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महज एक बोतल खून के लिए हर साल चली जाती है दर्जनों जान

अमरेन्द्र, सहरसा साहुगढ़ के संतन कुमार के परिजनों को ब्लड ग्रुप की जानकारी नहीं थी। संतन को खून चढ

By Edited By: Published: Mon, 24 Nov 2014 07:53 PM (IST)Updated: Mon, 24 Nov 2014 07:53 PM (IST)
महज एक बोतल खून के लिए हर साल चली जाती है दर्जनों जान

अमरेन्द्र, सहरसा

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साहुगढ़ के संतन कुमार के परिजनों को ब्लड ग्रुप की जानकारी नहीं थी। संतन को खून चढ़ाने की जरुरत थी। परिजनों ने आनन-फानन में खून का इंतजाम तो किया। खून भी संतन को चढ़ाया गया। परंतु गलत खून चढ़ाने से उसकी जान चली गयी।

संतन का मामला एक एक बानगी भर है। ऐसे कई लोग हैं जो सड़क दुर्घटना के शिकार होते हैं। उन्हें खून की आवश्यकता महसूस होती है परंतु ब्लड ग्रुप की जानकारी नहीं रहने के कारण उन्हें समय पर खून उपलब्ध नहीं हो पाता है और उसकी मौत हो जाती है।

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खून का रिश्ता-असली रिश्ता

प्रमंडलीय आयुक्त ने खून का रिश्ता-असली रिश्ता नारे के साथ ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में ब्लड ग्रुप जांच कराने का निर्देश दिया था। उन्होंने नामांकन प्रक्रिया के समय ही इसे अनिवार्य करने के प्रस्ताव पर सहमति देते हुए कहा था कि अगर ब्लड ग्रुप की जानकारी एकत्रित कर ली जाएगी तो आने वाले समय में ब्लड ग्रुप का एक भंडार तैयार हो जाएगा। और विषम परिस्थिति में यह सहायक सहायक साबित होगा।

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दो वर्ष में हुई है 167 मौत

सड़क दुर्घटना में वर्ष 13 व 14 में 167 लोगों की मौत हुई है। इनमें से दो दर्जन की मौत खून के अभाव में हुई है। सड़क दुर्घटना के बाद अस्पताल लाया जाता है। जबतक ब्लड ग्रुप का पता लगता है और खून के इंतजाम की कोशिश की जाती है तबतक दुर्घटना के शिकार व्यक्ति की मौत हो जाती है।

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पाठ़्यक्रम में शामिल हो जानकारी

चिकित्सक डॉ. केसी झा कहते हैं कि उनके द्वारा समाज में ब्लड ग्रुप की जानकारी को लेकर जागरूकता लाने हेतु आयुक्त को सुझाव भी दिया गया था। माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को शामिल करने की जरुरत है। ताकि इसका दूरगामी प्रभाव पड़ सके। उन्होंने कहा कि आज भी ग्रामीण क्षेत्र की जनता ब्लड ग्रुप के संबंध में अंजान रहती है। जिसके कारण रक्त की जरुरत पड़ने पर उन्हें बहुत बड़ा घाटा उठाना पड़ता है। अक्सर गंदा खून चढ़ाने से मरीज की जान चली जाती है। यही नहीं घबराहट में दलालों के चक्कर में लोग फंस जाते हैं और संक्रमित खून भी मरीज को चढ़ा दिया जाता है। स्कूलों में ब्लड ग्रुप जांच आवश्यक है। चार-पांच वर्षो में मैने कुछ प्राथमिक व हाई स्कूल में हजारों बच्चों के ब्लड ग्रुप की जांच की है और इसका परिणाम भी बेहतर आया है। इससे यह भी जानकारी मिल जाती है कि जटिल ग्रुप का खून किस छात्र के पास है जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग हो सके।

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'प्रधानाध्यापकों की बैठक में ब्लड ग्रुप जांच कराने का निर्देश आयुक्त के स्तर से दिया गया था। कुछ जगहों पर जांच भी हुआ है। इस कार्य में तेजी लाने को कहा गया है।'

प्रकाश रंजन कुमार

क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक, सहरसा

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खराब है फ्रीज कैसे स्टोर होगा खून

सहरसा, जासं : सदर अस्पताल परिसर में एक रक्त अधिकोष का संचालन हो रहा है। लेकिन कभी खून की कमी तो कभी फ्रीज खराब रहने से मरीजों को काफी परेशानी होती है।

ब्लड बैंक में कहने को तो तीन फ्रीज है परंतु दो फ्रीज महीनों से खराब है। कुछ दिन पहले तीनों फ्रीज खराब हो गया था। जिस कारण एक माह तक लोगों को सुपौल के ब्लड बैंक के भरोसे रहना पड़ा था। जबकि कुछ माह पूर्व ब्लड बैग की आपूर्ति नहीं होने से खून देने में भी दिक्कतें होती थी। वैसे वर्तमान समय में सहरसा रक्त अधिकोष में 36 यूनिट खून उपलब्ध है। ब्लड संग्रह करने के लिए बैग भी है।

जानकारी के अनुसार इस बैंक में करीब 120 यूनिट तक ब्लड संग्रहित कर रखा जा सकता है। लेकिन फ्रीज खराब रहने की वजह से 40 यूनिट ब्लड ही रखा जा रहा है। विभाग का कहना है कि एड्स कंट्रोल सोसाइटी से बैग की आपूर्ति की जाती है। जो समय पर नहीं होने से बैग की कमी महसूस होती है। जबकि फ्रीज की खराबी को ठीक कराने की जिम्मेवारी संचालक की है।

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'संचालक को फ्रीज ठीक कराने का निर्देश दिया गया है। फिलहाल रक्त की कोई दिक्कत नहीं है।'

डॉ. भोलानाथ झा

सीएस, सहरसा


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