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संस्कृतियों की जननी है भारत की वैदिक संस्कृति

भारत की वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। ऋग्वेद के अनुसार यह संस्कृति ही सभी संस्कृतियों की जननी है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Mar 2017 03:01 AM (IST)Updated: Sun, 26 Mar 2017 03:01 AM (IST)
संस्कृतियों की जननी है भारत की वैदिक संस्कृति
संस्कृतियों की जननी है भारत की वैदिक संस्कृति

समस्तीपुर। भारत की वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। ऋग्वेद के अनुसार यह संस्कृति ही सभी संस्कृतियों की जननी है। उक्त बातें कामेश्वर ¨सह संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा के पूर्व कुलपति डॉ. देवनारायण झा ने कही। शनिवार को संस्कृत महाविद्यालय रोसड़ा के प्रांगण में मानवाधिकार और संस्कृति विषय पर आयोजित संगोष्ठी को वे संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सा प्रथमा संस्कृति विश्ववान: श्लोक पढ़ते हुए कहा कि जितना भी ज्ञान और विज्ञान है सभी का स्त्रोत वेद है और वर्तमान में पल्लवित होकर अत्याधुनिक रूप ले लिया है। उन्होंने अर्थशास्त्री कौटिल्य के वाक्यों को दोहराते हुए कहा कि किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उस देश की संस्कृति और विद्या सहायक होती है। पूर्व कुलपति ने संस्कृत और संस्कृति को अन्योनश्रय बताते हुए कहा कि दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। जहां संस्कृति है वहां संस्कृत है। वहीं कार्यक्रम का दीप प्रज्ज्वलित कर विधिवत उद्घाटन करते हुए मिथिला विवि के पूर्व प्रतिकुलपति डॉ. सतीश चन्द्र झा ने मानवाधिकार पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि मनुष्य ही नहीं सभी प्राणियों का अधिकार ही मानवाधिकार है। उन्होंने करीब 2500 वर्ष पूर्व मानवाधिकार आयोग की स्थापना बताते हुए साहित्य, व्याकरण एवं ज्योतिष में मानवाधिकार की चर्चाएं मुख्य रूप से नारियों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना और मानवाधिकार आयोग में रूजवेट की पत्नी की चर्चा करते हुए कहा कि उस समय भी महिला की सुरक्षा और अधिकार पर ¨चतन जारी था। जबकि मेदनापुर कोलकाता से आए डॉ. रमेश झा ने मानवाधिकार को राजधर्म से जुड़ा होना बताते हुए कहा कि शासन ही मानवाधिकार का मूल तंत्र है। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. शशिधर झा ने नारी सम्मान पर विस्तार से चर्चा करते हुए दुर्गा सप्तसती के श्लोकों को दोहराया। मिथिला संस्कृत शोध संस्थान के निदेशक डॉ. देवनारायण यादव ने संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी बताते हुए इसके विस्तृत प्रचार-प्रसार पर बल दिया। शिक्षक नेता डॉ. सुरेश राय ने संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालयों की दुर्दशा पर ¨चता जताते हुए कहा कि संस्कृत के विकास के लिए शिक्षण संस्थानों का व्यवस्थित होना भी आवश्यक है। अध्यक्षता करते हुए कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. रामविलास राय ने संगोष्ठी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जहां संस्कृत है वहीं संस्कृति भी है। इसके अलावा डॉ. श्रवण कुमार चौधरी, डॉ. उमानाथ राय, डॉ. उमेश झा आदि ने भी संगोष्ठी में अपने विचार रखे। डॉ. शशिधर झा के मंगलाचरण से प्रारंभ इस एक दिवसीय कार्यक्रम कई सत्रों में संपन्न हुआ। उद्घाटन सत्र के पश्चात द्वितीय सत्र में प्रतिभागियों द्वारा शोध-बीज का वाचन तथा समापन सत्र में प्रमाण-पत्र वितरण के पश्चात काव्य संध्या का भी आयोजन किया गया। मौके पर डॉ. परमानंद मिश्र, राजनारायण चौधरी, कृष्ण कुमार लखोटिया, उमेश नारायण चौधरी, घनश्याम राय, अवधेश्वर प्रसाद ¨सह तथा नरनाथ राय समेत सैकड़ों गण्यमान्य लोग मौजूद थे।


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