खेल की कमी दे रहा मस्तिष्क को टेंशन
छपरा। खेलोगे कूदोगे तो होंगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नबाब की कहावत ने बच्चो
छपरा। खेलोगे कूदोगे तो होंगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नबाब की कहावत ने बच्चों के भविष्य पर ही ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है। केवल पढ़ाई करने से बच्चे कम उम्र में ही मानसिक एवं शारीरिक रुप से कमजोर होते जा रहे हैं। शिक्षा की व्यवसायी करण होने के बाद बच्चों को नहीं विद्यालय में खेलने का समय मिल रहा है और नहीं घर पर। इस लिए टेंशन को पेंशन देने हेतु खेल पर भी ध्यान देना पड़ेगा।
बच्चों का उम्र जैसे ही ढाई वर्ष की हुई उसे शिक्षा देने के चक्कर में अभिभावक पड़ जाते हैं। लगता है कि ढाई वर्ष के उम्र में बच्चे को शिक्षा देना शुरू नहीं किया गया तो शिक्षा ही विलुप्त हो जाएगी। लेकिन बच्चों के फीजिकल पर किसी का ध्यान नहीं पड़ रहा। एसडीएस कालेज में पदास्थापित मनोविज्ञान के प्रो.शिवाजी सिंह कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में हाईपोथर्मस होता है। जब शरीर क्रियाशील रहता है तो वह भी क्रियाशील रहता है। जब शरीर अपना क्रिया करना बंद करता है तो वह भी अपना क्रिया करना बंद कर देता है। इससे मनुष्य धीरे-धीरे सब कुछ भुलने लगता है। इसको क्रियाशील बनाने में खेल बहुत ही महत्वपूर्ण है। लेकिन आज के बच्चों को खेलने का मौका भी नहीं दिया जा रहा। आठवीं घंटी तो दूर की बात है। बच्चों पर उतना ही पढ़ाई का बोझ दे जीतना उसका तन और मन सहन कर सके।
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खेल से होता है अच्छे समाज का निर्माण
आठवीं घंटी कार्यक्रम के तहत शुक्रवार को शहर के एसडीएस कालेज में दैनिक जागरण के तत्वावधान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें कालेज के छात्र-छात्राओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कालेज के प्राचार्य अरूण कुमार सिंह ने कहा कि समाज में तेजी से बदलाव होता जा रहा है। पहले विद्यालयों में बच्चों के खेलने हेतु एक घंटी निर्धारित थी। जिसमें बच्चे खेलते थे। लेकिन अब तो खेल एक डिब्बे में सिमटकर रह गया है। इससे बचने की जरूरत है। खेल से ही मानसिक और शरीर का विकास होता था। उन्होंने कहा कि दैनिक जागरण ने अच्छी शुरुआत की है इसके लिए दैनिक जागरण परिवार बधाई का पात्र है। उन्होंने कहा कि पहले लोगों की प्राथमिकता बल, बुद्धि और विद्या ही था। लेकिन आज लोगों को केवल पढ़ाई पर ही ध्यान है। अभिभावक भी अपने बच्चों पर पढ़ो-पढ़ो का रट लगाये रहते हैं। लेकिन किसी को बच्चे का शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास पर ध्यान नहीं है। सबका ध्यान केवल पैसा पर है। जिससे बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। बच्चों को खेलने नहीं दिया जा रहा। उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ खेल पर भी ध्यान देने की बात कही। जेपी सेनानी रामायण सिंह जीवन दानी ने कहा कि मैं अपने जीवन में अच्छा वालीबाल खिलाड़ी था। खेल में प्रतियोगिता है। दूसरे को हराना और जितने की ललक पैदा होती है। मैने कभी अपने प्रतिद्वंद्वी को शत्रु नहीं बनाया यह खेल की देन है। उन्होंने कहा कि प्रतिदिन एक घंटा खेल जरुर होना चाहिए। इससे चरित्र और समाज का निर्माण होता है। प्रो.नागेश्वर ओझा ने कहा कि नैतिकता से जीवन जीने के लिए खेल ही सीखाता है। मैदान में जीतने के लिए लड़ते हैं और खेल खत्म होने के बाद एक दूसरे से गले मिलते हैं। खेल विजय का मार्ग प्रशस्त करता है। खेल में सबकुछ समाहित है। टेंशन को पेंशन देने के लिए खेल आवश्यक है। मनोविज्ञान विभाग के प्रो.शिवाजी सिंह ने कहा कि खेल और कार्य में वक्त निर्धारित है। कार्य में स्थान सुरक्षित है और समय निर्धारित है। लेकिन खेल का समय निर्धारित है। बच्चे, बीमार व्यक्ति, नौजवान, वृद्ध भी खेलते हैं। उन्होंने कहा कि खेल में स्वतंत्रता होती है। जिसमें स्वतंत्रता और प्रसन्नता हो वह खेल है। जीवन भी एक खेल है। महाविद्यालयों में भी एक खेल की घंटी होनी चाहिए। जिससे कि बच्चे उसमें खेल सकें। वहीं फिजिक्स विभाग के प्रो. शिवाजी सिंह ने कहा कि अनुशासन ही देश को महान बनाता है और खेल से ही अनुशासन मिलता है। मनुष्य का एक भी इंद्री उसके वश में नहीं है। पढ़ाई कीजिए, पूरे जीवन भर पढ़े लेकिन थोड़ी सी चुक हुई तो सबकुछ बर्बाद हो जाएगा। इस लिए खेल पर विशेष ध्यान दीजिए। खेल संगठित करता है और संगठित करने की शिक्षा खेल के मैदान से ही मिलती है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो. प्रियेष रंजन ने कहा कि सामाजिकता खेल से ही संभव है। अब समाजिकता समाप्त होती जा रही है। जैसे-जैसे खेल धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है वैसे परिवार भी विखंडित होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि कम्युनिटी लाइफ भी जरूरी है। इसे लिए खेल पर विशेष ध्यान दिया जाए। इसके अलावा छात्र-छात्रों ने भी खेल को बढ़ावा देने के लिए बहुत ही सुंदर तरीके से अपना-अपना विचार व्यक्त किया। इस मौके पर सुनील सिंह, कामेश्वर सिंह, दशरथ कुमार आदि मौजूद थे।
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खेल को मिले महत्व
एसडीएस कालेज के छात्र हर्षराज कुमार ने कहा कि खेल को ज्यादा महत्व देना चाहिए। खेल से ही शरीर, तन एवं मन का विकास होता है। खेल से भी आगे बढ़ा जा सकता है।
खेल जीवन का अंग है
छात्र विपिन कुमार ने कहा कि पढ़ाई लिखायी में भी खेल का बहुत बड़ा महत्व है। खेल जीवन का अंग है। व्यायाम से शारीरिक व मानसिक विकास होता है। इसे लिए सभी को खेल पर ध्यान देना चाहिए।
खेल से खराब होने की सोच को बदलें
छात्र विकास कुमार ने कहा कि परिवार वाले कहते हैं कि खेल से बच्चे खराब होते हैं। इसकी धारणा गलत है। खेल से ही सचिन तेंदुलकर, सानिया मिर्जा और धोनी का नाम हुआ है। इस लिए अभिभावक खेल से खराब होने की अपनी सोच को बदलें।
खेल से होता है मनुष्य का विकास
छात्र पीयूष राज ने कहा कि खेल से मनुष्य का विकास होता है। खेल ऐसा यंत्र है जिससे हमारा मस्तिष्क ठीक रहता है और शरीर में फुर्ती रहती है।
मानसिक व शारीरिक संतुलन को खेल जरुरी
छात्र दिप्तांशु कुमार ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के मानसिक व शारीरिक संतुलन के लिए खेल जरुरी है। फुटबाल शरीर पर, शतरंज मानसिक संतुलन को बनाता है। पढ़ाई के साथ-साथ खेल पर भी ध्यान देना चाहिए।
जीवन के लिए सांस जीतना जरुरी उतना ही शरीर के लिए खेल है
छात्रा रश्मि कुमारी ने कहा कि जिस तरह से मनुष्य के फेफडे़ के लिए वायु की जरुरत होती है उतना ही स्वस्थ शरीर के लिए खेल भी जरुरी है। आजकल खेल तो एक कमरे के कोने तक सिमट कर रह गया है। खेल से बेहतर स्वास्थ्य को पा सकते हैं। खेल से बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है।
बच्चों को नहीं खेलने दे रहे अभिभावक
छात्रा ज्योत्सना प्रकाश ने कहा कि छोटे बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास खेल से ही होता है। लेकिन अभिभावक अपने बच्चों को खेलने नहीं दे रहे हैं। जिसके वजह से बच्चे आगे चलकर कमजोर हो जा रहे हैं। जब शरीर और मन स्वस्थ रहेगा तो पढ़ाई में भी मन लगेगा।
एक साथ रहने को सिखाता है खेल
छात्रा उषा कुमारी ने कहा कि आज के बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो रहा है। जिसके वजह से बच्चे एक साथ नहीं रह पा रहे हैं। खेल ही एक साथ रहने और संगठित रहने को सिखाता है। संगोष्ठी में इन छात्र-छात्रों के आलावे अभिजीत कुमार, अंकित कुमार, अमरेन्द्र कुमार, प्रिया कुमारी, उजाला कुमारी, विट्टू कुमार गुप्ता, शालिनी कुमारी, आयुषी कुमारी आदि ने अपना विचार व्यक्त किया।