सड़कों की हो रही अनदेखी, जगह-जगह हो रहा क्षतिग्रस्त
सुपौल। सड़कों के मामले में संपूर्ण सूबा संपन्न हो रहा है लेकिन सड़कों के रखरखाव के प्रति हो रही अनदेखी
सुपौल। सड़कों के मामले में संपूर्ण सूबा संपन्न हो रहा है लेकिन सड़कों के रखरखाव के प्रति हो रही अनदेखी स्थायी समाधान को धता बता रहा है। कस्बाई क्षेत्रों को महानगरों से जोड़ने के लिए फोरलेन राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण हुआ तो शहर से शहर को जोड़ने के लिए स्टेट हाईवे बने।
गाव से बाजार को जोड़ने के लिए सिंगल लेन सड़कों का निर्माण हुआ तो इस चिंता में बस्तीवासियों को शामिल किया जाने लगा। इसी के तहत पाच सौ आबादी वाले बस्तियों को जोड़ने पर काम शुरू हुआ और लगे हाथ ढाई सौ की आबादी को भी मुख्यमंत्री ग्राम संपर्क योजना व प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से जोड़ा जा रहा है। लेकिन निर्माण के साथ भार ढ़ोने की क्षमता को भी निहित किया गया। बावजूद इसके क्षमता से अधिक मालवाहक वाहनों का परिचालन ऐसे सड़कों की अधोगति कर रहा है। जिन सड़कों का निर्माण चार पहिया यात्री वाहनों के लायक हुआ उससे ओवर लोडेड 10 पहिया मालवाहक वाहन धड़ल्ले से परिचालित हैं और जिसे छह पहिया यात्री वाहन के लायक बनाया गया उसपर 10 टन वजन वाले वाहनों का आवागमन होता है। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सड़कों की उम्र कितनी शेष रह जाती है। ऐसे वाहनों के गुजरते वक्त यदि पहिया के नीचे दबे सड़क पर गौर किया जाय तो स्थल नीचे दबता और उठता है। सड़क तो चरमराती ही है चंद दिनों में ही कालीकरण साथ छोड़ने लगता है और फि र वही उबड़ खाबड़ दृश्य सामने उपस्थित होता है। ग्रामीण सड़कों की स्थिति को झाके तो सड़क निर्माण पर बाबुओं की मेहरबानी इस कदर रही कि सड़क बदहाली के आसू रोता रहा। उपर से आलम यह कि एक बार कालीकरण कर गये तो फि र पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मेंटेनेंस की राशि तो जैसे उनकी धरौटी में ही शामिल हो गया। परिवहन नियम के अनदेखी की बानगी देखनी हो तो ग्रामीण क्षेत्र के सड़कों पर विचरण कीजिए। छोटे और संकीर्ण रास्तों पर चार पहिया व माल वाहक वाहनों की भीड़ मिलेगी। टोल टेक्स व पड़ाव शुल्क से बचने के लिए ग्रामीण सड़कों का चयन होता है और विभागीय चेकिंग की तो कोई फिक्र ही नहीं। ऐसा नहीं है कि चेकिंग नहीं होती गाहे बगाहे होती तो है लेकिन राजमार्ग तक ही सिमट कर रह जाती है।