खून के रिश्ते में हैं सबके चाचा और भईया, जानिए सिवान के मोबिन की कहानी
सिवान के मोहम्मद मोबिन एक एेसे शख्स हैं जिनके सगे संबंधी तो हैं लेकिन खून की वजह से उनके हर महीने कई नाते रिश्ते जुड़ जाते हैं। मोहम्मद मोबिन ने रक्तदान को अपना धर्म मान लिया है।
सिवान [कीर्ति पांडेय]। उनका खून है ओ पॉजिटिव और नारा है बी पॉजिटिव। नाम है मुहम्मद मोबीन। खून-खराबे के लिए कुख्यात रहे सिवान में जीवन बचाने वाले खून की बात छिड़ती है तो उनका नाम अदब से लिया जाता है। वह अपने खून से सैकड़ों लोगों का जीवन बचा चुके हैं। खुद सिवान ब्लड बैंक के पास 50 बार से अधिक रक्तदान का रिकॉर्ड दर्ज है।
43 साल के मोबीन सदर अस्पताल में अक्सर किसी मरीज के लिए खून की व्यवस्था करते मिल जाते हैं। लोग भैया-चाचा कहकर उनसे मदद मांगते हैं और वह किसी को मना नहीं करते।
पहले रक्तदान की कहानी दुखी कर देती है
1998 में उनके मोहल्ले में अजरुन नाम के एक मरीज की चेचक के दौरान हालत बिगड़ी और चिकित्सकों ने रक्त की व्यवस्था करने को कहा तो अजरुन के माता-पिता ने साथ खड़े मो. मोबीन की तरफ आस भरी नजरों से देखा था। रक्त की जांच हुई तो पता चला कि उनका ग्रुप ओ पॉजिटिव है।
खून तो दिया लेकिन अजरुन को बचाया नहीं जा सका। इतना बताकर मोबीन उदास हो जाते हैं। फिर कहते हैं कि उसी दिन मुङो पता चला कि मेरी रगों में बहने वाला खून कितना कीमती है और समय पर किसी को मिल जाए तो जीवनदान मिल जाए। उसके बाद ही रक्तदान को जीवन का ध्येय बना लिया।
पिता का साया सिर से उठ चुका था। माता से वह पहले इस बारे में बात नहीं करते थे, लेकिन कुछ दिनों के बाद उन्हें पता चला तो आशीर्वाद मिल गया।
वरदान का उठा रहे फायदा
ब्लड बैंक के सचिव डॉ. अनिल कुमार सिंह बताते हैं कि न जाने कितने लोगों की रगों में मोबीन का खून दौड़ रहा। प्रकृति ने उन्हें ओ पॉजिटिव ग्रुप दिया है और मुङो लगता है कि पूरी दुनिया में इसका सबसे अधिक फायदा वही उठा रहे हैं।
अविवाहित रहने का लिया फैसला
वह 1998 से रक्तदान कर रहे हैं। कोई मरीज नहीं संपर्क करता था तो भी हर तीन महीने पर ब्लड बैंक जाकर रक्तदान कर आते थे। अपने इस मिशन के लिए ही उन्होंने अविवाहित रहने का फैसला ले लिया। अम्मी का भी छह साल पहले देहांत हो चुका है। छोटी बहन की शादी हो गई। अब पूरा जीवन रक्तदान आंदोलन को समर्पित है।
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दीवारों पर लिखी है नेकी की इबारत
सिवान सदर अस्पताल की दीवारें मोबीन के नेक प्रयास की गवाह बनी हैं। अस्पताल के नोटिस बोर्ड पर उनका फोन नंबर लिखा हुआ है। ओपीडी क्षेत्र में उनका बैनर लगा है। ओपीडी के बाहरी इलाके में जहां मरीज बैठते हैं, वहां भी इनका बैनर दिखता है ताकि लोग जरूरत पड़ने पर संपर्क कर सकें। अस्पताल प्रशासन उनकी प्रशंसा करता नहीं अघाता। बिहार दिवस पर राज्य सरकार ने उन्हें सम्मानित किया।
मोबीन कहते हैं कि असली सम्मान तो तब मिलता है, जब मरीज के परिजनों की आंखों से आंसू छलक रहे होते हैं और होठों पर कृतज्ञता की मुस्कान होती। यही उनकी असली खुशी है।
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