नियमित में नामांकन, कोचिंग पर भरोसा
सुपौल। आज के परिवेश में जहां शिक्षा की महत्ता बढ़ती जा रही है, वहीं सरकारी संस्थान के म
सुपौल। आज के परिवेश में जहां शिक्षा की महत्ता बढ़ती जा रही है, वहीं सरकारी संस्थान के महत्व घटते जा रहे हैं। एक फैशन सा चल पड़ा है या फिर कोई मजबूरी है इसका तो पता नहीं चल पाता लेकिन अक्सरहां देखने को मिल रहा है कि बच्चे नामांकन तो सरकारी विद्यालयों में करा रहे हैं लेकिन वहां की पढ़ाई पर उन्हें भरोसा नहीं रह पा रहा। और नतीजा है कि वे दूर दराज किसी नामी गिरामी संस्थान में कोचिंग किये जा रहे हैं। जब फार्म वगैरह भरने का वक्त आता है तो वे आते हैं और फिर परीक्षा में ही सम्मिलित होते हैं। ऐसा खासकर ग्यारहवीं और बारहवीं की कक्षा में हो रहा है। स्थिति ऐसी है जैसे उन सरकारी संस्थानों अथवा विभाग ने इसे व्यवस्था को मान्यता दे रखा हो। यहां किसी एटेन्डेंस की बात बाधक नहीं बनती है फार्म वगैरह भरने में। संस्थान को बस उसके कोटा भर का नामांकन हो जाना चाहिये।
- ट्यूशन पर पाबंदी एक बड़ी चुनौती
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षकों के ट्यूशन पढ़ाने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है। कैसे लागू होगी ये पाबंदी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। प्राइवेट ट्यूशन न एक बड़ा उद्योग हो चला है बल्कि छात्रों अभिभावकों का शोषण भी हो रहा है।
सुबह हुई नहीं कि शहर की सड़कों पर स्कूल व कॉलेज के बच्चों की चहलकदमी बढ़ जाती है। कोई साइकिल से तो कोई पैदल ही भागते नजर आते हैं। भले ही स्कूल-कॉलेज में बच्चों की उपस्थिति न दिखे किन्तु कोचिंग संस्थानों पर तो उनका जमावड़ा दिख ही जाता है।
शिक्षा के हो रहे व्यवसायीकरण पर सरकार की आंखे भी अब खुली है और सरकार ने बिहार कोचिंग संस्थान अधिनियम के तहत कोचिंग संस्थानों को अब निबंधन कराना आवश्यक कर दिया है। बावजूद बिना निबंधन के ही दर्जनों कोचिंग संस्थान जिला मुख्यालय में ही धड़ल्ले से चल रहे हैं। अब सवाल उठता है कि वही बच्चे स्कूल और कॉलेज जाना नहीं चाहते हैं और कोचिंग संस्थानों में आकर पढ़ते हैं। कोचिंग संस्थान वाले उन्हीं शिक्षकों की स्कूल-कॉलेज की कक्षा में बच्चे नहीं आते और उनके ही कोचिंग कक्षा में बच्चों की भरमार रहती है। कोचिंग संस्थान भी सरजी के नाम से ही जाने जाते हैं और बच्चों की भीड़ के कारण कई-कई बैच चलाए जाते हैं।
-नियमों तक ही सीमित है पाबंदी
शिक्षा को जब मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया तो शिक्षकों के टयूशन पर पाबंदी लगा दी गई। लेकिन सच है कि ये पाबंदी नियमों तक ही सीमित है। जबकि कोचिंग अधिनियम कहता है कि न्यूनतम स्नातक योग्यताधारी गैर सरकारी शिक्षकों अथवा सेवा निवृत्त शिक्षकों द्वारा अध्यापन कार्य संपन्न किया जायेगा। इस तरह की कोई कार्रवाई कभी नहीं देखी गई जिससे इस अधिनियम के सरेआम उल्लंघन पर विराम लग सके।