अपने उद्धारक की बाट जोह रहा टीपी सिंह कला संस्थान
सुपौल। बसंतपुर प्रख्ाड अंतर्गत भीमनगर स्थित टीपी सिंह कला संस्थान वर्षो से अपने उद्धारक की बाट जोह र
सुपौल। बसंतपुर प्रख्ाड अंतर्गत भीमनगर स्थित टीपी सिंह कला संस्थान वर्षो से अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है। मालूम हो कि कोसी योजना के स्थापना काल में ही भीमनगर में इस कला संस्थान की स्थापना कोसी के कर्मचारियों के
द्वारा की गई थी। पदाधिकारियों ने भी इसमें अपनी अच्छी सहभागिता निभाई
थी। टीपी सिंह कला संस्थान में एक बड़ा सा हॉल था ,जिसमें एक तरफ लंबा चौड़ा एक रंगमंच बना हुआ था। साथ ही बगल में ग्रीन रूम भी था ,जिसमें मंचन से पूर्व कलाकर अपने रूपसज्जा को सवारते थे। यह कला केंद्र सभी संसाधनों से भरपूर था। ऐतिहासिक नाटकों के मंचन के लिए अनेक प्रकार के पोशाक एवं संबंधित उपकरण भी मौजूद थे। उक्त संस्थान
के रंगमंच पर दर्जनों ऐतिहासिक ,सामाजिक एवं धार्मिक अभिनयों का मंचन लगातार होता रहा। सन् 1986 में इस रंगमंच पर दानवीर कर्ण एवं हल के आसू एवं बंदूक का धुंआ नामक नाटक का अंतिम बार मंचन किया गया। इसके बाद यह धीरे
धीरे मृतप्राय होता गया। 2008 की कुसहा त्रासदी ने इस केंद्र का नामोनिशान मिटा दिया। इंजीनियर शत्रुघ्न प्रसाद सिंह का नाम इस संस्थान को आगे बढ़ाने में हमेशा सराहनीय रहा। कर्मचारियों में यूपी सहाय ,जेएस साहा ,केके मिश्रा, जगदीश यादव, स्व. बद्रीनाथ विप्र एवं हरिवल्लव मिश्र भी काफी चर्चित रहा। करोड़ों की लागत से कोसी में पुनस्र्थापन कार्य किया गया। परंतु इस ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। स्थानीय लोगो में कॉमेडी रंगमंच के कलाकर रतन भट्टाचार्य, पंकज इंदीवर, संजीव ठाकुर ,सुमित, धीरेन्द्र कुमार के अलावे कला प्रेमियों में जगदीश यादव ,चंद्रशेखर साह सहित अन्य कई लोगो ने कोसी योजना के वरीय अधिकारियों से इसे पुनर्जीवित कराने की माग की है। ताकि इस क्षेत्र में जो आज कला और संस्कृति मृतप्राय सा होता जा रहा है वो पुनर्जीवित हो सके।