पुस्तक बिना पढ़ाई, गुणवत्ता मिशन हवाई
संसू, मैरवा (सिवान) : प्रखंड में प्रारंभिक विद्यालयों में गुणवत्ता शिक्षा मिशन की सफलता के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। बच्चों के हाथ अब तक पुस्तकें नहीं पहुंच सकी है। बिना पुस्तक के पढ़ाई कैसे हो यह न तो शिक्षक की समक्ष में आ रहा है और न ही छात्रों को ही बिना पुस्तक के पढ़ाई समझ में आ रही है। बच्चे स्कूल आते हैं। कक्षाएं भी संचालित होती हैं। दोपहर का भोजन विद्यालय में उन्हें मिल जाता है। फिर बच्चे घर चले जाते हैं। यह उनका दैनिक रूटीन है। लेकिन पुस्तक के अभाव में बच्चों को पढ़ाई समझ में ही नहीं आती। आज जो पढ़ाया गया, उसकी पुनरावृत्ति घर पर नहीं हो पाती। पुस्तक वाचन सुलेख संभव नहीं हो पा रहा है। कक्षा आठवीं में पढ़ने वाले बच्चों का हाल तो ज्यादा ही बुरा है। उन्हें विगत वर्ष भी सातवीं की पुस्तकें नहीं मिल सकी थी। बिना पुस्तक के ही वर्ष बीत गया। सत्र समाप्त होने को आया तो फिर अप्रैल-मई दो माह तक हिन्दी-गणित की विशेष कक्षाएं संचालित हुई। बिना पुस्तक पढ़े साल बीत गया तो ऐसे में छात्रों के लिए दो माह और बिना पुस्तक के ही विशेष कला का संचालन क्या मायने रखता है। सातवीं पास कर आठवीं के छात्र बन चुके छात्रों से जब इस संदर्भ में बातचीत की जाती है तो दर्द छलक पड़ता है। नीरज कुमार, सूरज कुमार, शनिक कुमार, आबिद हुसैन, विवेक कुमार, प्रदीप कुमार, विकास कुमार, शबनम खातून, नेहा कुमारी, रुक्साना, प्रियंका कुमारी काफी आशंकित है। उन्हें भय सता रहा है कि पिछले साल तो पुस्तकें मिली नहीं, इस साल भी विलंब होने से लगता है कि पुस्तक की प्रतीक्षा में ही सत्र बीत जाएगा। वे कहते हैं कि भविष्य चौपट हो रहा है। बाजार में भी बीटीसी की पुस्तकें नहीं मिल पाती हैं। छात्रों की समझदारी एवं चिंता इस बात पर झलकती है कि वे कहते हैं कि हमें छात्रवृत्ति व पोशाक राशि नहीं चाहिए। हमें समय पर पुस्तक उपलब्ध कर दी जाए। प्रखंड साधनसेवी रमेश कुमार सिंह का कहना है कि प्रखंड में प्राथमिक व मध्य विद्यालय के किसी भी कक्षा की पुस्तकें बच्चों को उपलब्ध नहीं हो सकी है। वे इस बात से सहमत नजर आते हैं कि इसका प्रभाव गुणवत्ता शिक्षा पर पड़ रहा है। कक्षा तीन से पांच वीं तक कमजोर बच्चों को अलग समूह में रखकर पढ़ाने का निर्देश शिक्षकों को मिला है। शिक्षक कहते हैं कि बिना पुस्तक कमजोर बच्चे तेज हो जाएंगे क्या?