'न्याय के लिए भटक रही आत्मा'
जागरण विशेष
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सबहेड : तीस सालों से बिना जांच के सड़ रहा बिसरा
कैचवर्ड : लापरवाही
- जांच को ले नहीं भेजा जा रहा विधि विज्ञान प्रयोगशाला
-क्रिमिनल केस में पंद्रह दिनों के अंदर जांच के लिए भेजना है बिसरा
- बिना जांच के सड़ रहा पांच हजार से ज्यादा बिसरा सदर अस्पताल में
ब्रह्मानन्द सिंह, सुपौल
न्याय के लिए भटक रही आत्मा। यह बात भले ही सुनने में अटपटी लगे मगर पुलिस तंत्र की लेट लतीफी का एक नायाब नमूना जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल के पोस्टमार्टम रुम में देखने को मिल रहा है। पिछले तीस साल से डब्बे में बंद बिसरा न्याय की गुहार लगा रहा है। इस पोस्टमार्टम रुम में लगभग पांच हजार से ज्यादा विसरा बिना जांच के यूं ही पड़ा हुआ है। बिसरा वह चीज है जो व्यक्ति की मौत के कारण अस्पष्ट होने अथवा मृत्यु का कारण विवादित होने की स्थिति में रखा जाता है। ऐसे मामलों में मृतक का पोस्टमार्टम कराया जाता है। मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं होने के कारण ऐसे मामलों में विसरा प्रिजर्व कर विधि विज्ञान प्रयोगशाला जांच हेतु भेजे जाने के लिए रखा जाता है। विसरा प्रिजर्व करने में उदर एवं उसके अंदर की वस्तुएं, लीवर, पित की थैली, गुर्दे व आत के हिस्से के अलावा विशेष परिस्थितियों में मस्तिष्क हृदय व बच्चेदानी भी रखी जाती है। यह सब नमक के घोल में रखा जाता है। जो विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा जाता है।
लेकिन पुलिस की लापरवाही के कारण सालों-साल तक बिसरा जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला नहीं भेजे जाने के कारण मृतक को उचित न्याय नहीं मिल पाता। पोस्टमार्टम करने वाले कर्मी की माने तो यहां एक साल से लेकर तीस साल तक का लगभग पांच हजार बिसरा पड़ा हुआ है। तीस साल वाला बिसरा तो पानी हो गया है। पुलिस केस खुलने के बाद ही बिसरा जांच के लिए ले जाती है। अथवा कोई हाइलाइटेड मामला हो तो उसी का बिसरा जांच के लिए भेजा जाता है। हालांकि पुलिस अधीक्षक ने पुलिस महानिदेशक बिहार, पटना के द्वारा क्रिमिनल अपील जोसिंदर सिंह बनाम राज्य सरकार के सम्बन्धित मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित न्यायादेश के प्राप्त उद्घरण की जानकारी जिले के सभी थानाध्यक्ष व ओपी अध्यक्ष को दी है। जिसके तहत संबंधित पुलिस अधीक्षक सभी क्रिमिनल केस के संदर्भ में पोस्टमार्टम के बाद अधिकतम पन्द्रह दिनों के अंदर बिसरा जांच हेतु विधि विज्ञान प्रयोगशाला को भेजना सुनिश्चित करें। बिसरा प्राप्ति की तिथि से अधिकतम तीन माह के अंदर विधि विज्ञान प्रयोगशाला जांच प्रतिवेदन संबंधित जिला पुलिस अधीक्षक को अनिवार्य रुप से भेज देंगे। सभी पुलिस अधीक्षक प्रत्येक माह स्थिति की समीक्षा करेंगे और विलम्ब के मामलों में स्पष्टीकरण प्राप्त कर यथा संभव दोषी पदाधिकारी व कर्मचारियों की चरित्र पुस्त में प्रतिकूल अभियुक्त दर्ज करेंगे। पुलिस उप महानिरीक्षक प्रत्येक तीन माह पर अपने क्षेत्र के विसरा परीक्षक से संबंधित मामलों की समीक्षा करेंगे और आवश्यकतानुसार पुलिस अधीक्षक को दिशा निर्देश देंगे। विधि विज्ञान प्रयोगशाला में विलम्ब की स्थिति मे निदेशक विधि विज्ञान प्रयोगशाला संबंधित पदाधिकारी व कर्मी के विरुद्ध नियमानुसार दण्डात्मक कार्रवाई हेतु आवश्यक कार्रवाई करेंगे। निदेशक विधि विज्ञान प्रयोगशाला में प्रत्येक माह समीक्षा कर यह सुनिश्चित करेंगे कि विधि विज्ञान प्रयोगशाला विसरा जांच हेतु प्राप्ति तिथि के तीन माह के अंदर जांच कार्य पूरा कर जांच प्रतिवेदन संबंधित पुलिस अधीक्षक को भेज दिया गया है। निदेशक इस आशय का प्रमाण पत्र प्रपत्र में पुलिस मुख्यालय एवं अपराध अनुसंधान विभाग को अनिवार्य रुप से समर्पित करेंगे। अगर विधि विज्ञान प्रयोगशाला में विसरा की प्राप्ति की तिथि के तीन माह के अंदर विसरा जांच प्रतिवेदन संबंधित पुलिस अधीक्षक को नही भेजा जा सका है तो विलम्ब का स्पष्ट कारण। निदेशक मासिक प्रतिवेदन में अवश्य करेंगे तथा उक्त कारण का समाधान अधिकतम पन्द्रह दिनों के अंदर अनिवार्य रुप से कर लेंगे। विडम्बना देखिए कि इसके बावजूद विसरा जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला में भेजे जाने के कार्य में तेजी नहीं आई है।
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कोट
पोस्टमार्टम के बाद बिसरा प्रिजर्व कर पुलिस को उसी समय चिकित्सक सौंप देता है। इसमें स्वास्थ्य विभाग की कोई भूमिका नहीं है। हजारों विसरा जो पड़ा हुआ है वह पुलिस का काम है जांच के लिए भेजना।
डा.उमाशंकर मधुप
सिविल सर्जन
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कोट
सभी थाने के पुलिस को यह आदेश दिया गया कि बिसरा प्रिजर्व करने के बाद जल्द से जल्द जांच के लिए भेजें और पन्द्रह दिनों के अंदर जांच रिपोर्ट लाकर केस में चार्जशीट करें। अगर कोई लापरवाही बरतता है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
सुधीर कुमार पोरिका
एसपी, सुपौल