आज भी विद्यालय से वंचित हैं कई बच्चे
सुपौल। शिक्षित समाज बनाने के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा देते हुए सर्व शिक्षा अभियान से लेकर
सुपौल। शिक्षित समाज बनाने के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा देते हुए सर्व शिक्षा अभियान से लेकर मुफ्त पोशाक, पाठ्य-पुस्तक, मध्याह्न भोजन, आवासीय विद्यालय यहां तक कि बच्चों को विद्यालय तक पहुंचने के लिए साइकिल तक की व्यवस्था कर रखी गई है। बावजूद पिपरा प्रखंड में आज भी सैकड़ों ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने विद्यालय का मुंह तक नहीं देखा है। इसके पीछे जो मूल कारण है वह है लोगों की माली हालत। इस प्रखंड के अधिकांश लोगों का मुख्य पेशा खेती है। ऐसा नहीं कि यहां के किसान काफी सबल हैं। गरीबी के कारण यहां के लोग बच्चे को बाल मजदूरी की भट्ठी में झोक देते हैं।
- शिक्षा के प्रति उदासीनता
संपन्न परिवारों में भी लड़कियों की शिक्षा खास प्रगति पर नहीं है। किसी तरह लोग अपनी मुनियां को हाई स्कूल तक की शिक्षा दे देते हैं परन्तु कॉलेज की शिक्षा के पूर्व ही उनकी शादी कर उन पर परिवार के दायित्व का बोझ डाल देते हैं। ग्रामीण इलाकों में तो लड़की के प्रति लोगों की मंशा उनकी शादी तक ही सिमटी रहती है।
-विभागीय उदासीनता भी है बाधक
सरकार द्वारा दी गई शिक्षा पर सुविधा आम बच्चों तक कितनी पहुंचती है वह किसी से छिपी नहीं है। स्कूल पूर्व शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से खोला गया आंगनबाड़ी केन्द्र का प्रखंड में हाल-बेहाल पड़ा है। मिड डे मील में गड़बड़ी तो आम बात बनी हुई है।
जमीनी सच्चाई यह है कि इससे कई गुणा अधिक बच्चे विद्यालय से बाहर रहकर परिवार के दायित्वों के निर्वहन में लगे हैं।