बेलसंड की फिजा में महकता है समाजवाद
विधानसभा चुनाव भले ही सितंबर-अक्टूबर में हो, लेकिन उसके अनुपात में जिले में चुनावी पारा कुछ ज्यादा ही चढ़ चुका है। खासकर बेलसंड विधानसभा क्षेत्र में। चित्तौडग़ढ़ के नाम से ख्यात यह क्षेत्र समाजवादियों का गढ़ रहा है।
सीतामढ़ी [नीरज]। विधानसभा चुनाव भले ही सितंबर-अक्टूबर में हो, लेकिन उसके अनुपात में जिले में चुनावी पारा कुछ ज्यादा ही चढ़ चुका है। खासकर बेलसंड विधानसभा क्षेत्र में।
चित्तौडग़ढ़ के नाम से ख्यात यह क्षेत्र समाजवादियों का गढ़ रहा है। भाग्य तो विभिन्न पार्टियों ने आजमाए, लेकिन वे समाजवादियों के आगे नहीं टिक सके। बल्कि, हर समाजवादी को मतदाताओं ने मौका दिया।
बेलसंड विस क्षेत्र से सर्वाधिक चार जीत का रिकॉर्ड डाॅ. रघुवंश प्रसाद सिंह के नाम है। ठाकुर रामनंदन सिंह ने भी तीन बार जीत दर्ज की। इन दोनों को छोड़ किसी भी जनप्रतिनिधि को एक से अधिक जीत नसीब नही हुई है।
विजेता बदलने का सिलसिला 1990 से ही जारी है। इसके पूर्व 1952 में पहली जीत कांग्रेस प्रत्याशी ठाकुर गिरजानंदन सिंह ने दर्ज की थी। 1957 व 62 के चुनाव में सोशलिस्ट प्रत्याशी ठाकुर रामानंदन सिंह विजयी हुए।
1967 में उलटफेर करते हुए कांग्रेस प्रत्याशी चंदेश्वर नारायण सिंह ने यहां कांग्रेस का परचम लहराया। मगर, 1969 के चुनाव में पुन: सोशलिस्ट पार्टी के ठाकुर रामानंदन सिंह को जीत दिलाकर जनता ने अपनी पसंद जगजाहिर कर दी।
1972 का चुनाव छोड़ दें तो 1977 में जनता पार्टी से तो 1980 व 1985 में डाॅ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने लोकदल के टिकट पर लगातार जीत दर्ज की। यह पहला मौका था जब किसी ने बेलसंड सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई। यह अब तक यहां रिकॉर्ड है।
1990 के विधानसभा चुनाव में लोकदल से ही मैदान में उतरे डाॅ. रघुवंश को कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह से हार का सामना करना पड़ा। 1995 में वे जनता दल के टिकट पर जनता के बीच पहुंचे तो जनता ने फिर उन्हें विधानसभा भेजा।
लेकिन, इसके बाद उन्होंने वैशाली की राह पकड़ी। वहां से लोकसभा चुनाव लड़े और सांसद बन गए। उनकी छोड़ी हुई बेलसंड सीट एक बार फिर शायद समाजवादियों को ही तलाश रही थी।
लेकिन, उसके बाद हर चुनाव में विधायक बदलने का सिलसिला शुरू हुआ। 1996 के उपचुनाव में समता पार्टी से मैदान में उतरे वृषिण पटेल ने राजद प्रत्याशी नागेंद्र प्र. सिंह को पराजित किया।
2000 के चुनाव में समता पार्टी के प्रत्याशी राणा रणधीर सिंह चौहान को शिकस्त देकर राजद के रामस्वार्थ राय विधायक बने। लेकिन, अगले ही चुनाव 2005 के फरवरी में लोजपा प्रत्याशी सुनीता सिंह चौहान ने राजद प्रत्याशी रामस्वार्थ राय को पराजित कर दिया।
जनादेश स्पष्ट नहीं होने के चलते अक्टूबर 2005 में फिर चुनाव हुआ तो सुनीता सिंह चौहान लोजपा छोड़ जदयू के टिकट पर मैदान में उतरीं। राजद ने रामस्वार्थ राय की जगह संजय गुप्ता को प्रत्याशी बनाया।
संजय ने सुनीता को हरा दिया। लेकिन, अगले ही चुनाव में जदयू प्रत्याशी सुनीता ने संजय गुप्ता से बदला चुकाते हुए जीत दर्ज की। आगामी चुनाव में सुनीता सिंह चौहान को फिर टिकट मिलने की उम्मीद है।
यदि यह संभव हुआ तो इस बार उनके सामने राजद प्रत्याशी नहीं होंगे। मुकाबला होगा तो एनडीए के किसी प्रत्याशी से। वैसे लोजपा प्रत्याशी के रूप में पूर्व विधायक नगीना देवी एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुई है। हालांकि, भाजपा समेत गठबंधन के अन्य दल भी यहां से चुनाव लडऩे के लिए दावेदार हैं।