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उधार के डॉक्टर के भरोसे चल रही पशुओं की चिकित्सा

डुमरा स्थित जिला पशु चिकित्सालय उधार के डॉक्टर के भरोसे चल रहा है। यहां कहने को तो डॉक्टर, कंपाउंडर, ड्रेसर, क्लर्क, चपरासी, स्वीपर व नाइट गार्ड के एक-एक पद स्वीकृत हैं लेकिन वर्तमान में मात्र एक अनुसेवक ही यहां नियमित रूप से पदस्थापित हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Mar 2017 01:36 AM (IST)Updated: Sat, 25 Mar 2017 01:36 AM (IST)
उधार के डॉक्टर के भरोसे चल रही पशुओं की चिकित्सा
उधार के डॉक्टर के भरोसे चल रही पशुओं की चिकित्सा

सीतामढ़ी। डुमरा स्थित जिला पशु चिकित्सालय उधार के डॉक्टर के भरोसे चल रहा है। यहां कहने को तो डॉक्टर, कंपाउंडर, ड्रेसर, क्लर्क, चपरासी, स्वीपर व नाइट गार्ड के एक-एक पद स्वीकृत हैं लेकिन वर्तमान में मात्र एक अनुसेवक ही यहां नियमित रूप से पदस्थापित हैं। शेष पद प्रभार के सहारे है। बथनाहा प्रखंड में पदस्थापित पशु चिकित्सक को जिला पशु चिकित्सालय का प्रभार दिया गया है, जो सप्ताह में चार दिन ही यहां आते हैं। जागरण की पड़ताल में यहां कई खामियां उजागर हुईं जो सरकार के पशुधन की सुरक्षा के दावों की पोल खोल रही है।

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कितने पशु आते हैं उपचार के लिए :

कहने को तो जिले के 17 प्रखंडों में 31 पशु अस्पताल हैं, लेकिन वे मात्र सात चिकित्सकों के सहारे चलाए जाते हैं। ऐसे में सभी अस्पतालों में हर रोज डॉक्टर नहीं जा पाते हैं। एक डॉक्टर के सहारे चार-पांच अस्पताल चलाए जा रहे हैं। जिला पशु चिकित्सालय के अतिरिक्त प्रभार में कार्यरत पशुधन सहायक विजय कुमार श्रीवास्तव की मानें तो प्रतिदिन कम से कम 10 पशुपालक अपने पशुओं का इलाज कराने यहां आते हैं। लावारिस पशुओं के इलाज में संसाधन की कमी बाधक है।

वर्षो से चिकित्सक के पद खाली :

जिले के 31 पशु अस्पतालों में वर्षों से पशु चिकित्सकों के पद खाली हैं। अनुबंध पर नौ चिकित्सकों की बहाली की गई थी। ¨कतु अनुबंध की समय सीमा खत्म होने के बाद से चिकित्सकों का पद खाली पड़ा है। यही स्थिति जिला पशु चिकित्सालय की भी है। जिला अस्पताल होने के बावजूद न तो यहां चिकित्सक हैं और न ही कंपाउंडर। मात्र एक अनुसेवी चंद्रिका राम के सहारे पशु चिकित्सालय चल रहा है। अतिरिक्त प्रभार में पदस्थापित पशुधन सहायक ने बताया कि पशुओं की मौसमी बीमारियों की दवाएं यहां उपलब्ध हैं जो पशुपालकों को दी जाती हैं।

कहते हैं पशुपालक :

पशुपालक वीरेंद्र भगत, प्रियंका कुमारी, मो. लाल, देवनारायण ठाकुर, मदन साह, राम विश्वास राय व प्रभु कुमार बताते हैं कि जिला पशु चिकित्सालय में चिकित्सक तो नहीं हैं, लेकिन कंपाउंडर पशुओं की जांच कर दवा देते हैं। चिकित्सक के नहीं रहने से काफी परेशानी होती है। गंभीर बीमारी का इलाज यहां संभव नहीं है। इसके लिए निजी पशु चिकित्सकों का सहारा लेना पड़ता है।


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