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किस्से कहानियों के पात्र न बन जाए पेंटर बाबू

सुपौल। पेंटर शब्द का ख्याल आते ही एक ऐसे व्यक्तित्व का मन मस्तिष्क पर आभास होता है जो रंगों से सराबो

By Edited By: Published: Wed, 04 May 2016 07:49 PM (IST)Updated: Wed, 04 May 2016 07:49 PM (IST)
किस्से कहानियों के पात्र न बन जाए पेंटर बाबू

सुपौल। पेंटर शब्द का ख्याल आते ही एक ऐसे व्यक्तित्व का मन मस्तिष्क पर आभास होता है जो रंगों से सराबोर कूचियों से शब्दों व आकृति को उकेरता है। उसके हाथ जादुई अंदाज में चलते है और शब्द और आकृति जीवंत प्रतीत होते है। पर डिजिटल हो चले युग में तो पेंटर बाबू तक की पूछ घट चली है। उनके फांके चल रहे है और डिजिटल व फ्लैक्स बोर्ड की बल्ले-बल्ले निकल पड़ी है। हर ओर डिजिटल बोर्ड व फ्लैक्स बोर्ड नजर आ रहे हैं और पेंटर बाबू किस्से कहानियों के पात्र बनते जा रहे है।

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एक समय था जब दुकानों के प्रचार-प्रसार नेम प्लेट, गाड़ियों के नंबर, दीवार लेखन, विभिन्न कंपनियों के बैनर पोस्टर लिखवाने के लिए पेंटरों की दुकानों पर भीड़ लगी रहती थी। उसमें भी जिसकी लिखावट जितनी अच्छी उस दुकान पर उतनी भीड़। काम के बोझ से दबे पेंटरों को न दिन की सुध रहती थी और न ही रात की। रंगों से सराबोर कूचियां उनकी हाथ में रहती और शब्दों व आकृतियों को उकेरने में वे मगन रहते थे। खासकर चुनावों के समय तो उनकी व्यस्तता प्रत्याशियों से भी अधिक दिखती थी। कईयों का इस व्यवसाय से भरण-पोषण व परिवार का गुजारा होता था। कई सहयोगियों के घरों के चूल्हे भी इसी कमाई पर निर्भर करते थे। कूचियों के जादू से कमाई भी अच्छी खासी हो जाती थी और मजे में कटता था पेंटर बाबू का समय।

पर लगभग एक दशक से बढ़ चले ग्लोसाईन बोर्ड, डिजिटल बोर्ड, फ्लैक्स बोर्ड व होर्डिग आदि ने पेंटरों की कूचियों पर ब्रेक सा लगा दिया है। पेंटरों की छोटी-छोटी दुकानों की जगह अब डिजिटल व फ्लैक्स बोर्ड के बड़े-बड़े दुकान खुल गए है। साइज बताइए, मैटर दीजिए और मनपसंद डिजाइन में डिजिटल व फ्लैक्स बोर्ड आपके घर व दुकान तक पहुंचा दिया जाएगा। वहीं अब तो कपड़े की जगह रैक्सीन के बैनर पोस्टर भी आने लगे है। आकर्षक व सस्ते होने के कारण लोगों का झुकाव भी इसी ओर दिख रहा है। पेंटर बाबू की कूचियों पर चौतरफा हमले में तो कूचियों को कुंद पड़ना ही था। नतीजतन पेंटरों को फांके व डिजिटल व फ्लैक्स बोर्ड वाले की तो बल्ले-बल्ले होगी ही। अगर स्थिति यहीं रही तो पेंटर किस्से कहानियों तक ही सिमट कर रह जाएंगे। और आनेवाली पीढ़ी किताबों में पढ़ेगी कि एक था पेंटर, उनके हाथों में रहती थी कूचियां और हाथ जादुई अंदाज में शब्दों व आकृतियों को उकेरते थे...।


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