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औषधीय खेती को नहीं मिल रहा विभागीय प्रोत्साहन

सुपौल। औषधीय पौधों की श्रेणी में आने वाले पान की खेती की आवश्यकताएं व उपभोक्ताओं की मांग में दिन प्र

By Edited By: Published: Wed, 04 May 2016 07:48 PM (IST)Updated: Wed, 04 May 2016 07:48 PM (IST)
औषधीय खेती को नहीं मिल रहा विभागीय प्रोत्साहन

सुपौल। औषधीय पौधों की श्रेणी में आने वाले पान की खेती की आवश्यकताएं व उपभोक्ताओं की मांग में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। वहीं सरकारी उदासीनता की वजह से प्रोपर ट्रेनिंग, व्यवसाय के तौर पर खेती करने के प्रति रूझान पैदा नहीं करवाने से किसानों में अरूचि की उत्पन्न भावना से उत्पादन में कमी होती जा रही है। जबकि इस क्षेत्र में पान की खेती की असीम संभावनाएं हैं। इस खेती में श्रम, समय तथा पूंजी भी कम लगती है। उर्वरक एवं सिंचाई का भी कम उपयोग होता है। जिसके चलते शुद्ध आय अन्य परम्परागत खेती से अधिक मिलती है। इस खेती में जहां किसानों के कम खेती किए जाने से भी आर्थिक विकास होगा वहीं यातायात के बढ़ जाने से नए-नए बाजारों के द्वार खुलने से लोगों को नए रोजगार के अवसर मिलेंगे। बावजूद इसके इच्छुक उत्पादकों के लिए कृषि विभाग द्वारा अद्यतन जानकारी उपलब्ध नहीं कराने के कारण आज भी पारंपरिक ढ़र्रे पर खेती करने की विवशता से विमुख हो इक्के-दुक्के असंगठित किसान इस खेती से मुकरते जा रहे हैं। किसान बताते हैं कि विगत तीस वर्षो से पान की खेती की जा रही है लेकिन विभाग द्वारा इस खेती के प्रति कभी भी प्रोत्साहित नहीं किया जा सका। इस खेती को जातिगत परंपरा से जोड़कर देखा जा रहा है। इससे आहत हो अब तक दर्जनों किसान इस खेती को छोड़ चुके हैं। फिलवक्त इसके द्वारा पान का पत्ता प्रतापगंज, सिमराही, नरपतगंज, वीरपुर तक पहुंचाया जा रहा है।


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