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मातृत्व दिवस पर विशेष

हर खुशी का ख्याल रखती मां समस्तीपुर, संवाद सहयोगी : मैं मां से बहुत प्यार करती हूं क्योंकि मेर

By Edited By: Published: Wed, 06 May 2015 02:01 AM (IST)Updated: Wed, 06 May 2015 02:01 AM (IST)
मातृत्व दिवस पर विशेष

हर खुशी का ख्याल रखती मां

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समस्तीपुर, संवाद सहयोगी : मैं मां से बहुत प्यार करती हूं क्योंकि मेरी मां मेरे लिए वो सबकुछ करती है जिससे मुझे खुशी मिलती है। पृथ्वी पर भगवान ने जो सबसे अच्छा रिश्ता बनाया है कि वह मां व बच्चे का है। बच्चों के लिए मां हर वक्त कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है। मां, इस शब्द को सुनते ही खुशी का अहसास होता है। कहते हैं कि भगवान हर जगह नहीं पहुंच सकते हैं इसलिए उन्होंने मां को बनाया। मेरी मां जो हर

त्योहार, जन्मदिन पर सबसे पहले मुझे बधाई देती है। वो मेरा हर सुख-दुख बिना कहे ही जान लेती

है। साक्षी सिन्हा उर्फ शिल्पी कहती है कि वह अपनी मां शांति ¨सहा की शीतल छाया में पली बढ़ी। बचपन से लेकर आजतक मेरी हर ख्वाहिश को पूरा करने के लिए मां बेचैन रहती है। किसी बात पर रूठ जाउं तो प्यार से मना भी लेती है। मैं जितना गुस्सा करती हूं मां उतना ही प्यार देती है। मेरी मां कामकाजी व नौकरी पेशा होने के बाद भी घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाती है। हर मां की ख्वाईश होती है कि उसका बच्चा उंचे पद पर जाए। दुनिया में उसका व उसके परिवार का नाम रोशन हो। मैं भी अपनी मां की ख्वाहिशों को पूरा करने में लगी हूं। म ं अपनी मां से बहुत प्रेम करती हूं और उसके सपनों को निश्चय ही सफल करूंगी। हमारी खुशी में ही मां को खुशी मिलती है।

मां मेरी पहली गुरु

5 एसएएम 02 व 03

समस्तीपुर, संवाद सहयोगी : मेरे लिए तो हर दिन है मदर्स डे। जिस तरह चिल्ड्रेन डे पर मां हमें खुश करती है। कुछ इसी तरह हमें भी मदर्स डे पर हम उन्हें खुशी देने की कोशिश करते हैं। यह बस एक ही तरीका है यह जताने का कि हम उन्हें कितना चाहते है। वह हमारे लिए कितना कुछ करती है। मां ने ही हमें जीवन देकर इस संसार को

देखने के काबिल बनाया। वह घर को संभालने के साथ-साथ मेरी परवरिश के साथ पढ़ाई में भी मेरी मदद करती है। हमेशा ही मुझे अच्छे व बुरे में फर्क बताती है। व ¨जदगी में सही फैलने में मेरी मदद करती है। मेरी ¨जदगी में मां से बढ़कर कोई भी नहीं है। मां, मात्र शब्द ही नहीं है इस शब्द में इतनी भावनाएं है, इतनी शक्ति है कि सारा संसार इनके सामने झुक जाता है। मां जो हमारी प्रथम गुरु, प्रथम सखा व प्रथम संबंधी होती है। हर्ष आनंद कहती है कि मेरी मां वर्षा आनंद मेरी आंखें पढ़ना जानती है। पल भर में ही मेरा हर दर्द समेट लेती है अपने आंचल में। सही-गलत का फर्क सिखाती है। मेरी गलतियों पर सजा देना भी जानती है, इसके पीछे एक मात्र उद्देश्य है कि मेरा जीवन संवर सके।


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