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आनलाइन इस युग में आज भी गांवों में हाट का क्रेज

सुपौल। बदलते परिवेश में बाजार का स्वरूप विस्तृत होता चला गया। आवश्यकता अनुसार बड़े-बड़े माल के साथ-साथ

By Edited By: Published: Tue, 03 May 2016 07:38 PM (IST)Updated: Tue, 03 May 2016 07:38 PM (IST)
आनलाइन इस युग में आज भी गांवों में हाट का क्रेज

सुपौल। बदलते परिवेश में बाजार का स्वरूप विस्तृत होता चला गया। आवश्यकता अनुसार बड़े-बड़े माल के साथ-साथ मार्केट कम्पलेक्स बनते चले गए। लोगों को एक ही जगह जरूरत की सारी सामानें मिलने की सुविधा मिली बावजूद ग्रामीण हाटों पर इसका कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा और आज भी ग्रामीण हाट का क्रेज बरकरार है। लोग हाट लगने का इंतजार भी करते हैं।

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मानव जाति के विकास के साथ-साथ उनकी आवश्यकताओं व अभिलाषाओं में भी वृद्धि हुई। अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए लोग पूर्व में सामानों का आदान-प्रदान किया करते थे। किन्तु सभ्यता के विकास के साथ-साथ आदान-प्रदान का प्रचलन थमा और रूपये के रूप में क्रय शक्ति लोगों के हाथ आई। लोगों की जरूरतें पूरी करने हाट का इजाद हुआ। लोग जरूरतों की पूर्ति हाट के माध्यम से करने लगे। जहां उनकी जरूरत की अधिक चीजें सुलभ उपलब्ध हो जाया करती थी। सब्जी, फल, मिठाई, मांस, मछली, कपड़े आदि के लिए लोग हाट पर ही निर्भर करते थे। कहा जाता है कि परिवर्तन संसार का नियम है और विकास मानव की प्रवृति। भौतिकवादी युग में तो लोगों की पहली पसंद सुविधा ही है। नतीजतन सुविधा की चाह में परिवर्तन दर परिवर्तन होते गए। जहां सुविधा युक्त कई मार्केटिंग कम्पलेक्स खुले वहीं माल संस्कृति भी लोगों के सर चढ़कर बोलने लगी। लोग जरूरतों के लिए माल की ओर रूख करने लगे। माल का कारोबार भी चल निकला बावजूद हाट संस्कृति पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। वर्तमान समय में भी ग्रामीण इलाकों से लेकर महानगर तक में हाट में दुकानें सजती है और लोग दैनिक जरूरत के साथ-साथ घरेलू जरूरत के सामानों की खरीदारी करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो लोग हाट का इंतजार तक करते नजर आते हैं। यानि विकास के तमाम आयामों के बीच हाट का क्रेज आज भी बना हुआ है और लोग हाट लगने का करते हैं इंतजार।


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