा प्रखंड स्थित रतौली पंचायत से निकलने वाली भुतही नदी पर पुल। वर्षो से इस नदी पर अर्द्धनिर्मित पुल रहने के कारण लगभग 25 हजार आबादी को नित्य कठिनाईयों का सामना जहां करना पड़ता है। वहीं हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे के लिए यह अभिशाप बना हुआ है। नदी के दूसरे छोर पर बसी आबादी के बच्चे 12 माह के बदले महज 8 माह ही विद्यालय पहुंच पाते हैं।
- पंचायत केभूगोल को प्रभावित करती है नदी
पंचायत के बीचों-बीच से गुजरने वाली यह नदी पंचायत को दो भागों में विभक्त करती है। नदी के पूरब तट पर जरौली, झरका, कजही, चकला तथा पश्चिमी तट पर रतौली, बैरिया, ललमैनिया समेत क्षेत्र का इकलौता उच्च विद्यालय स्थित है। वैसे तो नदी में सालों भर पानी रहता है। परन्तु वर्षा के तीन महीने में इसकी उफान चरम पर होती है। परिणाम होता है कि पूर्वी तट से पश्चिमी तट की दूरी महज 5 सौ मीटर के बदले 8 से 9 किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ती है।
- 12 माह की पढ़ाई 8 माह में ही करनी पड़ती है पूरी
वर्षा के दिनों में पूर्वी तट से बच्चों का विद्यालय आना जान से जोखिम भरा होता है। परिणाम होता है कि 12 माह की पढ़ाई 8 माह में ही बच्चे को पूरी करनी पड़ती है।
- डेढ़ दशक पूर्व शुरू हुआ था पुल निर्माण कार्य
सघन जवाहर रोजगार योजना के अंतर्गत 1998 ई. में 7 लाख 72 हजार 4 सौ रूपये की लागत से 3 स्पेन का आरसीसी पुल निर्माण की स्वीकृति प्राप्त हुई थी। इसके तहत योजना संख्या 6/98 के द्वारा निर्माण कार्य भी शुरू हुआ और 3 लाख 55 हजार 2 सौ 57 रूपये की भुगतान भी किया गया। परन्तु स्थानीय राजनीति एवं पुल की गुणवता व मॉडल के कारण कार्य बीच में रोक दिया गया। मॉडल पर स्थानीय लोगों ने सवालिया निशान उठाते हुए कहा था कि नदी की जितनी चौड़ाई है उस हिसाब से पुल पांच स्पेन का बनना चाहिए। तीन स्पेन का पुल नदी के गोद में ही समाया रहेगा और लोगों की स्थिति जस की तस है। लोगों के आरोप में मंत्रीमंडल निगरानी की जांच पत्रांक 57/98 तथा बिहार लोक आयुक्त 1 लोक पथ 10/98 के तहत संयुक्त जांच की गई। जिसमें तत्कालीन कार्यपालक अभियंता, कनीय अभियंता को गलत प्राक्कलन तैयार करने का उत्तरदायी बताते हुए विभाग के सचिव को पत्र लिखा गया। 28.1.2007 को विभाग के सचिव ने कार्य पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी, जो आज तक बंद है। और लोगों की समस्या जस की तस बनी हुई है।