छोटी उम्र में नशापान का रोग
सुपौल। नन्हें हाथों में कटोरियां, कटोरियों में भगवान। मुख से भूख और भगवान का वास्ता। इन्हीं शब्दों क
सुपौल। नन्हें हाथों में कटोरियां, कटोरियों में भगवान। मुख से भूख और भगवान का वास्ता। इन्हीं शब्दों की दुहाई के सहारे सहरसा-राघोपुर रेलखंड के छोटी लाइन के ट्रेनों में मागी जा रही है भीख। बिलखते स्वर में भूखे पेट को भरने के लिए खाना या रुपये मांगना ये कोई नई बात नहीं है लेकिन भीख से मिले पैसों से बच्चों ने नशे को गले लगा लिया है। नशा भी ऐसा जिसके बारे में उसे बेचने वाले भी अंजान हैं। भीख मांगने वाले ये बच्चे फ्ल्यूड खरीदकर उसका नशा कर रहे हैं। इतना ही नहीं इन बच्चों को नशा का डोज दे अपराध की दुनिया में जबरन ठेला भी जा रहा है। ककहरा सीखने की उम्र में इन्हें अपराध का ककहरा पढ़ाया जा रहा है।
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व्हाइटनर व सॉल्यूशन को कपड़े में रखकर सूंघने का शौक
भीख मांगने और कबाड़ बीनने वाले बच्चे अजीब किस्म के नशे का शिकार हो रहे हैं। दिन भर मेहनत करने के बाद ये नौनिहाल सॉल्यूशन (पंचर जोड़ने वाले ट्यूब में इस्तेमाल किया जाने वाला पदार्थ), व्हाइटनर(स्याही से लिखा मिटाने वाला केमिकल) सूंघकर नशे में धुत हो जाते हैं। बस स्टैंड, स्टेशन परिसर हटखोला रोड स्थित कबाड़ी के आसपास ऐसे बच्चों की खासी संख्या है। ये बच्चे साइकिल की दुकान या फिर किताबों की दुकानों पर जाकर सॉल्यूशन या फिर व्हाइटनर खरीदते हैं और उसे कपड़े पर डालकर बहुत जोर से सूंघते हैं। ऐसा करने से उन्हें नशा छा जाता है। इन बच्चों को दिन में शाम में नशापान करते देखे जा सकते है। बोन फिक्स क्विकफिक्स और आयोडेक्स तक का इस्तेमाल ये बच्चे नशे के रूप में करते हैं। कई बच्चे तो पेट्रोल और केरोसिन भी पीकर नशे की प्यास बुझाते हैं। ---------------------
थकान दूर और अच्छी नींद के लिए करते हैं सेवन
जागरण टीम ने जब इसकी पड़ताल शहर के उन अंधेरी गलियों में बच्चा कपड़े को नाक से लगाकर उसे जोर से सूंघ रहा था। पूछने पर उसने बताया कि सॉल्यूशन है। ऐसा करने से उसे अच्छी नींद आ जाती है। जैसे ही उसका फोटो खींचना चाहा वह भाग गया। स्टेशन परिसर के पास एक लड़का कपड़े में रखकर व्हॉइटनर सूंघ रहा था। उसने कहा कि 10 रुपए की शीशी दो दिन चलाता है। बताया कि दिन भर कचरा बीनने के बाद थकान हो जाती है। ऐसे बच्चों को शराब की दुकान और बियर बार में भी देखा जा सकता है।
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सड़क पर काम कर रहे 80 फीसद बच्चे नशे की गिरफ्त में
यूएन के नारकोटिक्स नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2013 की रिपोर्ट में बताया गया है कि दस से ग्यारह वर्ष की आयु के 80 फीसद वैसे बच्चे जो भीख मांगने, कचरा बीनने का काम करते हैं वे। इन बच्चों के माता-पिता और वयस्क परिवारजन रोजी-रोटी की जुगाड़ में व्यस्त रहते हैं और वे बच्चों पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। दस वर्ष की उम्र में ही स्कूल के बदले कचड़ा बीनने, होटलों, ढाबों में मजदूरी करने या बाजार में फेरी लगाकर सामान बेचने का काम करने लगते हैं। वे अपनी कमाई से मादक पदार्थ खरीदने में सक्षम हो जाते हैं।
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सॉल्यूशन, व्हाइटनर सूंघने से होने वाला नुकसान
- फेफड़े का संक्रमण
- मस्तिष्क सुन्न
- स्नायु तंत्र कमजोर होना
- किडनी पर असर
- शरीर में सुस्ती