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वित्तीय अनियमितता से स्वास्थ्य समिति का पुराना है रिश्ता

सुपौल। दवा घोटाले को लेकर भले ही अभी फिर गहन जांच पड़ताल की जा रही है। दो साल से अि

By Edited By: Published: Sat, 27 Aug 2016 04:36 PM (IST)Updated: Sat, 27 Aug 2016 04:36 PM (IST)
वित्तीय अनियमितता से स्वास्थ्य समिति का पुराना है रिश्ता

सुपौल। दवा घोटाले को लेकर भले ही अभी फिर गहन जांच पड़ताल की जा रही है। दो साल से अधिक समय से बंद पड़े स्टोर का ताला तोड़ कर बर्बाद हुई दवाओं की इन्वेंटरी तैयार कराई जा रही है। संपूर्ण जांच के बाद भले जांच दल जिस नतीजे पर पहुंचे लेकिन वित्तीय अनियमितता से जिला स्वास्थ्य समिति अथवा विभाग का पुराना रिश्ता रहा है। जिला स्वास्थ्य समिति सुपौल द्वारा दवा खरीद से लेकर जननी बाल सुरक्षा, बच्चों के स्वास्थ्य जांच, परिवार नियोजन, लाभार्थियों को प्रोत्साहन राशि भुगतान, पल्स पोलियो कार्यक्रम, उपकरण एवं सामग्री क्रय सहित अन्य मदों में 44 करोड़ रुपये से अधिक की अनियमित निकासी का मामला पूर्व में भी उजागर हुआ था। मामले का खुलासा आरटीआई कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सिविल सर्जन सह सचिव जिला स्वास्थ्य समिति एवं जांच पदाधिकारी अपर समाहर्ता से प्राप्त सूचना के आधार पर किया गया।

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अपर समाहर्ता सह जांच पदाधिकारी तथा सिविल सर्जन सह सचिव जिला स्वास्थ्य समिति सुपौल द्वारा विद्यापुरी सुपौल निवासी अनिल कुमार सिंह को भेजे गए सूचना से स्पष्ट हुआ कि राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार पटना द्वारा जिला स्वास्थ्य समिति की जांच आंतरिक अंकेक्षण दल द्वारा कराई गई। जिसमें 44 करोड़ से अधिक वित्तिय अनियमितता की पुष्टि हुई। बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सचिव सह कार्यपालक निदेशक संजय कुमार भाप्रसे द्वारा 14 मई 2013 को जिला पदाधिकारी सुपौल को पत्र लिख कर अंकेक्षण दल द्वारा पाई गई अनियमितता जिसमें त्रिवेणीगंज अस्पताल में 32 लाख 80 हजार रुपये का जननी बाल सुरक्षा योजना में अनियमित भुगतान, जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा बच्चों के स्वास्थ्य जांच कार्यक्रम में 24 लाख 24 हजार रुपये का अनियमित भुगतान, परिवार नियोजन में 9 लाख 52 हजार रुपये का अवैध भुगतान, दवा क्रय में 8 लाख 98 हजार रूपये की वित्तिय अनियमितता, सिविल सर्जन को 30 लाख रूपये का अग्रिम, लंबित स्थायी अग्रिम 4 करोड़ 27 लाख 12 हजार, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 9 लाख 74 हजार 752 रुपये की गंभीर वित्तिय कृव्यवस्था, 44 करोड़ पांच लाख 70 हजार रुपये का रोकड़ पंजी का संधारण नहीं किया जाना, 3 करोड़ 44 लाख 86 हजार रुपये का विपत्र जमा नहीं किया जाना एवं 1 करोड़ 46 लाख 52 हजार 19 रुपया के रोकड़ बही को निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी द्वारा हस्ताक्षर नहीं किया जाना आदि शामिल है। अनियमितताओं की संपूर्णजांच कराकर संबंधित दोषी पदाधिकारी एवं कर्मचारी के विरुद्ध विधि सम्मत कार्रवाई करने का आदेश दिया गया। जिला पदाधिकारी द्वारा अपर समाहर्ता की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच टीम का गठन किया गया। जांच टीम ने भी जिला स्वास्थ्य समिति में करोड़ों रूपये की वित्तिय अनियमितता को सही पाया और कहा कि विभागीय पदाधिकारी एवं कर्मचारियों ने स्वेच्छाचारिता से कार्य किया है। जिला पदाधिकारी द्वारा दोषी पर कार्रवाई के बजाय सिविल सर्जन को एक पत्र लिखा गया। वहीं सिविल सर्जन सह सचिव स्वास्थ्य समिति ने एक कदम आगे बढ़ कर दोषी का नाम बताने के बजाय आरोप को विलोपित करने के लिए जिला पदाधिकारी को पत्र लिख डाला। डीएम ने सिविल सर्जन के पत्र को ही कार्यपालक पदाधिकारी राज्य स्वास्थ्य समिति पटना के पास भेज दिया है, जहां से कार्रवाई करने का आदेश दिया गया था। लेकिन, विडंबना देखिये कि करोड़ों रुपये के अनियमितता का यह मामला ठंडा पड़ गया।


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