Move to Jagran APP

दलहन से भी टूटी आस, किसान निराश

सुपौल, जागरण संवाददाता:कड़ी मेहनत और लागत के बावजूद मौसम के बदलते मिजाज के बीच किसानी करना लगातार घाट

By Edited By: Published: Tue, 19 May 2015 06:00 PM (IST)Updated: Tue, 19 May 2015 06:00 PM (IST)
दलहन से भी टूटी आस, किसान निराश

सुपौल, जागरण संवाददाता:कड़ी मेहनत और लागत के बावजूद मौसम के बदलते मिजाज के बीच किसानी करना लगातार घाटे का सौदा साबित हो रहा है। हाल के दिनों में मौसम ने इस तरह अंदाज बदला है कि एक के बाद एक फसल को अपने आगोश में समेटते किसानों के सारे मंसूबों पर पानी फेर रहा है।

loksabha election banner

हमेशा कर्ज तले दबे रहते किसान

भारत एक कृषि प्रधान देश है और इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ यहां के अन्नदाता अर्थात किसान को कहा जा सकता है। यह किसान अपनी एवं अपने परिवार की लगभग हर प्रकार की जरूरतों मसलन मासिक गृह खर्च, बच्चों की शिक्षा, कपड़ा, दवाई, शादी-विवाह इत्यादि के लिए अपनी फसलों पर निर्भर रहता है। यहां तक कि खेती-बाड़ी से संबंधित हर प्रकार की खरीद-फरोख्त के लिये भी इसकी निर्भरता अपनी फसलों पर रहती है। जिले में कई ऐसे किसान हैं जो आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न नहीं हैं और वे बैंकों, महाजन अथवा किसी अन्य प्रकार से ब्याज पर पैसे लेकर खेती करने का जोखिम उठाते हैं। बड़ी संख्या ऐसे किसानों की भी होती है जिनके पास स्वयं कृषि योग्य भूमि भी नहीं होती और ये किसी अन्य की भूमि पर अपना पैसा और मेहनत लगाकर खेती करते हैं। इन किसानों को बस एक ही आस होती है कि इन्हें इनकी मेहनत का फल अच्छी फसल के रूप में मिलेगा जिससे ये अपनी व अपने परिवार की हर प्रकार की जरूरतों को पूरा कर पाएंगे एवं अपने ऊपर चढ़े बैंक अथवा अन्य कर्ज को भी चुका पाएंगे। किन्तु इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जिले में अन्नदाता आंधी-तूफान, ओलावृष्टि असमय बारिश अथवा सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण अक्सर ही संकट से घिरा दिखाई देता है। कुदरत का कहर इनके सभी अरमानों पर पानी फेर देता है।

सरकार की राहत भी नहीं आती है काम

यह सही है कि सरकार द्वारा राहत पैकेजों की घोषणा की जाती है किन्तु यह सरकारी राहत हर किसी के नसीब में नहीं होती। विभागों द्वारा सरकारी राहत से संबंधित नियम, कायदे-कानून में आपदाओं की मार झेल रहा किसान ऐसा फंसता है कि अनुदान तक उसकी पहुंच हो ही नहीं पाती। फसल की बर्बादी से सबसे ज्यादा नुकसान की आशका पट्टे या, बटाई पर खेती कर रहे छोटे किसानों और मजदूरों को होती है चूंकि किराए पर खेत लेकर पूंजी और मेहनत का दाव लगाने वाले छोटे किसान मुआवजे से वंचित रह सकते हैं।

एक के बाद एक फसल होती रही बर्बाद

हाल के दिनों में मौसम की मार ने किसानों की कमर ही तोड़ डाली है। मौसम के बदलते मिजाज ने यहां के पिछले दो फसल को बर्बाद कर रख दिया है। रही-सही उम्मीद किसानों को दलहन से था। परन्तु एक बार फिर मौसम की मार ने दलहन फसल को चौपट कर दिया है। किसानों की स्थिति ऐसी बनी हुई है कि काटो तो खून नहीं। धान की फसल शुरूआत के समय में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था। परन्तु जब धान में बाली आनी शुरू हुई तो सुखाड़ ने फसल को ही बर्बाद कर दिया। किसान ने हिम्मत कर बड़ी लागत के साथ गेहूं फसल को बोने का काम किया। लेकिन यह फसल भी दगा दे गई।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.