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जोर आजमाईश में जुटे प्रत्याशी, दिखा रहे दमखम

सुपौल। 23 पंचायतों से निर्मित छातापुर प्रखंड में आगामी 14 मई को छठे चरण के लिए मतदान होना है। लेकिन

By Edited By: Published: Wed, 04 May 2016 05:41 PM (IST)Updated: Wed, 04 May 2016 05:41 PM (IST)
जोर आजमाईश में जुटे प्रत्याशी, दिखा रहे दमखम

सुपौल। 23 पंचायतों से निर्मित छातापुर प्रखंड में आगामी 14 मई को छठे चरण के लिए मतदान होना है। लेकिन ज्यों ज्यों चुनाव प्रचार की रफ्तार तेज हो रही है आदर्श आचार संहिता की गाठ ढीली पड़ती जा रही है। येन केन प्रकारेण चुनाव जीतने की होड़ में पर्दे के पीछे सब कुछ चल रहा है। कहीं चोरी छिपे अपने चहेते कार्यकर्ता सहित रूठे मतदाताओं को आख चढ़ा झूमने की व्यवस्था होती है तो कहीं मदद के बहाने ही सही लाल व पीले पत्तियों का जुगाड़। लंबे गेम के लिए 40 किमी नेपाल की खुली सीमा तो है ही। सो जिसमें जितना दम खम है आजमाने से पीछे नहीं हट रहे। आदेश के बिना गाव की गलियों में लाउड स्पीकर के शोर मचने की चर्चा होती है तो कहीं वाहनों के काफिले के साथ कायदे को ठेंगा दिखाया जा रहा है। संबंधितों से जानकारी लेने पर बताया जाता है कि उल्लंघन के मामलों पर दृष्टिपात के लिए फ्लाइंग स्क्वाड का गठन किया गया है। मगर उनके लिए यह सब कुछ अनदेखा और अनजाना है। चुनाव की घोषणा होते ही घर घर दस्तक देने व धन बल दिखाने की होड़ में जुटे प्रत्याशियों के लिए मतदान तिथि की लंबी अवधि भारी पड़ रही है। शुरूआत से जोर आजमाईश में जुट गये कई प्रत्याशियों की जेबें अभी से ढीली पड़नी शुरू हो गयी है और ऐसे लोग या तो महाजनों की तलाश में जुटे हैं अथवा परिसंपति के खरीदार ढूंढते फि र रहे हैं। शराब बंदी को लेकर सरकार के सख्त कदम उठने से पूर्व ही भंडारण की बातें चर्चा में आने लगी थी। सो यदा कदा देर रात ऐसे प्रत्याशियों के करपरदारों के मूड देख रिसाव का अंदाजा भी हो जाता है। मगर सरकार के मूड के आगे ऐसों के मूड फीके फ के ही होते हैं। आजकल बिना पंजीकृत पि्रंटिंग प्रेस वालों की भी खूब चादी कट रही है। पर्चा, पोस्टर, पंपलेट, मतपत्र नमूना, कैलेंडर आदि की छपाई को लेकर जुटती भीड़ मुंहमागी कीमत चुकाने को तैयार होते हैं शर्त बस जल्दी की होती है। सो जल्दी जल्दी में कायदों को ताक पर रख कर मुद्रण की शर्तो का भी अनुपालन नहीं हो पा रहा है। कई पोस्टर में तो मुद्रण की प्रतिया और किसने छपाया उद्धृत नहीं होता। मनमानी का आलम यह कि यदि छपाया पाच हजार तो अंकित किया पाच सौ। आखिरकार हिसाब का भय जो है। सरेआम बंटते ऐसे पर्चा पोस्टर पर प्रिंटिंग प्रेस का नाम व मोबाइल नंबर अंकित होता है जो टोह के लिए काफ है। बावजूद इसके धंधेबाजों का धंधा परवान चढ़ रहा है और सरेबाजार नियमों को ताक दिखा कर राजस्व को क्षति पहुंचाई जा रही है। अर्थ के इस होड़ में पैसा तो बोल ही रहा है लेकिन लोकतंत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के ख्याल से हेंड टू माउथ चंद ऐसे प्रत्याशी भी हैं जो इस भीड़ में परिणाम की परवाह किये बिना जीत का सेहरा पहनने के लिए जोर शोर से जुटे हैं।


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