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पशुओं के लिए मौत का सामान बना कूड़े में फेंका गया पॉलीथीन

पॉलीथीन खाने वाले मवेशी की मौत तय है। पशु कच्चा खाना खाते हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jul 2017 03:09 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jul 2017 03:09 AM (IST)
पशुओं के लिए मौत का सामान बना कूड़े में फेंका गया पॉलीथीन
पशुओं के लिए मौत का सामान बना कूड़े में फेंका गया पॉलीथीन

रोहतास। पॉलीथीन खाने वाले मवेशी की मौत तय है। पशु कच्चा खाना खाते हैं। जिसके पाचन के लिए प्राकृतिक रूप ये उनका पेट चार हिस्सों में विभाजित होता है। एक में खाना स्टोर होता है, जिसे मवेशी वापस लेकर चबाते हैं, लेकिन पॉलीथीन जब पेट में जाता है, तो यह फंस जाता है। इसके चलते पेट फूल जाता है, और सांस लेने में समस्या आने लगती है। गैस न निकलने की वजह से मवेशी की मौत तक हो जाती है। स्थानीय रौजा रोड स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित प्रश्न पहर के दौरान जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ. विनोद कुमार ने पशुपालकों के सवालों के जवाब देते हुए उक्त बातें कही। प्रस्तुत है पाठकों के सवाल व डीएचओ के जवाब :

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सवाल : आजकल सड़कों पर कचरे के बीच काफी मात्रा में पॉलीथीन फेंक दिया जाता है, जिसे गाय-भैंस जैसे मवेशी अन्य पदार्थो के साथ खा लेते हैं। यह कितना नुकसानदेह है।

विमलेश प्रसाद, सासाराम

जवाब : गाय या किसी भी मवेशी द्वारा पॉलीथीन खा लेना जानलेवा है। कई लोग घर के खाने-पीने के बचे हुए सामान पॉलीथीन में बांधकर खुले में फेंक देते हैं, जिसे खाने के क्रम में मवेशी पॉलीथीन भी खा लेते हैं, जो कि कभी पचता नहीं है। आंत गरम होने से कब्जीयत होती है, और मल जमा हो जाता है। जिससे मवेशी की एक-दो माह बाद मौत निश्चित है, क्योंकि उनका पेट ब्लॉक हो जाता है और दम फूलने से उनकी मौत हो जाती है।

सवाल : बरसात में पशुओं में आमतौर पर कौन-कौन से रोग होते हैं। इसका क्या निदान है।

बालेश्वर ¨सह, डेहरी

जवाब : बरसात में अधिकतर जलजनित बीमारियां फैलती हैं, जो न सिर्फ पशुओं पर बल्कि मनुष्य पर भी अपना असर दिखाती है। आमतौर पर आजकल गलाघोंटू, लंगड़ीपेक मिक्रिमी आदि रोग फैलते हैं। इसलिए खासकर इस मौसम में ज्यादा एहतियात की जरूरत होती है। संक्रमित रोगों से बचाव के लिए पशुओं को साफ व शुद्ध जल पिलाएं। मनुष्य की तरह उन्हें भी ताजा भोजन दें। सड़ा-गला पदार्थ देने से परहेज करें। साथ ही बीमार पशुओं को झुंड से अलग रखें।

सवाल : पशु निरोग रहें, इसके लिए विभाग द्वारा कौन-कौन से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसका लाभ कैसे उठाया जाए।

प्रेम शंकर ¨सह, नेकरा

जवाब : पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए समय-समय पर टीकाकरण कार्यक्रम चलाए जाते हैं। अभी हाल ही में बुखार, दर्दनाशक, डायरिया, कृमि व खुरहा का वैक्सिनेशन हो चुका है। आगामी 18 अगस्त से पूरे जिले में गलाघोंटू व लंगड़ी बुखार के लिए टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होगा। इस कार्यक्रम का लाभ सबको मिल सके, इसके लिए डोर टू डोर संपर्क किया जाएगा। इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए अपने प्रखंड के भ्रमणशील चिकित्सा पदाधिकारी से संपर्क कर या जिला कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

सवाल : आजकल नालों में गांव के आसपास छोटे गड्ढों में गंदा पानी जमा हो जाता है, जिसे पशु पी लेते हैं। पशुओं को गंदा पानी पिलाने से क्या परेशानी होती है।

संजय कुमार, सासाराम

जवाब : पशुओं का स्वभाव है कि जब उन्हें प्यास महसूस होती है, तो कहीं भी पानी देखते ही वे अपनी प्यास बुझाने लगते हैं। इसलिए घर से उन्हें चराने के लिए ले जाते समय भरपेट शुद्ध पानी पिलाकर ही निकालें। ताकि वे बाहर का पानी न पिएं। गंदा पानी पीने से लीवर ब्लू नामक बीमारी की संभावना रहती है। इससे लीवर में कीड़ा हो जाता है, जिससे तेजी से डायरिया फैलता है। इस रोग की दवा पशु अस्पताल में उपलब्ध है।

सवाल : पशुओं की बीमारी की अवस्था में उनका इलाज झोला छाप चिकित्सकों से कराना कितना सुरक्षित है।

प्रमोद कुमार, चेनारी

जवाब : एक कहावत है नीम हकीम खतरे जान। मवेशियों के इलाज में मनुष्य के इलाज से भी ज्यादा परेशानी है। क्योंकि मनुष्य तो अपनी परेशानी बता देता है, लेकिन पशु नहीं। इसलिए उनका इलाज लक्षण देखकर किया जाता है। ऐसे में अप्रशिक्षित लोगों से इलाज कराने में लेने के देने पड़ सकते हैं।

सवाल : हरा चारा का क्षेत्र सिमटता जा रहा है और लोग कृत्रिम चारा पर निर्भर होते जा रहे हैं। पशु स्वास्थ्य के लिहाज से कितना ठीक है।

जगदीश प्रसाद,

जवाब : हरा चारा का कोई विकल्प नहीं है। इसमें प्रचुर मात्रा में मिनरल्स व विटामिन होता है। यह अलग बात है कि उसकी उपलब्धता कम होती जा रही है। इस स्थिति के लिए हम स्वयं भी जवाबदेह हैं। खेतों में गेहूं के बचे हुए डंठल को उपयोग में लाने के बदले हम जला रहे हैं। जिससे भूसा की कमी हो गई है। जबकि उसकी कटाई कर हम इस समस्या पर काबू पा सकते हैं।

सवाल : सरकारी पशु अस्पतालों में चिकित्सकों की घोर कमी है। ऐसे में पशुपालक किस तरह पशुओं के समुचित इलाज की अपेक्षा करें।

जवाब : यह सही बात है कि जिले में पशु चिकित्सक की कमी है। लेकिन उपलब्ध संसाधनों में हम बेहतर सेवा करने का प्रयास कर रहे हैं। इससे स्वास्थ्य सुविधाओं पर बहुत ज्यादा असर नहीं है। जिले के कुल 19 प्रखंडों में 36 पशु अस्पताल है। जिनके लिए चिकित्सकों के 54 पद सृजित हैं। वर्तमान में यहां 20 चिकित्सक पदस्थापित हैं। कुल 17 अस्पताल में डॉक्टर नहीं हैं, जिससे कई चिकित्सक दो-दो अस्पतालों का कार्य देख रहे हैं।

सवाल : गाय के लिए कृत्रिम गर्भाधान उचित तरीका है या सांड़ द्वारा।

बिहारी प्रसाद, गौरक्षणी

जवाब : वर्तमान परिवेश में कृत्रिम गर्भाधान सबसे उचित व सुरक्षित तरीका है। इसमें कोई दो राय नहीं है। इससे बीमारी भी नहीं फैलती व बिना भागदौड या परेशानी के अच्छे नस्ल से गर्भाधान हो जाता है। जिससे पैदा होने वाले पशुओं के बच्चे भी अच्छी नस्ल के होते हैं।

सवाल : युवाओं को रोजगार के लिए पशुपालन विभाग द्वारा कौन-कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं।

धर्मेंद्र कुमार, सासाराम

जवाब : पशुपालन विभाग द्वारा समय-समय पर पशुपालन, कुक्कुट पालन, बकरी पालन आदि के लिए प्रोत्साहन व सहायता दी जाती है। कई योजनाओं में 50 फीसद तक सब्सिडी का भी प्रावधान है। साथ ही इसके लिए ऋण भी उपलब्ध कराया जाता है। इसके लिए विभाग के कार्यालय से आकर विशेष जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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इन्होंने ने भी पूछे प्रश्न :

डेहरी से मंगल ¨सह, दिनेश प्रसाद, नोखा से विनोद कुमार, शिवसागर से प्रमोद तिवारी, सासाराम से राकेश कुमार, सूरज प्रसाद, शशिकांत झा, निर्मल ¨सह, बिक्रमगंज से सिद्धेश्वर प्रसाद


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