कद्रदानों के रहते नहीं मिल सका उद्योग का दर्जा
सुपौल। भले ही हाथों के हुनर को दुनियां सलाम करती हो मगर कोसी क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा चटाई (कारपे
सुपौल। भले ही हाथों के हुनर को दुनियां सलाम करती हो मगर कोसी क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा चटाई (कारपेट), मिट्टी के बर्तन व बांस पर आधारित हस्तकरघा एवं हस्त निर्मित कामगारों को उनके कद्रदानों के रहते इस परंपरागत व्यवसाय को सरकारी अनदेखी की वजह से उद्योग का दर्जा नहीं दिलाया जा सका। परिणाम स्वरूप हस्तकरघा से जुड़े व्यवसायियों का धीरे-धीरे अपने परंपरागत धंधे से दिल टूटता जा रहा है। वहीं सक्षम रोजी-रोटी की समस्या दिन व दिन उत्पन्न होती जा रही है।
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संसाधन की पर्याप्त उपलब्धता
कोसी क्षेत्र के परंपरागत कारीगरों के पास पटेर चटाई में उपयोग की जाने वाली घास, मिट्टी व बांस के साथ-साथ हुनर की कोई कमी नहीं है और न ही कद्रदानों की। कमी है तो सिर्फ इनके कारोबार में पूंजी लगाने व जागरूकता पैदा कर इन्हें प्रोत्साहित करने की। ताकि ये इन व्यवसायों से जुड़े रह व्यवसाय को उद्योग का दर्जा दिलाने में सरकार को बाध्य कर सके।
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बढ़ते बाजार से नई आशा
हथकरघा व्यवसाय से जुड़े व्यवसायियों के माल पहले ग्रामीण बाजारों तक ही सिमट कर रह जाते थे। इनके द्वारा तैयार माल की अनुपलब्धता की स्थिति में शहरी इलाकों में प्लास्टिक से बुने चटाई ने अपना अलग स्थान बन लिया। अब जबकि ग्रामीण सड़क संपर्क मुख्य बाजार से जुड़ गया है। जगह-जगह वाहनों का परिचालन प्रारंभ हो गया है। ऐसे में तो इन उद्योगों को पंख लगने के अवसर तो हैं ही।
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रोजगार के साथ आर्थिक विकास के द्वार खुलने की संभावना
हस्त निर्मित कामगारों को प्रोत्साहन देने में सरकार स्वयं या फिर किसी एनजीओ की सहभागिता से इन्हें जागरूक व आवश्यक मदद करती है तो निश्चित तौर पर रोजगार के अवसर ही नहीं क्षेत्र के लोगों की आर्थिक दशा भी सुदृढ़ होगी।