फिटनेस का मतलब नहीं जानते लोग
बस व ट्रक समेत खटारा वाहनों में लगे हार्न से कान को फाड़कर हृदय को झकझोर देने वाली निकल रही तेज ध्वनि जब सड़क से गुजरती है तो सहसा ही यात्रियों की धड़कनें तेज हो जाती हैं।
सीतामढ़ी। बस व ट्रक समेत खटारा वाहनों में लगे हार्न से कान को फाड़कर हृदय को झकझोर देने वाली निकल रही तेज ध्वनि जब सड़क से गुजरती है तो सहसा ही यात्रियों की धड़कनें तेज हो जाती हैं। जिले के सड़कों पर काला काला धुआं छोड़ रही करीब 60 फीसद छोटी-बड़ी वाहनें चल रही हैं, जिनकी लाइफ समाप्त हो चुकी है। वाहन की सेहत पड़ताल करने के लिए जिले में एक भी निबंधित फिटनेस केंद्र नहीं ह । रोजाना सैकड़ों वाहन नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए जिले के सड़कों पर सरपट दौड़ रही है। जब फिटनेस की बात आती है प्राय: लोग येन केन प्रकारेण मुंह मोड़ लेते हैं।
क्या है फिटनेस : फिटनेस क्या है? आम तौर पर फिटनेस का मतलब लोग अपनी सेहत से लगाते हैं। प्राय: लोगों को यह जानकारी नहीं है कि वाहन को सड़क पर चलाने के लिए वाहन की फिटनेस जांच जरूरी है। प्रदूषण जांच के नाम पर कुछ लोग अपनी दुकानदारी कागजों पर चला रहे हैं। निर्धारित राशि लेकर कागजी रिपोर्ट थमा दिया जा रहा है। जबकि प्रदूषण जांच की दुकानदारी के बारे में जिला परिवहन विभाग वैधानिक रूप से अंजान है। हालांकि परिवहन विभाग की जिम्मेदारी है कि वह वाहनों को फिटनेस का प्रमाण पत्र दें। सड़क पर वहीं वाहन चल सकते हैं जो परिवहन विभाग से फिटनेस के तय मापदंड पर खरा उतरते हैं।
क्या कहता है नियम : सड़क पर सरपट दौड़ने वाला नए व्यवसायिक वाहन के दो साल बाद सेहत की जांच जरूरी है। निजी वाहन के फिटनेस की पड़ताल 15 साल पर जरूरी है। जबकि प्रदूषण की जांच प्रति छह माह पर जरूरी है। आलम यह है कि विभाग के औसतन पदाधिकारी निजी नंबर वाली वाहनों का उपयोग भाड़े पर कर रहे हैं।
नियमों की धज्जियां उड़ा रही वाहनों की लाइट
सख्त नियम के बावजूद वाहनों की लाइट विभाग को मुंह चिढ़ाती नजर आती है। सड़कों पर दौडऩे वाली वाहन बगैर फाग लाइट के चलते हैं। हेड लाइट भी यातायात की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। बैक व पार्किंग लाइट के नियम लोग नहीं जानते। सड़कों पर ¨सगल हेड लाइट वाली, मिनी बस, ट्रक, पिकअप वैन व टाटा 407 आराम से सफर कर रही है। हाल ही में परिवहन विभाग ने वाहन एजेंसी मालिकों की बैठक कर वहां से निकलने वाली वाहनों पर रिफलेक्टर लगाने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद सड़क पर दौड़ रही 80 फीसद वाहनों में रिफलेक्टर नजर नहीं आता है।
क्या कहता है कानून : परिवहन कानून के तहत सड़क पर दौडऩे वाले छोट - बड़े वाहनों में हेड लाइट, बैक लाइट, इंडिकेटर, फाग लाइट, रिफलेक्टर व पार्किंग लाइट होनी चाहिए। अगर इन में से एक भी सिस्टम उपलब्ध नहीं है तो यह कानून का उल्लंघन है। मोटर व्हेकिल एक्ट 1988 के नियम 56 के अंतर्गत फिटनेस के अभाव में वाहन का रजिस्ट्रेशन अमान्य होगा। साथ ही परमिट, इंश्योरेंस सभी अमान्य हो जाएगा। एक्ट 172/92 के अनुसार विभिन्न तरह के लाइट का नहीं होना फिटनेस का अभाव माना जाएगा और न्यूनतम 5 हजार रुपये जुर्माना देना होगा।
कहते हैं बस ऑनर एसोसिएसन के अध्यक्ष : बस ऑनर एसोसिएसन से अध्यक्ष दुष्यंत कुमार बताते हैं कि सड़कें संकीण होती जा रही हैं। दिन पर दिन सड़क जर्जर हो रही है और टैक्स पूरा लिया जाता है। जर्जर सड़क पर वाहन चलाने को मजबूर है। लिहाजा आए दिन सड़क की जर्जरता के कारण बसों की मरम्मत में अनावश्यक खर्च हो रहे हैं। नियम का उल्लंघन करने वाले के विरुद्ध विभाग कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन विभाग से मिलने वाली सुविधा भी उपलब्ध हो।
इनसेट
ट्रैक्टर, ट्रॉली व जुगाड़ के वाहन
सीतामढ़ी : एक ओर विभाग नियमों का सख्ती से पालन कराने के लिए फरमान जारी कर रहा है तो दूसरी ओर जुगाड़ व टेक्नॉलाजी से संचालित वाहन इन विभाग को ठेंगा दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं। ट्रैक्टर, ट्राली और जुगाड़ शहर में जाम की स्थिति भी उत्पन्न करते हैं। इन जुगाड़ के वाहनों पर विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। बैलगाड़ी व ठेलागाड़ी में प¨पग सेट जोड़कर सड़कों पर सरपट दौड़ाया जा रहा है। महानगरों में दम तोड़ चुकी बस व मिनी बसें स्कूली बच्चों को ढ़ोने का काम कर रही है। इनके सामने न तो नियम है और न ही कानून का पालन।
जर्जर सड़क हादसों का सबब : जिले के विभिन्न इलाकों में जर्जर व निर्माणाधीन सड़क हादसे का सबब बन रहे हैं। सड़कों पर वाहन चलाने के दौरान चालक संतुलन खो देता है, लिहाजा हादसा आम बात है। जिले में कही भी ट्रैफिक सिग्नल नहीं है। लिहाजा लोग ट्रैफिक सिग्नल के मायनों से अनजान है। ऐसे में रोजाना नियम टूटते हैं। परिणति स्वरूप हादसे होते हैं।
यातायात नियमों का उल्लंघन : लोग सड़क पर वाहन लेकर निकलते ही यातायात नियमों को तोड़ते नजर आते हैं। परिवहन विभाग द्वारा लोगों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करने की कभी पहल नहीं की जा सकी है। लिहाजा नियमों से अंजान लोग अनजाने में ही सही रोजाना नियम तोड़ ही जाते हैं। जिले में कुछ लोग अनजाने में ही यातायात नियमों की हवा निकाल रहे हैं तो ज्यादातर लोग जानबूझ कर नियमों को तोड़ यातायात व्यवस्था का कबाड़ा निकाल रहे हैं। गलत दिशा में वाहन चलाने की बात हो या बगैर हेलमेट के वाहन चलाना, दोनों ही शानकी बात है। हैरत तो यह कि जिले की सड़कों पर नाबालिग बच्चों को रफ्तार के साथ वाहन दौड़ाते भी देखा जाता है। वहीं जगह जगह क्यूआरटी की टीम हो अथवा वर्दी के नुमाइंदे। जांच के नाम पर ऐसे नाबालिग बच्चों को वाहन चलाते देख रोकते तो जरूर हैं लेकिन अधिकांश को कुछ राशि लेकर छोड़ देते हैं।