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..नहरों पर ढूंढने से भी नहीं मिलते पेड़

सुपौल। पर्यावरण प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन की चिंता के बीच खड़े हरे भरे पेड़ों पर इन दिनों कु

By Edited By: Published: Thu, 30 Jun 2016 03:00 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2016 03:00 AM (IST)
..नहरों पर ढूंढने से भी नहीं मिलते पेड़

सुपौल। पर्यावरण प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन की चिंता के बीच खड़े हरे भरे पेड़ों पर इन दिनों कुल्हाड़ी का राज है। कस्बाई व ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग हरे भरे पेड़ों की कटाई के लिए बने नियामक से अनभिज्ञ हैं। जरूरतों के मुताबिक व्यवसायियों से तोल मोल कर पेड़ों पर कुल्हाड़ी का ऐसा साम्राज्य कायम है जिसकी कहानी आरा मिल से लेकर प्लाई मिल तक पहुंच कर पूरी हो रही है। ऐसा नहीं है कि पर्यावरण प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन के लिए पेड़ों को संजीवनी मान कर इसे बचाने की कवायद हाल में हुई हो। दो दशक पूर्व नहरों व नदियों के तटबंधों पर सरकारी व्यय से लाखों लाख इमारती पेड़ लगाए गये। जिसमें आज के समय के लिए बहुमूल्य शीशम के पेड़ भी शामिल थे। पौध पेड़ में तब्दील हो जवानी पर आया ही था कि ऐसा कुचक्र का दौर चला मोटे मोटे हरे भरे पेड़ स्थल से गायब होने लगे। नहरों पर लकड़ी माफियाओं का साम्राज्य कायम हो गया और बाबुओं से लेकर व्यवसायी तक बिन पानी तटबंध पर ही नहाने लगे। बाबुओं के घर सजे तो व्यवसायियों की तिजोरी। इस बीच शोर मचता रहा और जिम्मेवार विभाग कागजों पर ही जिंदा पेड़ों में घुन लगाने लगे। सेटिंग गेटिंग का ऐसा खेल चला कि आम लोगों के आखों के सामने से हजारों पेड़ गायब हो गये और नहरों का तटबंध देखते ही देखते नंगा हो गया। दिन रात पेड़ गायब करने के खेल के बीच चंद वर्ष पूर्व तक पेड़ों के निशान थे जिसे करपरदारों ने जमींदोज कर

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दिया और सरकार के कवायद को उनके अपने ही ठेंगा दिखा गये। जारी खेल के बीच गाव देहातों में लकड़ी व्यवसायियों का बड़ा तबका सक्रिय हुआ और पेड़ खपाने के लिए दर्जनों अवैध आरा मिल संचालित हुए । नतीजा है कि आज ढूंढने से भी नहरों पर पेड़ नजर नहीं आते। नहरों से सरकारी पेड़ों के गायब होने के बाद ऐसे व्यवसायियों का समूह आज भी धंधे पर लगे हैं जिनका कारोबार निजी हरे भरे पेड़ों से चल रहा है। बिना

अनुज्ञप्ति आरा मिलों का संचालन भी हो रहा है। कारोबार में पेड़ों की परिपक्वता और विभागीय नियामक को नजरअंदाज करने का सिलसिला आज भी जारी है। मुख्यालय में अवैध लकड़ी डिपो का संचालन हो रहा है जहा से काष्ठ दुकानों तक लकड़ियों की सप्लाई निर्वाध रूप से होती है। विराम है तो बस रोकने टोकने के सिलसिले पर। चोरी छिपे कौन कहे मुख्य मार्ग से बेरोकटोक वाहनों पर लाद आरा मिल व प्लाई मिलों तक हरे भरे पेड़ों को काट पहुंचाया जा रहा है। इतना ही नहीं योजना संचालन की राह में आने वाले पेड़ धराशायी होते हैं और फिर सब कुछ दुरूस्त हो जाता है। गौर करने वाली बात है कि एक ओर जहा मनरेगा से जोड़कर वुक्षारोपण पर बल दिया जा रहा है व राजनीतिक दल तक इसे मुहिम में शामिल कर चुका है। वहीं दूसरी ओर हरे भरे पेड़ों को संरक्षित करने की दिशा में ठोस पहल नहीं हो पा रही है।


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