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कहीं शिक्षक की कमी तो कहीं ठंडा पड़ा चूल्हा

सुपौल। प्रखंड की प्राथमिक व मध्य विद्यालय शिक्षा व्यवस्था वेंटीलेटर पर है। निरीक्षी पदाधिकारी कार्या

By Edited By: Published: Fri, 03 Jul 2015 01:46 AM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2015 01:46 AM (IST)
कहीं शिक्षक की कमी तो कहीं ठंडा पड़ा चूल्हा

सुपौल। प्रखंड की प्राथमिक व मध्य विद्यालय शिक्षा व्यवस्था वेंटीलेटर पर है। निरीक्षी पदाधिकारी कार्यालय के कार्य में व्यस्त हैं और शिक्षक निजी कार्य में मस्त हैं। गरज यह कि सतत निगरानी के अभाव में संपूर्ण व्यवस्था कायदे को ठेंगा दिखा रहा है। वर्ष 2010 में शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल किया गया और तब व्यवस्था में व्यापक सुधार की आस जगी थी। लेकिन हुआ इसके उलट और रही सही व्यवस्था भी जाती रही। विभागीय अराजकता का आलम

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है कि कहीं शिक्षक हैं तो छात्रों की व्यापक कमी देखी जा रही है और

जहा छात्रों की बेहतर उपस्थिति रहती है वहा शिक्षकों की कमी के कारण

पठन पाठन का टोटा है। विभागीय निर्देशानुसार बुधवार से सभी विद्यालयों

का संचालन नौ से तीन के बीच होना था लेकिन कई विद्यालय गुरूजी के

सुविधा अनुसार खुले और बंद हुए। इतना ही नहीं कई विद्यालयों का तो

ताला ही नहीं खुला। बतौर उदाहरण दिन के 10.30 बजे मुख्यालय पंचायत

स्थित प्रावि यादव राम टोला नरहैया पूर्ण रूपेण बंद था। विद्यालय में एक मात्र शिक्षिका कंचन कुमारी का पदस्थापन है जबकि एक सहायक शिक्षक जय प्रकाश मेहता की प्रतिनियुक्ति की गयी है। प्रधानाध्यापिका का अता पता नहीं था तो प्रतिनियुक्ति का शिक्षक पुन प्रतिनियुक्ति पर बताए गये। चूल्हा महीनों से ठंडा पड़ा था तो चापाकल भी लंबी अवधि से आराम में दिखा। विद्यालय के अध्यक्ष रोजी रोटी की तलाश में पंजाब गये बताए गये तो सचिव को पता ही नहीं विद्यालय कब खुलना और बंद होना है। थोड़ी ही दूर पर प्रावि यादव टोला नरहैया की स्थिति थी कि प्रधान 11 बजे विद्यालय पहुंचे और दो सहायक शिक्षक कुल 31 छात्रों को संभाले हुए थे। सहायक शिक्षकों में एक अजय कुमार ने बताया कि उन्हें अकारण 20 माह से मानदेय नहीं दिया जा रहा और वे नियमित कर्तव्य निर्वहन कर रहे हैं। प्रधान अरूण कुमार राउत स्वयं पीड़ा में दिखे जिनका मानदेय 24 माह से रोक कर रखा गया है। विभागीय आदेश की अनदेखी का आलम कि लगातार दो वर्ष से बिना मानदेय के शिक्षकों से दैनिकी ड्यूटी ली जाती रही है। ऐसी परिस्थिति में व्यवस्था का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। छात्रों ने आरोप लगाया कि उन्हें छात्रवृति की राशि नहीं दी जा रही है। वहीं रसोइया ने लगातार दस माह की मजदूरी बकाया रहने की शिकायत की। जानकार बताते हैं कि यदि शिक्षकों पर

किसी प्रकार का विभागीय बकाया है तो उसकी भरपाई विभागीय कार्यवाही चला कर की जा सकती है। लेकिन मानदेय को लगातार रोके रहना कतिपय न्यायोचित कदम नहीं कहा जा सकता।

पदस्थापन में असमानता पठन पाठन में अटका रहा रोड़ा

यूनिट अनुपात में शिक्षकों के पदस्थापन को लेकर नियोजन की लंबी

प्रक्त्रिया चलायमान है। लेकिन पदस्थापन में असमानता का खामियाजा कई विद्यालयों को उठना पड़ रहा है। कई विद्यालयों में उपस्थिति दर कम रहने का मजा पर्याप्त शिक्षकों वाले विद्यालय को मिल रहा है। वहीं कई विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के कारण पठन पाठन की व्यवस्था दम तोड़ रही है। इतना ही नहीं विषयवार शिक्षकों का पदस्थापन नहीं किये जाने से छात्रों को समुचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। कई विद्यालय ऐसे भी हैं जहा की शिक्षा व्यवस्था प्रतिनियोजन पर टिकी है और विभागीय निर्देश के प्रतिकूल ''संबंधित'' प्रतिनियोजन का मनमाफिक खेल -खेलने से गुरेज

नहीं कर रहे।

असैनिक निर्माण कार्य अधर में

प्रखंड के विद्यालयों में वर्ग कक्ष की कमी के मद्देनजर भवन निर्माण के मद

में करोड़ों रूपये का व्यय हो रहा है। लेकिन 90 दिन में पूरा किया जाने

वाला निर्माण कार्य दर्जन भर विद्यालय में वर्षो से अधर में लटका है। लंबित निर्माण कार्य को पूरा करवाने की दिशा में विभागीय निर्देश

फाइलों में धूल फ ाक रहा है और उपर से ऐसे कई विद्यालयों को पुन:

भवन निर्माण के लिए चयनित कर राशि का आवंटन कर दिया गया है। सो नतीजा है कि पुराना भवन आधा अधूरा तो है ही नवनिर्मित भवन को भी पूर्णता प्राप्त होना संदेह के दायरे में है। मध्य विद्यालय चुन्नी का निमार्णाधीन

भवन वर्षो से कुर्सी स्तर पर अटका है तो म वि कटहरा का भवन लिंटर से

उपर नहीं जा पा रहा। मवि ग्वालपाड़ा में कई वर्ग कक्ष निमार्णाधीन रहने

के बावजूद फिर से भवन निर्माण की राशि का आवंटन हुआ तो प्रावि यादव

टोला नरहैया को पूर्व में आवंटित भवन अधूरा रहने के बावजूद फिर से

दूसरे भवन निर्माण की राशि आवंटन के बाद भी यह भवन भी पूर्णता की

बाट जोह रहा है। म वि झखाड़गढ मकतब का हाल देखें तो दो दफा अलग अलग भवन की राशि से निमराणधीन भवन पूरा नहीं हो पाया और तीसरे दफा भी भवन की राशि से नवाजा गया है। यह तो महज बानगी है । प्रखंड के कई ऐसे विद्यालय हैं जहा शिक्षा व्यवस्था बेहतर बनाने के उद्देश्य से व्यय हो रहे सरकार के करोड़ों की राशि उद्देश्यविहीन है।


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