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त्रासदी के आठ वर्ष बाद भी नहीं चालू हो पाया स्टेट बोरिंग

सुपौल। कुसहा-त्रासदी में बालू की परत से पटी बंजर हुई जमीन में सिचाई व्यवस्था मुकम्मल नहीं हो पाने स

By Edited By: Published: Fri, 09 Oct 2015 05:08 PM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2015 05:08 PM (IST)
त्रासदी के आठ वर्ष बाद भी नहीं चालू हो पाया स्टेट बोरिंग

सुपौल। कुसहा-त्रासदी में बालू की परत से पटी बंजर हुई जमीन में सिचाई व्यवस्था मुकम्मल नहीं हो पाने से पेट की आग बुझाने को लेकर बडे़ किसान हो या फिर छोटे परिवार के भरण पोषण हेतु लोकतंत्र के महापर्व विधान चुनाव के कुछ दिन शेष रहने पर भी बड़ी संख्या में रोज कर रहे हैं पलायन। त्रासदी के आठ वर्ष बीत जाने के बाद भी जनप्रतिनिधि व सरकारी उपेक्षा व उदासीनता का परिणाम है कि एक अदद स्टेट बोरिंग भी बालू की रेत पर किसानी के लिए नदारद है। खानापूर्ति के कवायद में लाखों रूपये से निर्माणाधीन स्टेट बोरिंग बभनगामा गाव में वगैर एक बूंद पानी उगले बिजली व मोटर के अभाव में जमींदोज हो गए। वही थलहागढि़या दक्षिण पंचायत के बलजोरा पलार पर लाखों रूपये की लागत से निमार्णाधीन स्टेट बोरिंग भी बिजली व मोटर के बगैर धराशायी होने के कगार पर खड़ी है। बालू से पटे खेतों में सिचाई को लेकर सबसे बड़ी समस्या बिहार में आलू उत्पादन के क्षेत्र में दूसरे स्थान पर प्रसिद्ध आलू उत्पादक किसानों की है। सिंचाई व्यवस्था संभव नही पाने के कारण जहा किसानों का खेती से मोह भंग हो रहा है। वहीं किसानों के उपजाउ भूमि में बालू की मोटी परत जमा रहने के कारण बंजर बनी जमीन में सिचाई के अभाव में खेती नही होने से परिवार के समक्ष भरण पोषण की समस्या मुंह बाये खड़ी है। वहीं खेती के घटने व मनरेगा में मजदूरी नहीं मिलने के कारण मजदूर भी पलायन को विवश हैं। आइये परेशानहाल किसानों की कहानी सुनते हैं उनकी ही जुबानी।

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सिंचाई की व्यवस्था बहाल करने को लेकर वर्षो पूर्व स्टेट बोरिंग की

आधारशिला रख कार्य प्रारंभ किया गया। लघु सिचाई विभाग ने योजना के

कार्यान्वयन में पाईप लाईन बिछाने के साथ ही ट्रांसफार्मर लगवाने को भगवान भरोसे छोड़ दिया। नतीजा निर्माण धरोहर के रूप में खड़ी है।

कामेश्वर यादव

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सिंचाई की मुकम्मल व्यवस्था से ही बाढ़ प्रभावित किसानों के आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। जनप्रतिनिधि हैं कि किसानों की समस्या से बेखबर बैठे हैं। कैसे रूकेगा पलायन।

देवनारायण चौधरी

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सिंचाई की व्यवस्था हमारी सबसे बडी समस्या है। हमारे समस्याओं का निदान क्षेत्र में बहुतायत संख्या में स्टेट बोरिंग के निर्माण से हो सकेगा। किन्तु यहा तो एक अदद बोरिंग के लिए लोग टकटकी लगाये बैठे हैं।

भोला प्रसाद यादव

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सरकार ने बाढ़ के समय कहा था कि बाढ प्रभावित क्षेत्र को पहले से सुंदर बनायेंगं। खेतों से बालू को हटाने के लिए अनुदान दिये जाने की प्रक्रिया भी की गई। किन्तु कार्यान्वयन उंट के मुंह में जीरा साबित हुआ। समस्या जस की तस है।

सुखदेव यादव

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जनप्रतिनिधि व विभाग के द्वारा बरती जा रही उपेक्षा व उदासीनता ही है कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र होते हुए भी किसानों की सुविधा बहाल करने को लेकर एक अदद भी स्टेट बोरिंग नही लगाई गयी।

कामेश्वर यादव

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पूर्व में बभनगामा गाव के किसानों को सिंचाई का लाभ दिलाने के लिए लाखों रूपये की लागत से निर्माण किया गया स्टेट बोरिंग बिजली के इंतजार में ध्वस्त हो गया। अब निमार्णाधीन बलजौरा पलार पर स्टेट बोरिंग बिजली के अभाव में ध्वस्त होने के कगार पर है। जनप्रतिनिधि है कि किसानों की समस्या की सुध ही नही है।

नागेश्वर राम

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बलजोरा पलार पर निर्मित स्टेट बोरिंग अपने अस्तित्व पर आंसू बहा रहा है। जल निकासी के लिए लाखों रूपये से निर्माण किया गया स्टेट बोरिंग बगैर एक

बूंद सिंचाई के अवरुद्ध पड़ी है।

सिधाय साह

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गाव में उसर भूमि पलार पर स्टेट बोरिंग का निर्माण होता देख लगा था कि अब हमारे खेत भी सोना उगलेंगे और हमारी माली हालत बेहतर हो जाएगी। किन्तु जनप्रतिनिधि की उदासीनता के चलते ऐसा संभव नही हुआ। बोरिंग के साथ ही सपने भी ध्वस्त हो रहे हैं।

डोमी यादव


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