सोच हो स्मार्ट तो सिटी बनेगी स्मार्ट
सुपौल [भरत कुमार झा]। सिटी को स्मार्ट बनाने के लिये सोच को स्मार्ट बनाना जरूरी होगा। पहले तो नागरिको
सुपौल [भरत कुमार झा]। सिटी को स्मार्ट बनाने के लिये सोच को स्मार्ट बनाना जरूरी होगा। पहले तो नागरिकों को चाहिये कि अपने सोच में परिवर्तन करे। गंदगी न फैलने दें, नगर परिषद की जनहित की योजनाओं में अपनी सार्थक भागीदारी निभाएं। वहीं नीति नीयंताओं को भी चाहिये कि एक बेहतर सोच के तहत योजनाओं का प्रारूप तैयार करें। सुपौल का नगर परिषद एक स्मार्ट सिटी के रूप में कदम तो बढ़ा चुका है। लेकिन अभी बहुत कुछ किये जाने की दरकार है। साफ-सफाई की दिशा में शहर के बीचोबीच सुबह शाम झाड़ूकश नजर आते हैं, कूड़ा के निष्पादन के लिये अब मुहल्लों में भी सफाई कर्मियों की टोली घूमा करती है। शहर की शाम दूधिया रोशनी में नहा रही होती है। लेकिन जल प्रबंधन के लिये आज तक कोई मास्टर प्लान तैयार नहीं किया जा सका है। शहर की नालियां बेतरतीब और बेढंग बनाई गई है। विकास की ओर अग्रसर इस शहर में सार्वजनिक शौचालय का घोर अभाव चल रहा है। अतिक्रमण तो इसे कोढ़ की तरह खाये जा रहा है।
जल निकासी में सहायक नहीं हो पा रही बेढंगी नालियां
विकास की ओर अग्रसर इस शहर में जल निकासी का कोई मास्टर प्लान कभी तैयार नहीं किया जा सका। जितनी राशि आई उस हिसाब से नाले का एक प्राक्कलन तैयार कर लिया गया। पानी कहां से निकलेगी और कहां तक जायेगी, उसका लेवल क्या होगा इसका कोई ख्याल ही नहीं रखा गया। वैसे भी नालियां अगर सिर्फ नगर परिषद बनाती तो सीधा दोष मढ़ा जा सकता था। नालियों के निर्माण में भी कई विभाग सामने आ गये और जहां-तहां नाला निर्माण कर राशि जगह लगा दी गई। न तो नगर परिषद से कोई एनओसी लेने की जरूरत और ना ही नाला उसे सुपुर्द करने की दरकार। बस काम हुआ भुगतान हुआ। परिषद ने भी जो नाला बनाया उसमें अधिकांश का कोई ओर-छोर नहीं रहा। मुहल्लों में पानी सड़क पर बहा करती है और बरसात में सड़क कीचड़मय हो जाता है।
सार्वजनिक शौचालय का है घोर अभाव
शहर में सार्वजनिक शौचालय का घोर अभाव चल रहा है। नीति नियंताओं ने इस पर कभी अपनी दृष्टि नहीं डाली। एक शौचालय जीर्ण-शीर्ण अवस्था में स्टेशन चौक पर है। इसके अलावा किसी चौक चौराहे कोई प्रसाधन नहीं। आज भी मुख्य सड़कों को छोड़ मुहल्ले की कई सड़कें स्वच्छता अभियान का मुंह चिढ़ा रही है।
सुंदर पार्क की है दरकार
सुंदर हो शहर और स्मार्ट दिखना हो तो एक पार्क अवश्य मांगता है। जो इस शहर में नहीं। वर्षो पहले से एक चिल्ड्रेन पार्क है इस शहर में जो अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। आज वह पार्क शराबियों और जुआरियों के अड्डे के रूप में मुख्य रूप से जाना जाता है। नाम चिल्ड्रेन पार्क लेकिन बच्चों के लिये किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं। हालांकि समय-समय पर उसके जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण आदि के नाम पर राशि जगह लगती रही है।
सूरत बिगाड़ रहा अतिक्रमण
एक तो बाजार व शहर की बनावट योजनाबद्ध नहीं है। उपर से अतिक्रमण ने तो इसकी सूरत ही बिगाड़ दी है। बाजार के बीचोबीच सड़कों को सुंदर बनाया गया, फुटपाथ भी छोड़े गये लेकिन स्थाई व्यवसायियों के अस्थाई दुकानों ने पूरी तरह उस पर अपना आधिपत्य जमा लिया। ऐसी दुकानें करीब-करीब सड़कों पर ही हुआ करती है। जहां ऐसे दुकानदारों की दाल नहीं गल पा रही वहां पीछे वाले दुकानदारों ने ही सड़क तक कब्जा लिया है। सब्जी मंडियां तो पूरी तरह सड़कों पर ही हुआ करती है। मुहल्लों का तो हाल यह है कि कई सड़कों के किनारे जगह ही नहीं बन पा रही है कि नाले का निर्माण हो सके। जहां कहीं हुआ भी तो लोगों ने फिर से उसे मिट्टी में मिला दिया।
शुद्ध पेयजल मुहैया कराने की योजना साकार नहीं
आम लोगों को शुद्ध जल मुहैया कराने की सरकारी योजना यहां आज तक साकार नहीं हो सकी। कई दशक पूर्व से बना विशालकाय जल टावर शहर वासियों को हमेशा से मुंह चिढ़ा रहा है। अन्य योजनायें भी शहरी क्षेत्रों में जमीन पर सफल रूप से नहीं उतर पाई है। पानी हमेशा से लोग अपने भरोसे पी रहे हैं। अर्थात जो सक्षम हैं उन्हें शुद्ध जल उपलब्ध हो पा रहा है जो सक्षम नहीं हैं वे प्रकृति की कृपा पर जलग्रहण किये जा रहे हैं।