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ढाई किमी की दूरी तय करने में लगते हैं ढाई घंटे

सुपौल। कुसहा-त्रासदी 2008 के बाद सरकार द्वारा किए गए वादे प्रभावित क्षेत्रों को पहले से बेहतर बनाने,

By Edited By: Published: Thu, 08 Dec 2016 05:27 PM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2016 05:27 PM (IST)
ढाई किमी की दूरी तय करने में लगते हैं ढाई घंटे

सुपौल। कुसहा-त्रासदी 2008 के बाद सरकार द्वारा किए गए वादे प्रभावित क्षेत्रों को पहले से बेहतर बनाने, हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ने व गांव के चहुंमुखी विकास की सरकारी नीति के बावजूद आज भी त्रासदी के जख्म को झेलने पर विवश है प्रखंड के तेकुना पंचायत का इमामपट्टी गांव। नीति के तहत नई-नई सड़कें बनाई जा रही है। पुरानी सड़कों में भी सुधार के साथ-साथ दूर-दराज के क्षेत्रों को पक्की सड़कों से जोड़ने के लिए सरकार कटिबद्ध है। लेकिन उक्त त्रासदी में ध्वस्त पक्की सड़क तो दूर की बात एक अदद कच्ची सड़क मार्ग के अभाव में महादलित एवं आदिवासी समाज की एक बड़ी आबादी वाले उक्त गांव में रहने वाले सैकड़ों परिवारों की स्थिति सरकारी विकास के हर दावों को मुंह चिढ़ाने को काफी है। इमामपट्टी गांव का सूरत ए हाल तेकुना पंचायत के वार्ड नंबर 9 स्थित इमामपट्टी गांव के लोगों के समक्ष आज के विकास के दौर में भी आगे कुंआ तो पीछे खाई वाली स्थिति चरितार्थ है। उक्त गांव दो टोलों में विभक्त है। पुबरिया इमामपट्टी टोला एवं पछवरिया इमामपट्टी टोला। पछवरिया टोला बरसात के कुछ महीनों बाद तक कीचड़ के टापू से घिरा रहता है, तो पुबरिया टोला हर मौसम में पानी के टापू से घिरा हुआ रहता है। पछवरिया टोला के टापू तो तीन चार महीने बाद सूख भी जाते हैं, लेकिन पुबरिया टोला वासियों की स्थिति तो इतनी भयावह है कि साल के छह माह ही वे साइकिल की सवारी कर पाते हैं। पहले भी कच्ची सड़क ही थी। लेकिन त्रासदी के बाद स्थिति ऐसी बन आई है कि पैदल ही उक्त टोलावासियों को महज ढाई किलोमीटर पर अवस्थित एक मात्र प्रतापगंज बाजार तक जगह-जगह पानी को पार कर आने में दो से तीन घंटे का समय लग जाता है। ध्वस्त कच्ची सड़कमार्ग को भी दुरुस्त करने की दिशा में आज तक कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी। फिर पास में ही स्थित मिरचईया नदी के भी जगह-जगह ध्वस्त हुए बांध से फैले पानी ने उक्त कच्ची सड़क को तब से हर वर्ष खासकर बरसात के मौसम में ध्वस्त ही करता आ रहा है। नारकीय जीवन जीने से आजिज गांववासियों ने कई बार आन्दोलन भी किया है। लेकिन सम्बन्धित पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के द्वारा आज तक स्थायी समाधान की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी। उक्त मार्ग की अपनी पहचान रही है। प्रतापगंज के मुख्य गोल चौराहे से ठीक पूरब की ओर से जाने वाली सड़क मार्ग तीन से चार दशक पूर्व तक व्यवसायिक बाजार फारबिसगंज तक बैलगाड़ी व ट्रैक्टर से क्रय एवं विक्रयमाल को लाने ले जाने का प्रमुख मार्ग हुआ करता था। लेकिन धीरे-धीरे फारबिसगंज जाने के अन्य दिशा से पक्की सड़क मार्ग के बनते ही यह मार्ग ही नहीं मार्ग के किनारे बसे अन्य टोले-मोहल्ले की दशा उपेक्षित सी पड़ गयी। तब से लेकर आज तक पक्की सड़क के न बन पाने का खमियाजा क्षेत्र के लोग भुगत ही रहे थे। इसी बीच कुसहा-त्रासदी ने उक्त कच्ची मार्ग को भी क्षत्त-विक्षत करके छोड़ दिया। उस वक्त सरकार के आश्वासन से क्षेत्रवासियों में आशा की एक किरण जगी थी। लग रहा था कि अब जल्द ही उनके दिन भी बहुरेंगे। लेकिन धरातल पर इसका कोई फलाफल अब तक नहीं दिखा। जबकि उक्तमार्ग के पक्कीकरण हो जाने से छातापुर प्रखंड के मधुबनी, उधमपुर, लालपुर, जीवछपुर आदि पंचायतों की न सिर्फ दूरी कम हो जाएगी, बल्कि उन पंचायतों का नजदीकी मुख्य बाजार प्रतापगंज तक आने-जाने का मार्ग भी सुगम हो जाएगा। साथ ही उक्त मार्ग में पड़ने वाले लोगों को भी शिक्षा, स्वास्थ्य आदि अन्य सरकारी विकासात्मक कार्यों का लाभ भी सुलभता से प्राप्त होने लगेगा।


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