मानसून की आहट, कोसी में घबराहट
सुपौल। जून का महीना जब ताल-तलैया पूरी तरह सूख गये होते हैं, सूर्यदेव की तपिश में वसुंधरा
सुपौल। जून का महीना जब ताल-तलैया पूरी तरह सूख गये होते हैं, सूर्यदेव की तपिश में वसुंधरा भी साथ निभा रही होती है, वैसे समय में मानसून की आहट मात्र से कोसी ने अंगड़ाई लेनी शुरू कर दी है। सूखती धाराओं ने जहां कलरव करना शुरू कर दिया है, वहीं तटबंध से सटी बहती एक धारा ने व्यवस्था को आंख दिखानी शुरू कर दी है। तटबंध के पांच विन्दुओं पर कोसी ने दवाब बनाना शुरू किया, हालांकि विभाग ने पूरी तत्परता दिखाई और समय रहते स्थिति पर नियंत्रण पा लिया गया। मानसून के प्रवेश के साथ ही नदी में पानी का बढ़ना शुरू हो गया और तटबंध के बीच के गांवों में पानी घुसने लगा। सरायगढ़ प्रखंड क्षेत्र के सनपतहा डीह, औरही पूरब, बलथरवा पलार, बनैनिया पलार, कटैया, भुलिया, गौरीपट्टी पलार, सियानी, ढोली, कटैया, बाजदारी, तकिया, उगरीपट्टी, लौकाहा पलार, कोढली पलार, गिरधारी, गढि़या उत्तर सहित अन्य गाव हमेशा निशाने पर होते हैं।
पूर्वी कोसी तटबंध के 0 किमी से गाईड बांध तक कोसी की धारा तटबंध के सटे समानांतर बह रही है। हालांकि विभागीय आंकड़े में 0 किमी से 28 वें किमी तक इसे माना गया है। लेकिन विभाग मान रहा है कि इस बीच तटबंध से धारा की दूरी महज 13 मीटर से 150 मीटर तक है।
ऐसा नहीं कि इसबार ही ये तटबंध के करीब आई है। धारा बदलने को बदनाम कोसी 12 वर्ष पूर्व से ही पूरब की ओर आ चुकी है। इसी का नतीजा था कि 2008 में कोसी ने कुसहा में तटबंध को तोड़ दिया था और उन्मुक्त हो निकल पड़ी थी। कोसी ने बर्बादी की जो दास्तां लिखी उसे सोच आज भी दिल दहल उठता है।
हालांकि विभाग सहित प्रशासनिक महकमा पूरी तरह एलर्ट दिख रहा है। जिलाधिकारी ने तटबंध के कई विन्दुओं का निरीक्षण कर संबंधित अधिकारियों को चेतावनी देते समय से कार्य पूरा कर लेने की हिदायत दी है तथा तटबंध को पूरी तरह सुरक्षित बताया है।
- स्परों की हो रही अनदेखी
2008 में कुसहा में सीमा तोड़ पूरब रूख हुई कोसी को भले ही दक्षिण की ओर घुमाने में सफलता पा ली गई लेकिन अपनी प्रकृति के अनुरूप वह आज भी कई किमी तक पूर्वी तटबंध से सटे ही बह रही है। पिछले वर्ष भी 50 स्परों के नोज को छूती बह रही थी कोसी। सरायगढ़ के समीप हाइवे के काफी करीब है कोसी। इन जगहों पर स्परों की स्थिति है कि इसकी लंबाई व चौड़ाई दिनानुदिन घटती जा रही है, दूसरा कि इतनी दुर्दशा है इसकी कि कोसी की धारा को इसकी परवाह नहीं होती और वह तटबंध के करीब आ जाती है। कई स्पर तो अपना वजूद तलाशते नजर आ रहे हैं। जबकि बांध तकनीक के अनुसार आक्रमण से मोर्चा लेने के लिये स्परों का निर्माण किया जाता है। हालांकि बाढ़ नियंत्रण के नाम पर विभाग के पास हर वर्ष लंबा-चौड़ा आंकड़ा होता है।
- हमेशा बचाव में ही लगा होता पूरा सिस्टम
विडंबना कहिये कि कोसी जैसी आक्रामक नदी से हमेशा बचाव की मुद्रा में ही दिखता है विभाग। जब कोसी की धारा बांध के करीब आने लगती है तो परक्यूपाइन के माध्यम से उसे मोड़ने का प्रयास किया जाता है। तटबंधों पर सुरक्षात्मक उपाय किये जाते हैं। लेकिन कोसी की धारा ही मध्य से बहे या इसका स्थाई निदान हो इसके लिये कभी सार्थक प्रयास नहीं किया जा सका है। तटबंधों की सुरक्षा का ख्याल भी ऐन वक्त ही आया करता है।
- सुरसर का भी होता प्रकोप
प्रत्येक मानसून सत्र में सुरसर का प्रकोप इस कदर होता है कि उपजाउ भूमि तो निवाला बनती ही है। साथ ही कई बस्तिया भी जद में आ जाती है। इस समस्या से त्रिवेणीगंज अनुमंडल क्षेत्र के दर्जनों पंचायत प्रभावित हैं। नदी जिन जिन पंचायतों से होकर गुजरी है मानसून सत्र में किनारे की आबादी त्राहिमाम की स्थिति में होती है। छातापुर प्रखंड के उत्तरी छोर से लेकर त्रिवेणीगंज के कोरियापट्टी व तमकुलहा होकर निकली नदी हर वर्ष फसलों को नुकसान पहुंचाते हुए किनारे की उपजाउ भूमि में कटाव लगाती रही है। बरसात के समय किनारे की बड़ी आबादी विभीषिका झेलने को विवश होती है और जानोमाल की क्षति भी उठानी पड़ती है।