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हमारी फसलों नहीं, अपनी नस्लों पर ¨चता करो मेट्रो सिटी वालों..

पूर्णिया [अमितेष]। दैनिक जागरण के अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में देश के युवाओं में बढ़ र

By Edited By: Published: Sun, 29 May 2016 09:58 PM (IST)Updated: Sun, 29 May 2016 09:58 PM (IST)
हमारी फसलों नहीं, अपनी नस्लों पर ¨चता करो मेट्रो सिटी वालों..

पूर्णिया [अमितेष]। दैनिक जागरण के अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में देश के युवाओं में बढ़ रही पाश्चात्य संस्कृति की चलन व मेट्रो सिटी कल्चर पर श्री सुरेंद्र दुबे ने जोरदार व्यंग्य किया। कहा हमारी फसलें नष्ट होने पर ¨चता करने वालों संभल जाओ, मौसम साथ देगा तो अगली बार फसल लहलहा जाएगी। एक बार फसल नष्ट होगी तो क्या होगा, हम किसी तरह बसर कर लेंगे। मेट्रो सिटी की रंगीनियत और चकाचौंध भरी लाइफ स्टाइल वालों, खुद की ¨चता करो, तुम्हारी नस्लें बर्बाद हो रही है।

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- दुनिया को तीन-तीन धर्म व पहला गणतंत्र देने वाला बिहार का रहा गौरवशाली अतीत

बिहार के गौरवशाली अतीत की सुरेन्द्र दुबे ने बखान किया। उन्होंने कहा कि दुनिया को तीन-तीन धर्म और पहला गणतंत्र देने वाला बिहार को यहां के नेताओं ने गर्त में धकेला। आज भी पाटलिपुत्र की धरती इतनी समृद्ध है कि सुनहरा भविष्य खुद लिख सकती है। भगवान बुद्ध, महावीर और गुरू गो¨वद ¨सह का जन्म बिहार की इसी पावन धरती पर हुआ था, दुनिया का पहला लोकतंत्र वैशाली भी बिहार की हृदयस्थली में बसा है। श्री दुबे ने देश के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, बाबा नागार्जुन, दिनकर, गोपाली ¨सह नेपाली, जयप्रकाश नारायण की मातृभूमि बिहार को नमन किया।

- पाश्चात्य संस्कृति बिगाड़ रही हमारी पीढ़ी को

मौजूदा परिवेश पर भी कटाक्ष करते हुए कहा कि ये अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने से आपके बच्चों को रोजगार, पैकेज, उद्योग सबकुछ मिल सकता है लेकिन बिहार में इतनी ताकत है कि आपके बच्चे को संस्कार दे सकता है। पहले के जमाने में बूढ़े़-बुजुर्गों को दरवाजे पर बिठाया जाता था ताकि कुत्ता घर में नहीं प्रवेश करे, आज हालात ऐसे बन गए हैं कि कुत्ता को दरवाजे पर बिठाकर रखा जाता है कि बुजुर्ग मां-बाप अंदर नहीं आ सके। पारिवारिक संस्कार व माहौल पर तल्ख टिप्पणी करते हुए श्री दुबे ने कहा कि पहले के समय में शादी-ब्याह के मौके पर घर की महिलाएं खाना बनाती थी और बाहर से भाड़े पर नाचने वालियों को बुलाया जाता था। वहीं अब के समय में भाड़े पर खाना बनाने वाले बुलाए जाते हैं और घर की महिलाएं नाचती है।

नेता चल, दिल्ली चल, टोपी लगा, नेता बन, मंत्री बन घोटाला कर, हवाला कर, जेल जा, वापस टोपी पहन, मंत्री बन। दो-दो शब्दों की तुकबंदी से पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे ने वर्तमान राजनीति पर गहरी चोट की। सत्ता व सियासत से लेकर व्यवस्था पर चोट करते हुए श्री दुबे ने इन ेसबके लिए राजनेताओं को दोषी माना। साथ ही उन्होंने इसके लिए जिम्मेवार देश की सवा सौ करोड़ जनता को भी कहा।


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