हकीकत सासाराम की : दवाई व पढ़ाई के लिए पलायन झेलना मजबूरी
जगजीवन राम की कर्मभूमि सासाराम में रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही आपका स्वागत बड़े-बड़े पोस्टर करते हैैं। चुनाव के माहौल में भी यह पोस्टर किसी राजनीतिक दल के नहीं है। आजादी के छह दशक बाद भी शहर का हर आदमी पढ़ाई और दवाई के लिए पलायन को मजबूर हैं।
सासाराम [जयप्रकाश रंजन]। देश के महान दलित नेता बाबू जगजीवन राम की कर्मभूमि सासाराम में रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही आपका स्वागत बड़े-बड़े पोस्टर करते हैैं। चुनाव के माहौल में भी यह पोस्टर किसी राजनीतिक दल के नहीं है।
ये अस्पतालों, स्कूलों और तमाम होटलों के हैैं, लेकिन ये अस्पताल, स्कूल और होटल स्थानीय सासाराम के नहीं है, बल्कि बनारस के हैैं। यह पोस्टर सासाराम की कहानी बयां करते हैैं।
आजादी के छह दशक बाद भी शहर का हर आदमी पढ़ाई और दवाई के लिए पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के शहर बनारस पर निर्भर है। जिला मुख्यालय होने के बावजूद शिक्षा व स्वास्थ्य की स्थिति बहुत ही जर्जर है और दुख की बात यह है कि इस बार भी चुनावी मुद्दा नहीं हैैं।
ऐसे समय जब एनडीए और महागठबंधन राज्य में एक-एक सीट के लिए जी जान लगाये हुए हैैं, सासाराम जिला दोनों पक्षों के लिए काफी मायने रखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सासाराम में रैली कर यह संकेत दे दिया है कि एनडीए की नजर इस जिले की सभी सातों विधानसभा सीटों पर है।
पीएम के भाषण में सबसे ज्यादा तालियां तब बजी जब उन्होंने बिहार की युवा शक्ति का सही इस्तेमाल करने की बात कही। यह तालियां इसलिए बजी क्योंकि आज सबसे ज्यादा परेशान सासाराम का युवा है।
आज भी जब बिहार के अधिकांश विश्वविद्यालयों में सत्र समय पर चल रहे हैैं यहां का वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में सत्र दो साल पीछे चल रहा है। एसपी जैन कॉलेज में इस वर्ष पीजी के लिए नामांकन भी नहीं हो पाया है।
हालात यह है कि पांचवी कक्षा के बाद से ही लोग अपने बच्चों को बनारस भेजने लगे हैैं। बनारस के दर्जनों आवासीय स्कूलों में सिर्फ सासाराम और इसके आस पास के इलाकों के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैैं।
यही हाल यहां के स्वास्थ्य क्षेत्र की है। वैसे तो बिहार में स्वास्थ्य की स्थिति पहले से ही काफी खस्ताहाल है, लेकिन सासाराम शायद यहां के सबसे खराब स्वास्थ्य मानकों वाला जिला होगा।
लिहाजा छोटे से छोटा इलाज करवाने के लिए भी लोग बनारस का रुख करते हैैं। अफसोस की बात यह है कि पिछले तमाम चुनावों की तरफ इस बार भी यहां के चुनावी माहौल में इन दोनों मुद्दों की चर्चा खास नहीं है।
सभी दलों ने जातिगत समीकरण के आधार पर उम्मीदवार खड़े किये हैैं और इसमें शायद ही किसी को आश्चर्य हो कि वोटिंग भी जातिगत आधार पर ही होगी। सासाराम से पांच बार के भाजपा विधायक जवाहर प्रसाद मानते हैैं कि इस इलाके के हजारों परिवार शिक्षा के लिए बनारस पलायन कर गये हैैं।
हालांकि उनका दावा है कि इस बार भी जीत भाजपा की होगी क्योंकि वही एक पार्टी है जो विकास करना जानती है। हर वोटर से निजी संबंध रखने का दावा करने वाले प्रसाद बताते हैैं कि उन्होंने जिंदगी में कभी राजनीति नहीं की, सिर्फ प्रेमनीति की है।
जानकारों का कहना है कि उन्होंने जीत दिलाने में उनकी कïट्टर हिंदू की छवि के साथ ही कुशवाहा जाति का वोट सबसे अहम भूमिका निभाती है। शहर में वर्ष 1990 के बाद से ही यहां सिर्फ कुशवाहा जाति के उम्मीदवार ही विजयी होते रहे हैैं।
चुनाव के करीब आने के साथ ही जिस तरह से पूरे राज्य में सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हुई हैैं, रोहतास का इलाका भी इससे अछूता नहीं है। डेहरी विधान सभा सीट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
वर्ष 2005 के बाद से यहां सिर्फ धार्मिक आधार पर वोटिंग हुई है। इस बार भी हालात ऐसे ही बनते नजर आ रहे हैैं। स्थानीय नेता और अपनी पार्टी 'राष्ट्रीय सेवा दलÓ चला रहे प्रदीप जोशी भाजपा से भी ज्यादा कट्टर छवि के हैैं।
जोशी को यहां के भाजपा नेता भी धार्मिक सद्भाव को खराब करने वाला बताते हैैं। जोशी की पत्नी रश्मि ज्योति, राजद के हुसैन और एनडीए की तरफ से यहां रिंकु सोनी के बीच मुकाबला है। नोखा विधान सभा क्षेत्र में अगड़ी जातियों का आपसी समीकरण जो करगहर में कुर्मी, राजदूत व कुशवाहा का समीकरण चलता है।