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'रमजान में होती है रहमतों की बारिश'

सहरसा। रमजान के तीसरे जुमा को जिले में सभी मस्जिदों में नमाजियों व रोजेदारों की भीड़ रही। लोगों ने नम

By Edited By: Published: Fri, 03 Jul 2015 06:55 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2015 06:55 PM (IST)
'रमजान में होती है रहमतों की बारिश'

सहरसा। रमजान के तीसरे जुमा को जिले में सभी मस्जिदों में नमाजियों व रोजेदारों की भीड़ रही। लोगों ने नमाज अदा किया।

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राजनपुर: रमजान का महीना पाक होता है। रोजा रखने वालों को अल्लाह गुनाहों व अन्य बुराईयों से पाक कर देती है। शुक्रवार को तीसरे जुमे के अवसर पर नमाजियों को खिताब करते हुए राजनपुर जामा मस्जिद के इमाम मौलाना मो. कफील अहमद ने उक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि रमजान रहमत, मगफिरत यानि माफी एवं जहन्नुम से छूटकारे का महीना है। इस माह में मुसलमानों के रोजी को बढ़ा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि भूखा व प्यासा रहने का नाम रोजा नहीं है। रोजा रखने का मकसद झूठ, निंदा, दूसरे की बुराईयों से बचना व नेक बनना है। गरीबों, यतीमों का मदद करना चाहिए। इसके साथ जकात अदा करना भी रमजान का एक हिस्सा है।

सलखुआ : रमजानुल मुबारक के दूसरे जुमे के मौके पर प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न मस्जिदों में नमाजियों की भीड़ उमड़ पड़ी। शिक्षक मो. माहिर अली ने बताया कि इस माहे मुबारक में अल्लाह पाक की तरफ से अपने नेक बंदों के लिए रहमतों की बारिश होती है। इस माहे रमजान में एक फर्ज का सबाब सत्तर गुणा एवं एक सुन्नत का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है। शव-ए-कदर की रात हजारों रात से अफजल है। जो संभवत: 21, 23, 25, 27 अथवा 29 रमजान को होता है। उन्होंने कहा कि रमजान का पवित्र महीना चरित्र निर्माण का बेहतरीन अवसर प्रदान करता है। रमजान में ईश्वरीय आदेश से सुबह से शाम तक भूखे प्यासे रहना अपने विचारों पर ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्रण रखना, बुरी बातों से बचना, किसी को तकलीफ नहीं पहुंचाना, भलाई का काम करना एवं अपनी दौलत का कुछ हिस्सा गरीबों को देना ही रोजा है। पूरे महीने में पवित्र वातावरण में रहने से व्यक्ति के चरित्र में निखार आना स्वाभाविक है। मो. माहिर अली ने कहा कि अगर इंसान को विश्वास हो कि एक सर्वज्ञानी, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान ईश्वर उसे देख रहा है तो इंसान गलती नहीं करेगा।


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