महज 16 प्रतिशत लोग कर रहे शौचालय का उपयोग
सीतामढ़ी। स्मार्ट सिटी की परिकल्पना के साथ ही अब छोटे - छोटे शहरों की सुविधा व आवश्यकता तलाशी जाने ल
सीतामढ़ी। स्मार्ट सिटी की परिकल्पना के साथ ही अब छोटे - छोटे शहरों की सुविधा व आवश्यकता तलाशी जाने लगी है। इस क्रम में सबसे पहली आवश्यकता शौचालय की है। सरकार द्वारा 'जहां सोच, वहां शौचालय' के स्लोगन के जरिए लोगों में जागरूकता फैलाई तो जा रही है। लेकिन शौचालय निर्माण कराने के प्रति न केंद्र और नहीं राज्य सरकार ही उतनी सक्रिय नजर आती है। शौचालय के प्रति दावे केवल पोस्टर व नारों तक सीमित है। उधर, जमाना बदला, लोग बदले, समय की रफ्तार बदली, लेकिन नहीं बदली लोगों की मानसिकता। खास कर सफाई व स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव बरकरार हैं। सरकार के दावों व स्वयं सेवी संगठनों के दंभ के विपरित आज भी लोग खुले मैदान में शौच कर रहे है। खेत, खलिहान के अलावा लोगों ने सड़क को ही शौचालय बना दिया है। हालत यह है कि जिले में महज 16 प्रतिशत परिवार ही शौचालय का उपयोग कर रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए तैयार वार्षिक योजना में शौचालय निर्माण के लिए सरकार को 29 करोड़ का प्रस्ताव दिया गया। जिसकी स्वीकृति के बाद भी अब तक प्रथम किस्त की राशि उपलब्ध नहीं करायी जा सकी हैं। राशि के अभाव में शौचालय निर्माण का कार्य ठप हैं।
आंकड़े की नजर में शौचालय :-
आंकड़ों पर गौर करे तो पिछले दस वर्षो में पीएचईडी द्वारा 71,726 शौचालय का निर्माण ही कराया गया हैं। वर्ष 2002-03 में लक्ष्य 4,30,619 में निर्माण कराए गए शौचालय की संख्या नगण्य है। इसी प्रकार 2003-04 में लक्ष्य 4,30,619 व 2004-05 में लक्ष्य 4,30,619 के विरुद्ध विभाग ने एक भी शौचालय का निर्माण नहीं कराया। वर्ष 2005-06 में लक्ष्य 4,30,619 के विरुद्ध 480 शौचालय का निर्माण कराया गया। वर्ष 2006-07 में लक्ष्य 4,30,177 के विरुद्ध 431, वर्ष 2007-08 में लक्ष्य 4,29,746 के विरुद्ध 6,649, 2008-09 में लक्ष्य 4,23,099 के विरुद्ध 7,643, वर्ष 2009-10 में लक्ष्य 4,15,484 के विरुद्ध 4,721,वर्ष 2010-11 में लक्ष्य 4,10,763 के विरुद्ध 10,094, वर्ष 2011-12 में लक्ष्य 90,500 के विरुद्ध 10,719, वर्ष 2012-13 में लक्ष्य 40,400 के विरुद्ध 30,955 तथा वित्तीय वर्ष 2013-14 में लक्ष्य 39,840 के विरुद्ध 86,100 शौचालय का निर्माण कराया गया हैं। वर्ष 2014 - 15 में एपीएल परिवार के 13,646 शौचालय निर्माण के विरुद्ध 2,239 व बीपीएल के 31,352 के विरुद्ध 6,764 शौचालय का ही निर्माण हो सका। जबकि वर्ष 2015 -16 में 1,27,697 शौचालय के विरूद्ध अब तक 1,780 शौचालय का निर्माण कराया गया है।
किसकी कितनी संख्या
जिसमें सामुदायिक शौचालय की संख्या 180, विद्यालय शौचालय की संख्या 2,704 व आंगनबाड़ी शौचालय की संख्या 173 शामिल हैं।
प्रोत्साहन राशि 9,600 तक पहुंची
शौचालय निर्माण के लिए सरकार की ओर से लाभार्थी को दिए जाने वाली प्रोत्साहन राशि बढ़कर 9,600 कर दी गयी है। व्यक्तिगत शौचालय निर्माण के लिए लाभार्थी को मुखिया द्वारा 9,600 भुगतान किया जाएगा। इसके तहत लाभार्थी को जिला जल स्वच्छता समिति से 5,100 तथा मनरेगा से 4,500 रुपये दिए जाएंगे। इसके अलावा सीमांत किसान व विकलांगों को भारत सरकार की ओर से 400 रुपये अधिक दिए जाएंगे। जबकि महा दलित परिवार को 400 से 900 महादलित मिशन द्वारा भुगतान किया जाएगा। इंदिरा आवास अन्तर्गत शौचालय निर्माण के लिए प्रोत्साहन राशि जिला जल स्वच्छता समिति व मनरेगा योजना से बीडीओ को उपलब्ध करायी जा रही हैं।
कागजों तक सिमटी निर्मल ग्राम योजना :
शौचालय निर्माण व गांव स्वच्छ रखने के लिए सरकार की ओर से चलाई जा रही निर्मल ग्राम योजना कागजों तक ही सिमट कर रह गयी है। कुछ ही दिन पूर्व जिले के तीन पंचायत को निर्मल ग्राम का दर्जा के लिए चिन्हित किया गया था। जिसमें अथरी, सैदपुर उतरी व जानीपुर का नाम प्रस्तावित था। उक्त पंचायत के मुखिया को सम्मानित करने के लिए अनुशंसा भी कर दी गई। लेकिन वर्तमान समय में इस पंचायत के गांव में लोग आज भी खुले में शौच करने को विवश हैं।
बोले अधिकारी : -
पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता सिद्धेश्वर प्रसाद यादव बताते है कि शौचालय निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एपीएल व बीपीएल धारकों को प्रोत्साहन राशि देने की योजना हैं। इसके तहत लाभार्थी स्वयं शौचालय का निर्माण कराकर प्रोत्साहन राशि का दावा कर सकते हैं। लाभार्थियों से प्राप्त आवेदन के आलोक में स्थल जांच के बाद प्रोत्साहन राशि भुगतान की स्वीकृति दी जाएगी। ताजा सर्वे के अनुसार करीब डेढ़ लाख शौचालय निर्माण अनुमानित है। बताते है कि औसतन 16 प्रतिशत परिवार शौचालय का उपयोग कर रहे हैं। जिसमें ग्रामीण बाजार क्षेत्र में 60 प्रतिशत हैं। अपर व वैश्य वर्ग के लोग 20 से 25 प्रतिशत शौचालय का उपयोग कर रहे हैं। जबकि अन्य जाति में 5 प्रतिशत से भी कम लोग शौचालय का उपयोग कर रहे हैं।
शौचालय का पानी नाले में : जिले में शौचालय व्यवस्था का बुरा हाल है। वहीं शौचालय के अपशिष्ट व पानी के निकासी की व्यवस्था नहीं है। लिहाजा शौचालय का पानी नालों से होकर ही बहता है। जबकि शौचालय की सफाई के दौरान सफाई कर्मी गंदे मल को नदी में प्रवाहित कर प्रदूषित कर रहे है। इससे इलाके में बीमारी फैलने की आशंका बनी है।
सुलभ शौचालयों का बुरा हाल : वैसे तो जिले में गिनती के सुलभ शौचालय है। लेकिन कुछेक को छोड़ दे तो ज्यादातर शौचालयों का हाल बुरा है। चाहे वह रेलवे स्टेशन के सुलभ शौचालय हो या बस पड़ाव के। शौचालय का गंदा पानी परिसर में बहता रहता है। वहीं बदबू इलाके की आबोहवा को प्रदूषित करता रहता है।
सैकड़ों गांव शौचालय विहीन : सरकार के सफाई व स्वच्छता कार्यक्रम के बावजूद अब तक 84 फीसद लोग शौचालय का उपयोग नहीं कर पा रहे है। जिले के सैकड़ों गांवों में शौचालय का अभाव है।
लोगों की बात :
महेश कुमार व सुधीर कुमार बताते है कि शहर में शौचालय का बुरा हाल है। महज दस फीसद लोगों के पास ही शौचालय है। शौचालय की व्यवस्था को दस में से दो अंक देते है।
युनूस अंसारी व ई. प्रमोद कुमार बताते है कि जहां मकान, भवन व हवेली है, वहीं शौचालय है। 80 फीसदी गरीबों को शौचालय नहीं है। शहर में शौचालय की व्यवस्था को दस में से दो अंक देते है।
अरूण कुमार व पुष्पेंद्र कुमार बताते है कि शहर में भी शौचालय का अभाव है। इस व्यवस्था को दस में से तीन अंक देते है। मनोज कुमार व अमित कुमार बताते है कि सरकार व जन प्रतिनिधियों की उदासीनता का आलम यह है कि गरीबों के घर अब तक शौचालय नहीं बन सका। शहर में शौचालय की व्यवस्था को महज एक अंक देते है। कृष्ण नंदन सिंह व हरि नारायण वर्मा बताते है कि जब गरीबों के आवास आधा अधूरा हो और सरकार की योजनाओं में भ्रष्टाचार तो फिर गरीब कैसे करे शौचालय का निर्माण। दस में एक अंक देते है। रामा शंकर सिंह व राजेश कुमार शहर में शौचालय की व्यवस्था को दो अंक देते हुए बताते है कि व्यवस्था काफी खराब है।