सड़कों की राह में रोड़े ही रोड़े
रोहतास। संरचनाओं में सड़क को सबसे अहम माना जाता है। विकास के आधारभूत संरचनाओं में उ
रोहतास। संरचनाओं में सड़क को सबसे अहम माना जाता है। विकास के आधारभूत संरचनाओं में उद्योग धंधे से लेकर रोजगार के कई अन्य अवसर सड़क से सुलभ हो जाते है। इसके अभाव में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से आम आवाम को वंचित होना पड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग या उच्च राज पथ की सूरत तो बदली परंतु ग्रामीण सड़कों में मानक की अनदेखी कर निर्माण कार्य कराए जाने व ओवर लोड बालू लदे ट्रकों से हालत बदतर हो गई है। वहीं पड़ाही क्षेत्रों में वन व पर्यावरण विभाग से एनओसी नहीं मिलने से दर्जन भर सड़कों के निर्माण में पेंच फंसा है।
पहाड़ी सड़कों ले एनओसी का पेंच :
कैमूर पहाड़ी पर रहने वालों की सबसे बड़ी समस्या आवागमन की सुविधा का है। सड़क के अभाव में वनवासियों के शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं पर ग्रहण लगा है। वन विभाग से हरी झंडी नहीं मिलने के कारण एक दर्जन सड़क निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पा रहा है। मीलों पैदल चलकर वनवासियों के बच्चे स्कूल जाते हैं। बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाना संभव नहीं हो पाता है। वर्ष 2010 में ही मुख्य सचिव स्तर पर हुई बैठक में दर्जन भर सड़कों का वन विभाग से एनओसी लेने की योजना बनी थी। फिलहाल एनओसी प्राप्त करने के लिए वन व पर्यावरण मंत्रालय को भेजा गया प्रस्ताव फाइलों में बंद है।
ओवर लो¨ड़ग से बदहाल हुई सड़कें :
ओवर लोड बालू लदे ट्रकों से डेहरी-नासरीगंज पथ, बिक्रमगंज-मलियाबाग पथ पूरी तरह से उखड़ गया है। मलवार टाल से शिवसागर डेहरी से लेकर बारून तक फोरलेन सड़क भी कई स्थानों पर धंस गई है। एनएच 2 सी से लेकर सासाराम-तिलौथू पथ की हालत भी बदतर है।
पत्थर की अनुपलब्धता भी निर्माण कार्य में बाधक :
पत्थर की अनुपलब्धता के कारण भी सड़कों के निर्माण की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। फिर से रफ्तार बढ़ाने की अब तक की गई हर कवायद का कोई खास असर नहीं दिख रहा है। कार्य एजेंसियों ने पत्थर की अनुपलब्धता को ढाल बना लिया है। कार्य एजेंसियों के अनुसार पूर्व के बने प्राक्कलन में करवंदिया से पत्थर लाने का भाड़ा दर्शाया गया है। सीमावर्ती झारखंड व उत्तरप्रदेश से पत्थर सामग्री लाने की कोशिश में बार्डर पर इंटरस्टेट परमिट आड़े आ रहा है।
ग्रामीण सड़कों की राह में रोडे़ ही रोड़े :
जिले में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क से लेकर मुख्यमंत्री सड़क योजना की रफ्तार धीमी है। पीएमजीएसवाई के तहत वर्ष 2014 तक कुल 522 योजनाएं स्वीकृत हुई। जिसमें 327 पूर्ण हुई, वहीं 195 योजनाएं अधूरी पड़ी है। जिसमें नावार्ड संपोषित 8 किलोमीटर बभनपुरवा-अमरा पथ, 13 किलोमीटर मोकर-भैंसही समेत कई ग्रामीण सड़क अधर में है। नासरीगंज व काराकाट प्रखंड से पीएमजीएसवाई के तहत सबसे अधिक कार्य लंबित है। कमोवेश यहीं हश्र मुख्यमंत्री सड़क योजना का भी है।
इन सड़कों में फंसा है पेंच
-रोहतास से धनसा : 28 किमी.
-धनसा से कुबा: 27 किमी.
-कुबा से अधौरा: 25 किमी
-रेहल-पीपरडीह-सारोदाग: 8 किमी.
-धनसा से नकटी भवनवा: 12 किमी
-बुधुआ से गुप्ताधाम : 10 किमी
-तारडीह से हरैया: 8 किमी
-चुटिया से बरकट्टा: 10 किमी
-चुटिया से डुमरखोह: 40 किमी
-डुमरखोह से कोन: 25 किमी
-ताराचंडी से बुधुआ: 40 किमी
पीएमजीएसवाई सड़क
एनपीसीसी: रोहतास
कुल स्वीकृत : 106
पूर्ण योजना : 99
लंबित योजना: 7
-ग्रामीण विकास विभाग
(सासाराम, एक व दो, बिक्रमगंज, डेहरी)
कुल स्वीकृत योजना : 416
पूर्ण योजना : 228
अधूरी योजना : 188