कोसी का कहर, मिलती नहीं डगर
सुपौल। कोसी के गांव की अपनी कहानी रही है। छह महीने बाढ़ से जूझते हैं लोग तो छह महीने बालू पर दौड़ लगा
सुपौल। कोसी के गांव की अपनी कहानी रही है। छह महीने बाढ़ से जूझते हैं लोग तो छह महीने बालू पर दौड़ लगानी पड़ती है। परिवर्तन के दौर में विकास की लंबी रेखा खींची गई। कोसी को भी विकास की प्राथमिकताओं में शामिल किया गया। कोसी पर पुल बना और तेज रफ्तार गाड़ियां फर्राटे भरने लगी। आर-पार के संबंध प्रगाढ़ हुए और दूरियां भी कम पड़ने लगी। लेकिन विकास की इन किरणों से दूर आज भी कई गांव सिसकियां भर रहे हैं। कोई अपने गांव का अस्तित्व बचाने को ले लड़ाई ठान रहा है तो कोई अपने गांव तक पहुंचने का रास्ता ढ़ूंढ़ रहा है। कोसी के इलाके में कई गांव ऐसे हैं जहां जाने के लिये नाको चने चबाने पड़ते हैं। कोसी का ही एक गांव है बनैनियां। विकास की रफ्तार ने तो इसके वजूद तक को रौंद डाला। एक तो कोसी की कृपादृष्टि के कारण यहां की आबादी हमेशा अपनी जिन्दगी को ले संघर्षरत रही और रही सही कसर गाईड बांध निर्माण के वक्त पूरी हो गई। पूरा गांव कोसी की मुख्य धारा की चपेट में आ गया और किसी ने उफ.. तक नहीं की।
कोसी की मार से त्रस्त एक बड़ी आबादी पूर्व में ही पलायन कर चुकी थी। महासेतु निर्माण के वक्त गाईड बांध बनने के साथ काफी संख्या में लोग विस्थापित हो अन्यत्र जा बसे। किसी ने स्पर पर शरण लिया तो कोई तटबंध किनारे जा बसा तो किसी ने अन्य गांव में ही अपना बसेरा बना लिया। खेती-बारी के लोभ से अथवा अपनी आजीविका को ले कुछ आबादी गांव में ही रह गई। जो हमेशा नदी की धारा के हिसाब से अपना ठौर बदलती रहती है। इनके आने-जाने का कोई रास्ता नहीं, न ही कोई संसाधन होता है। बाहर रहते लोग जिन्हें अपने गांव की याद आती है, चाहकर भी अब गांव नहीं जा पाते।
इसके आस पड़ोस के गांव की कहानी भी लगभग एक जैसी ही है। सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड के ही गांव ढ़ोली, सियानी,कटैया, कटैया-भुलिया, लौकहा पलार, कोढ़ली पलार,कबियाही, करहरी, तकिया जाना आसान नहीं है। इसके रास्ते कोसी की धारा के अनुकूल हमेशा बदलते रहते हैं। जबकि गांव के अंदर कच्ची सड़कें हैं। जो स्थाई तौर पर गांव में होते हैं, उन्हें तो अपने रास्ते का ज्ञान होता है। लेकिन परदेस कमाते पूत जब गांव की ओर रूख करते हैं तो उनके लिये गांव की डगर आसान नहीं। वहीं मरौना प्रखंड क्षेत्र के घोघरड़िया पंचायत का खोखनाहा, लक्ष्मीनियां जाना आसान नहीं। यहां केवल नाव का ही सहारा है। लेकिन सरकारी स्तर से नाव भी उपलब्ध नहीं होते। सिसौनी पंचायत का जोबहा, सिसौनी छीट,मरौना दक्षिण पंचायत का सिराजपुर जाना काफी कष्टप्रद है।