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यहा आज भी जिंदा है बापू के श्राद्ध दिवस की वह परंपरा

सारण। फरवरी महीने की 12 तारीख सर्वोदयी विचारधारा के तमाम लोगों के लिए खास होती है। इस ि

By Edited By: Published: Thu, 11 Feb 2016 07:23 PM (IST)Updated: Thu, 11 Feb 2016 07:23 PM (IST)
यहा आज भी जिंदा है बापू के श्राद्ध दिवस की वह परंपरा

सारण। फरवरी महीने की 12 तारीख सर्वोदयी विचारधारा के तमाम लोगों के लिए खास होती है। इस दिन को महात्मा गाधी का श्राद्ध दिवस है किंतु जेपी के जमाने से ही इसे सर्वोदय मेले के रूप में मनाने की परंपरा रही है। यह बात अलग है कि अधिकाश सर्वोदय सदस्यों के निधन के बाद जेपी के गाव सिताबदियारा में यह दिवस भी अब सिमटता हुआ दिख रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के निधन के बाद तो इस परंपरा का रंग और भी फीका हो गया। जब तक चंद्रशेखर जीवित थे इस दिवस को संपूर्ण भारत के कोने-कोने से सामाजिक चिंतक, सर्वोदय सदस्य जेपी के गाव में सैकड़ों की तादात में पहुंचते थे।

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यहां एक विशाल मेले का भी आयोजन होता था। राष्ट्रीय विमर्श में देश के वर्तमान हालात पर घटों चर्चाएं होती थीं। उस विमर्श से निकली बातें देश के लिए एक संदेश बन जाती थीं। अब जेपी के गाव सिताबदियारा में भी उस सर्वोदय मेले की वह परंपरा जीवित तो है, किंतु सिमटते हाल में है। इस परंपरा का निर्वाह जेपी के क्राति मैदान चैन छपरा में लगातार किया जाता रहा है । इस वर्ष भी इसकी पूरी तैयारी है ।

जब सर्वोदय मंत्र का हुआ बापू पर जादुई असर

गाधी और जेपी का सर्वोदय वह मंत्र है, जिसका जन्म 20वीं सदी में हुआ था, किंतु इस शब्द को जो मान्यता मिली उसकी देन थे राष्ट्रपिता महात्मा गाधी। जब 1904 में गाधी जी ने रिस्कीन की 'अन टू दि लास्ट' नामक पुस्तक पढ़ी तो उसका उन पर जादुई प्रभाव पड़ा । इसके बाद उन्होंने अपना जीवन ही इसी रूप में बदल दिया। 1908 में इस पुस्तक का भावानुवाद इंडियन ओपिनियन में दिया गया और तभी सर्वोदय शब्द का जन्म हुआ ।

तब जेपी ने भी दान कर दिया सर्वोदय के लिए अपना जीवन

बुजुर्ग बताते हैं कि सर्वोदय मंत्र का असर लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर भी हुआ। दुनिया के स्वार्थ को देख जेपी भी बहुत दुखी थे। उन्होंने 19 अपैल 1954 को बापू से प्रभावित होकर बिहार के बोधगया में अपना संपूर्ण जीवन ही सर्वोदय के लिए दान कर दिया। तभी जयप्रकाश जी की प्रेरणा से 582 व्यक्तियों ने भी अपना जीवन सर्वोदय के लिए दान किया। आचार्य विनोवा ने भी अपने को सर्वोदय के लिए समर्पित किया। जेपी और आचार्य विनोवा के जीवन दान की सुगंध विदेशों में भी फैली। 28 अपैल 1958 को जेपी सर्वोदय का संदेश देश-देशातरों में फैलाने के लिए यात्रा पर निकले और 14 देशों (इंगलैंड, फ्रांस, जर्मनी) आदि में यह संदेश पहुंचाया।

वर्ष 1948 में गाधी जी के निधन के बाद सर्वोदय ने जो मूर्त रूप लिया, उसकी देन जेपी ही थे । स्वयं जेपी ने ही अपने गाव सिताबदियारा में प्रतिवर्ष 12 फरवरी को महात्मा गाधी के श्राद्ध दिवस को सर्वोदय मेले के रूप में मनाने का निणर्य लिया था।

आठ अक्टूबर 1979 को जेपी भी चल बसे, तब से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी के द्वारा जेपी की इस परंपरा का निर्वाह किया जाने लगा। चंद्रशेखर जी के निधन के बाद भी यह परंपरा फीके अंदाज में ही सही, चलती जरूर रही है। हा अब कहीं भी एक भी बुर्जुग सर्वोदयी विचारधारा के नहीं रहे, लिहाजा यह परंपरा भी अब समय के साथ अपना रंग बदलने लगी है। अब जेपी के क्राति मैदान चैन छपरा के अलावा कहीं भी यह आयोजन नहीं होता। यहा तक कि जेपी के नाम से राजनीति करने वाले, बड़े रहनुमा भी, इस दिन को जेपी और बापू को पुष्पाजलि देने सिताबदियारा नहीं पहुंचते हैं।

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बापू के श्राद्ध दिवस पर क्रांति मैदान में कार्यक्रम आज

जासं, छपरा : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के श्राद्ध दिवस पर सिताबदियारा के चैन छपरा स्थित क्रांति मैदान में शुक्रवार को कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा। कार्यक्रम में राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि अर्पित की जायेगी। कार्यक्रम का उद्घाटन जिलाधिकारी दीपक आनंद करेंगे। कार्यक्रम को लेकर क्रांति मैदान स्थित जयप्रभा स्मारक ट्रस्ट के अध्यक्ष मणीन्द्र कुमार सिन्हा, सदस्य मनोकामना सिंह, लालबिहारी सिंह, मणी प्रताप सिंह, इंद्रासन सिंह कार्यक्रम की तैयारी में जुटे हैं। अध्यक्ष ने बताया कि बापू के श्राद्ध दिवस पर प्रार्थना सभा का आयोजन किया जायेगा। इसके बाद दही चिउरा का सह भोज आयोजित होगा। कार्यक्रम की सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी है।


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