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बगही धाम :'परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर': रामाज्ञा दास

फोटो 19 एसएमटी 22 से 25 तक सीतामढ़ी। बगही धाम में चल रहे श्री सीताराम नाम जप महायज्ञ के प्रवचन

By Edited By: Published: Mon, 20 Feb 2017 01:07 AM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2017 01:31 AM (IST)
बगही धाम :'परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर': रामाज्ञा दास
बगही धाम :'परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर': रामाज्ञा दास

फोटो 19 एसएमटी 22 से 25 तक

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सीतामढ़ी। बगही धाम में चल रहे श्री सीताराम नाम जप महायज्ञ के प्रवचन पंडाल में रविवार की शाम बाबा रामाज्ञा दास ने भक्तों को संबोधित किया। उन्होंने रामकथा के प्रसंग में हनुमान के लंका गमन व विभीषण से मुलाकात का मनमोहक वर्णन किया। पंडाल में प्रवचन सुनने के लिए सीतामढ़ी व आसपास के जिलों से आए हजारों श्रद्धालु बैठे थे। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं, बच्चे व बुजुर्ग शामिल थे।

साधु के लिए संपूर्ण विश्व एक परिवार

बाबा रामाज्ञा दास ने कहा कि साधु बनने का मतलब है कि संपूर्ण विश्व उसका परिवार है और इस परिवार की सेवा ही उसका कर्तव्य है। उन्होंने इस उक्ति से भक्तों को समझाने का प्रयत्न किया-'वृक्ष कबहुं नहीं फल भच्छे, नदी न संचे नीर, परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर।'बाबा ने कहा कि मंदिर बनाने के लिए अक्सर लोग खराब जमीन दे देते हैं। लेकिन महात्मा लोग उस जमीन को अपने परिश्रम से अच्छी बनाते हैं। वहां मंदिर बनाकर उसमें भगवान की प्रतिमा स्थापित करते हैं। तब वही खराब जगह अच्छी बनकर प्रसिद्ध हो जाती है।

धूमिल हो रही गुरु की प्रतिष्ठा

बाबा ने कहा कि गुरु की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। लोग बात-बात पर गुरु का नाम लेकर अनुशासहीनता करते हैं। गुरु ऐसा करो, गुरु वैसा करो, यह ला दो, वह कर दो। ऐसे लोग गुरु शब्द के महत्व को नहीं समझते। गुरु सत्कर्म की ओर ले जाते हैं। जीवन सत्कर्म से बनता है। गुरु की सेवा से ही गुरु की कृपा मिलती है। गुरु की कृपा से ही भगवान की कृपा मिलती है। उन्होंने कहा कि गुरु ने अच्छे कार्य की प्रेरणा दी। मैं अपने गुरु से संतुष्ट हूं। लोग गुरु को खोजते रहते हैं। गुरु बदलते रहत हैं। उन्होंने कहा कि साधु से हठ करके उसस संबंध बनाना चाहिए। जो जोड़ने का काम करता है वह सज्जन है और जो तोड़ने का काम करे वह दुर्जन है।

राक्षसों की लंका में हनुमान को मिले राम भक्त विभीषण

बाबा ने कहा कि माता सीता की खोज में लंका गए हनुमान जी की मुलाकात विभीषण से हुई थी। वे राम का नाम जप रहे थे। राक्षसों की लंका में सद्पुरुष कहां से आया, यह सवाल उनके मन में उठ रहा था। बाद में उन्हें विश्वास हुआ। वहीं दूसरी ओर कालनेमी नामक राक्षस साधु का वेश धारण कर लंका में घूम रहा था। वह हनुमान जी की योजना की टोह लेने के लिए भेजा गया था। लेकिन हनुमान जी ने उसकी भी पहचान कर ली। साधु की पहचान करनी चाहिए।


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