Move to Jagran APP

रामायणकालीन हरसार तालाब का वजूद मिटाने में लगे हैं अधिकारी

सीतामढ़ी में स्थित रामायणकालीन हरसार तालाब का वजूद संकट में है। आम जनता की बेपरवाही और प्रशासनिक अधि‍कारियों की लापरवाही के चलते तालाब का अतिक्रमण होते जा रहा है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Wed, 22 Mar 2017 04:02 PM (IST)Updated: Wed, 22 Mar 2017 10:59 PM (IST)
रामायणकालीन हरसार तालाब का वजूद मिटाने में लगे हैं अधिकारी
रामायणकालीन हरसार तालाब का वजूद मिटाने में लगे हैं अधिकारी

सीतामढ़ी [जेएनएन]। सुरसंड-सीतामढ़ी एनएच 104 से सटे सुरसंड प्रखंड मुख्यालय स्थित हरसार तालाब कभी इलाके में लोक आस्था का प्रतीक था। लेकिन आम जनता की बेपरवाही व प्रशासनिक लापरवाही के चलते अब इस रामायणकालीन हरसार तालाब का वजूद खतरे में पड़ गया है।

loksabha election banner

कभी इस तालाब के जल से घर आंगन को पवित्र किया जाता था और छठ जैसे पर्व इसके तट पर होते थे। लेकिन लगातार बढ़ रहे अतिक्रमण के चलते आज यह तालाब कूड़ेदान में तब्दील हो गया है। तालाब धीरे धीरे सूखता जा रहा है। लोग तालाब की जमीन का अतिक्रमण करते जा रहे हैं। इतना ही नहीं अब इस तालाब में लोग शौचालय और नाली का पानी भी बहा रहे हैं।

हालत यह है कि अब इसका पानी पशु-पक्षी के पीने लायक भी नहीं रह गया है। प्रदूषण की वजह से इस तालाब में मछली पालन भी नहीं होता है। एक तरफ तालाब अतिक्रमण का शिकार है, तो दूसरी ओर गंदगी व कुंभी उग आने से इसका अस्तित्व समाप्त हो रहा है।

यह भी पढ़ें: विश्व जल दिवस विशेष : पटना में तालाब तोड़ रहे दम, वाटर लेवल हो रहा कम

इतिहास के पन्नों में तालाब
नेपाल सीमा से ठीक सटा सुरसंड मंदिरों की नगरी के रूप में उतना ही जाना जाता है जितना तालाबों की नगरी के रूप में । त्रेता युग में राम-जानकी विवाहोत्सव के दौरान जब देवी-देवता व साधु-संत जनकपुर पहुंचने लगे तो उनके विश्राम के लिए एक ही दिन में इलाके में तालाब की खुदाई व विश्रामालय का निर्माण कराया गया था।इस दौरान अकेले सुरसंड में 50 से अधिक तालाब खुदवाए गए। इनमें अब गिनती के तालाब ही बचे हैं। इन्हीं तालाबों में से एक है हरसार तालाब।

बाद में इस हरसार तालाब का जीर्णोद्धार सुरसंड के राजा सुरसैन ने कराया था। तालाब की धार्मिकता को देखते हुए किनारे पर सीढिय़ों निर्माण कराया था। तकरीबन तीन एकड़ पांच डिसमिल जमीन में निर्मित तालाब को स्वच्छ रखने के लिए आधा दर्जन सिपाहियों की भी तैनाती की गई थी। तब एक तिनका भी तालाब के अगल-बगल में नहीं फेंका जाता था। अगर गलती से किसी ने तालाब के आसपास गंदगी भी फैला दी तो उसे दंडित किया जाता था।

यह भी पढ़ें: जल संरक्षण: वक्त रहते संभल जायें, नहीं तो बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ेगा       

राजा खुद अन्य तालाबों की तरह इसका निरीक्षण भी करते थे। लेकिन इलाके में आती भूकंप व बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं तथा रखरखाव के अभाव में तालाब की सीढिय़ां ध्वस्त होती चली गई। 70 के दशक में तालाब का सरकारीकरण होते ही बर्बादी की कहानी शुरू हुई, जो अब भी जारी है।

शहर में होते हुए भी बदहाल
सीतामढ़ी-सुरसंड एनएच 104 से ठीक सटे सुरसंड शहर में अवस्थित है हरसार तालाब। इसके पास ही अवस्थित है राधा कृष्ण काला मंदिर। पूर्व में हरसार तालाब तीन एकड़ पांच डिसमिल जमीन में थी। लेकिन लगातार बढ़ती आबादी व तालाब की जमीन का अतिक्रमण कर मकानों के निर्माण के चलते अब यह तालाब महज 1.5 एकड़ में सिमट कर रह गया है। अब गंदगी के साथ जलकुंभी व घास सड़कर खुद प्रदूषण फैला रहा है। तालाब से निकली सडांध भी प्रदूषण फैलाने में लगी है।

यह भी पढ़ें:  भोजपुर में जल संकट, संरक्षण को ले गैर जवाबदेही से बिगड़ रहे हालात

70 के दशक में सरकारीकरण
70 के दशक में इस तालाब का सरकारीकरण हो गया। उसके बाद अंचल को प्रतिवर्ष राजस्व मिलने लगा। लेकिन इस तालाब के संरक्षण के प्रति सरकारी तंत्र बेपरवाह बन गया। अतिक्रमण के चलते तालाब का दायरा सिमटता चला गया। वहीं गंदगी के चलते तालाब का पानी प्रदूषित होता चला गया। 

यह भी पढ़ें: जलस्रोतों के जीवित रहने पर ही जल संचय संभव


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.