बढ़ते रहे मंजिलों की ओर हम, कुछ भी न मिला तो क्या, तजुर्बा तो नया होगा..
भरत कुमार झा/सुपौल:बढ़ते रहे मंजिलों की ओर हम, कुछ भी न मिला तो क्या, तजुर्बा तो नया होगा..। शायद इन
भरत कुमार झा/सुपौल:बढ़ते रहे मंजिलों की ओर हम, कुछ भी न मिला तो क्या, तजुर्बा तो नया होगा..। शायद इन्हीं पंक्तियों से लवरेज बबीता मंजिल की ओर बढ़ती चली और उसने शिक्षा के क्षेत्र में अपने बहुमूल्य योगदान की बदौलत एक से एक अवार्ड पर आधिपत्य जमाया। बेस्ट अक्षरदूत से लेकर मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार तक का अब तक सफर तय करने वाली बबीता आज भी शिक्षा का अलख जगा रही है। मध्य विद्यालय सरायगढ़ सुपौल की प्रखंड शिक्षिका बबीता शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय व विशिष्ट योगदान के लिए आज शिक्षा के क्षेत्र में आदर्श बनी हुई है। 2005 में जब वह शिक्षिका बनी, तभी से वह शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोड़ने का अभियान चला बैठी। 2009 में मुख्यमंत्री अक्षर आंचल योजना के तहत असाक्षरों को साक्षर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को ले उसे बेस्ट अक्षरदूत का अवार्ड मिला। 2010 में शिक्षा दिवस के मौके पर प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह के हाथों वह सम्मानित हुई। बिहार दिवस के अवसर भी 22 मार्च 2011 को उसे सम्मानित किया गया। 29 मार्च 2011 को तारामंडल सभागार में अक्षर बिहार राज्य संसाधन केन्द्र आद्री के संयुक्त साक्षरता मंच के द्वारा तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी द्वारा अक्षर बिहार की ओर से स्वयंसेवक सम्मान से बबीता को नवाजा गया। वर्ष 2011 में मानव संसाधन विकास विभाग बिहार द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'सपनों को लगे पंख' में बबीता के जीवन की संघर्षगाथा को जीवनी के तौर पर अपवाद शीर्षक देकर सहेजा गया। इस पुस्तक में बबीता ने लेखक की भी भूमिका निभाई। 2012 में शिक्षा विभाग बिहार सरकार द्वारा बिहार के शताब्दी वर्ष पर शतक के साक्षी नामक पुस्तक का विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों हुआ। जिसमें बबीता ने सुपौल के तीन बुजुर्गो की जीवनी को शतक के साक्षी पुस्तक में सहेजा। इस उल्लेखनीय कार्य के लिए उसका नाम बिहार के 20 सर्वश्रेष्ठ लेखकीय टीम में शामिल किया गया। इसके लिए उन्हें 10 हजार रूपये की राशि प्रोत्साहन स्वरूप दी गई। शिक्षा दिवस 2014 पर कृष्ण मेमोरियल हॉल पटना में आयोजित समारोह में शिक्षा के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान प्रदान करने के लिए बबीता को शिक्षा का सर्वोच्च पुरस्कार मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल द्वारा दिया गया। बबीता शिक्षा के क्षेत्र में अपने विजयगाथा को यही विराम देना नहीं चाह रही। वह शिक्षा के मुहिम को और अधिक गति देते हुए इसे गरीब, दलित, शोषित, पीड़ित व कमजोर वर्गो के उत्थान तक पहुंचाना चाहती है। पुरस्कार की राशि व कोसी क्षेत्र के बाढ़ विस्थापित परिवारों के शिक्षा से वंचित नौनिहालों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोड़ने में खर्च करना चाहती है।