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जागरण अभियान का लोगो

सहरसा। कहा जाता है कि जिस वर्ष बाढ़ नहीं आती, उस वर्ष कोसी की राजनीति में सुखाड़ आ जाती ह

By Edited By: Published: Tue, 28 Jun 2016 06:47 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2016 06:47 PM (IST)
जागरण अभियान का लोगो

सहरसा। कहा जाता है कि जिस वर्ष बाढ़ नहीं आती, उस वर्ष कोसी की राजनीति में सुखाड़ आ जाती है। आजादी से अबतक बाढ़ समस्या सभी चुनावों का मुख्य मुद्दा रहा है। आमदिनों में इसकी यदा- कदा चर्चा होती है परंतु बाढ़ के समय बचाव और राहत के नाम पर सत्ताधारी को घेरने की राजनीति चरम पर पहुंच जाती है। तटबंध के निर्माण के समय ही पूर्व विधायक परमेश्वर कुंवर के नेतृत्व में इसका जोरदार विरोध हुआ, परंतु तत्कालीन सरकार ने अपने सुविधाओं का सब्जबाग दिखाकर कोसी के लोगों की पीड़ा दूर करने का वादा किया। महज चालीस वर्षों के लिए तटबंध का निर्माण कराया गया था, इस बीच इसका स्थायी विकल्प तैयार करना था। ठोस वैकल्पिक व्यवस्था होने पर शायद राजनीति थम सकती थी, परंतु ऐसा नहीं हुआ और कोसीवासियों की पीड़ा पर राजनीति दिनचर्या बन गई। जो भी सत्ता में रहे मजबूरियों का जिक्र किया और विपक्षी लापरवाही का आरोप लगाते रहे।

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स्वर्गीय परमेश्वर कुंवर और स्वर्गीय लहटन चौधरी के लगातार प्रयास के बाद भी तटबंध के अंदर बसे लोगों का पुनर्वास नहीं हो सका। लगातार इस क्षेत्र का नेतृत्व करनेवाले ये दोनों नेता इसके लिए एक दूसरे को घेरते रहे। पूर्व मुख्यमंत्री विन्देश्वरी दूबे के कार्यकाल में कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार का गठन हुआ। इसके तहत कोसीवासियों के लिए अनेक सुविधाओं की घोषणा की गई, यह अगर लागू होता तो बहुत हद तक कोसीवासियों के घाव पर मरहम लगाया जा सकता था। परंतु यह प्राधिकार भी एक न पूरा होनेवाला वादा ही बनकर रह गया। तत्कालीन विपक्षी इसपर सरकार को घेरते रहे, लेकिन इसका हश्र लालू- राबड़ी और वर्तमान नीतीश कुमार के शासन में भी यही रहा। कोसी ने जिन नेताओं को जन्म और नेतृत्व का मौका दिया उस सूची में लहटन चौधरी और परमेश्वर कुंवर के बाद चौधरी मो. सलाहउद्दीन, रमेश झा, आनंद मोहन, डा. अब्दूल गफूर, महबूब अली कैशर, चन्द्रकिशोर पाठक, सूर्यनारायण यादव, दिनेश चन्द्र यादव, पप्पू यादव, सुरेन्द्र यादव व गुंजेश्वर साह का नाम शामिल है। पूर्व मुख्यमंत्री डा. जग्गनाथ मिश्र भी इसक्षेत्र से सीधे तौर पर जुड़े थे, परंतु इस विडम्बना ही कहा जा सकता कि बाढ़ के नाम राजनीति करनेवाले नेताओं का बहस ठोस उपाय के बजाय राहत सामग्री की क्वालिटी पर आकर सिमटती रही । कोसी के गर्भ में साढ़े चार सौ करोड़ का पुल बनाकर नीतीश कुमार ने श्रेय जरुर लूटा, परंतु इसमें भी अभी कई अवरोध है, जो विपक्षी को राजनीति करने का अवसर प्रदान कर रहा है।


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