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बड़ी आबादी को है पुल की दरकार

सुपौल। बाजार से सटे लोहगड़ा नदी के दोनों किनारों की आबादी को जोड़ने व यातायात की सुविधा को बहाल करने क

By Edited By: Published: Wed, 07 Dec 2016 06:17 PM (IST)Updated: Wed, 07 Dec 2016 06:17 PM (IST)
बड़ी आबादी को है पुल की दरकार

सुपौल। बाजार से सटे लोहगड़ा नदी के दोनों किनारों की आबादी को जोड़ने व यातायात की सुविधा को बहाल करने के लिए प्रतापगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के सामने से वित्तिय वर्ष 2009-10 में जिला पार्षद मद से दो स्पेन पुल की स्वीकृति प्रदान की गई थी। पुल निर्माण का कार्य भी प्रारंभ हुआ। पुल का स्पेन भी बनकर तैयार हो गया। बावजूद विभागीय उदासीनता के कारण पुल का ढलाई कार्य नहीं हो पाने की वजह से दोनों किनारों के हजारों लोगों को सभी मौसमों में यातायात को लेकर घोर कठिनाईयों से जूझना पड़ता है। जबकि अधूरे इस पुल के दोनों किनारे पंचायत स्तर से ईंट सो¨लग का कार्य पूर्ण है। अधूरे उक्त पुल के निर्माण से भवानीपुर दक्षिण पंचायत के नदी से पूरब के वार्ड नम्बर - 12, 13, 14 एवं पश्चिमी भाग के लोगों को इस पार से उस पार तक जाने में लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। इतना ही नहीं भवानीपुर दक्षिण पंचायत के अतिरिक्त तेकुना पंचायत के ईमामपटी, गोविन्दपुर के गढि़या, छातापुर प्रखंड के मधुबनी एवं उद्यमपुर आदि गांवों के लोगों को भी प्रतापगंज अस्पताल तक पहुंचने का यह सुलभ मार्ग है। प्रभावित गांवों की भौगोलिक संरचना का इतिहास भी कोसी की त्रासदी से सदा मुसीबत झेलता आया है। वर्ष 2008 की कोसी त्रासदी ने तो इन गांवों को आपस में समेट सभी प्रखंडों से इसका संपर्क ही खत्म कर दिया है। जिससे आज भी इन गांवों से विकास की रोशनी कोसों दूर है। कभी अधूरे काम तो कभी नई स्पेन की स्वीकृति की बात ग्रामीणों को कह भले ही विकास के रहनुमा उक्त पुल के निर्माण को ले अपना समय खेप रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि उन्हें आम लोगों को हो रहे कठिनाईयों से कोई वास्ता ही नहीं है। आलम यह है कि बरसात प्रारंभ होते ही लोगों के आर-पार का संपर्क एक मुश्किल और काफी दूरी तय करने वाली हो जाती है। चूंकि उक्त नदी बारहमासी नदी है। ऐसे में नदी की गहराई और जल जमाव का स्तर भी बना रहता है। अधूरे पुल निर्माण कराये जाने के संदर्भ में तत्कालीन जिला पार्षद जय प्रकाश जया बताते हैं कि पुल की स्वीकृत राशि उन्हें जिला से अब तक प्राप्त नहीं हुई है। राशि प्राप्त होते ही अधूरे निर्माण कार्य पूर्ण कर दिया जाएगा। अब सवाल उठता है कि वर्षो से इतनी ही रटी-रटाई बातें उक्त तत्कालीन पार्षद द्वारा कही जा रही है। आखिर कौन है जिम्मेवार। विभाग क्यों है उदासीन। ऐसे कई सवाल लोगों के जेहन में सदैव कौंधता रहता है।


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