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'विद्वानों की माटी पर टिमटिमाते ज्ञान दीप'

सुपौल। कोसी के इलाके में दर्जन से अधिक गांव के छात्र-छात्राओं के शिक्षा के लिए समर्पित ललि

By Edited By: Published: Sat, 23 Jul 2016 07:03 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jul 2016 07:03 PM (IST)
'विद्वानों की माटी पर टिमटिमाते ज्ञान दीप'

सुपौल। कोसी के इलाके में दर्जन से अधिक गांव के छात्र-छात्राओं के शिक्षा के लिए समर्पित ललित कोसी पीड़ित उच्च विद्यालय बनैनियां-बलथरबा के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।

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कभी एक हजार से अधिक छात्र-छात्राओं को नौवीं और दसवीं तक के पढ़ाई का केन्द्र रहने वाला यह विद्यालय आज एक सौ छात्र-छात्राओं के लिए भी तरस रहा है। कोसी क्षेत्र के समाजवादी नेता स्व.गुणानंद ठाकुर के अथक प्रयास के बल इस उच्च विद्यालय की स्थापना हुई थी। उस समय पूर्वी तथा पश्चिमी तटबंध के भीतर बसे कई गांव में उच्च शिक्षा का संस्थान नहीं था। अधिकतर छात्र-छात्राएं छठी की पढ़ाई पूरी कर ही शिक्षा की दुनियां से अलग हो जाते थे। ऐसे समय में पूर्व सांसद गुणानंद ठाकुर ने ललित बाबू के नाम पर उच्च विद्यालय की स्थापना की थी।

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विद्यालय की रही है ख्याति

उच्च विद्यालय बनैनियां बलथरबा में पहले एक हजार से अधिक छात्र-छात्राएं पढ़ा करते थे। विद्यालय में पठन-पाठन के उत्तम व्यवस्था को देख तटबंध के बाहर के भी छात्र वहां पढ़ाई करने जाते थे।

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2010 में हो गया बेहाल

कोसी नदी में वर्ष 2010 में आये बाढ़ और कटाव ने उच्च विद्यालय को लील लिया। फिर शिक्षक कुछ कागजात के साथ पूर्वी तटबंध पर पहुंच गए। कोसी के लोग जहां-तहां बिखर गए। बनैनियां और बलथरबा भी विस्थापित हो तटबंध पर ही आ सिमटा। अब तक उच्च विद्यालय बनैनियां बलथरबा को अपनी स्थाई जगह नहीं मिल पा रही है। तटबंध और पूर्वी गाईड बांध के बीच बने उसके घर को आंधी ने तितर-बितर कर दिया।

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मवि भपटियाही के छत पर चलता विद्यालय

उच्च विद्यालय बनैनियां फिलहाल मध्य विद्यालय भपटियाही के मकान के छत पर होता है। प्रधान सहित अन्य शिक्षक के साथ चल रहे इस उच्च विद्यालय में बच्चों का नामांकन नहीं कराना चाह रहे अभिभावक। अभिभावकों का मानना है कि विद्यालय में अब पढ़ाई की खानापूरी होती है। नामांकित छात्र-छात्राएं भी विद्यालय द्वारा आयोजित जांच परीक्षा में ही आया करते हैं। बांकी के समय अन्यत्र पढ़ाई किया करते हैं।

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अपना कहने को कुछ भी नहीं है

उच्च विद्यालय बनैनियां को आज अपना कहने को कुछ भी नहीं है। न कार्यालय, न भवन, न जमीन, न पुस्तकाल और न ही स्थाई ठिकाना। उस उच्च विद्यालय को यदि अपना कुछ है तो वह है कुछ पंजी जो प्रधान द्वारा बाढ़ के समय भी सहेज कर रखा गया है।

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उपेक्षा का बना है शिकार

प्रसिद्ध लेखक, लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार व प्रख्यात विद्वान स्व. मायानंद मिश्र के पैतृक गांव बनैनियां में आज शिक्षा के क्षेत्र में अंधेरा छाने लगा है। कभी कोसों दूर तक के अभिभावक को अपनी ओर आकर्षित करने वाला उच्च विद्यालय पदाधिकारियों और राज नेताओं के उपेक्षा का शिकार बना है। क्षेत्र के लोगों ने सांसदों और विधायकों से कई बार इस उच्च विद्यालय के उत्थान की ओर ध्यान आकृष्ट कराया। मगर कोई फलाफल नहीं निकला।


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