कश्मीर किसी के अब्बा की जागीर नहीं होने वाली..
पूर्णिया [प्रशांत कुमार]। ''काश्मीर में एक विदेशी देश दिखाई देता है, संविधान को ठुकराना
पूर्णिया [प्रशांत कुमार]। ''काश्मीर में एक विदेशी देश दिखाई देता है, संविधान को ठुकराना पर देश दिखाई देता है, ये घाटी में भारत के झंडो को रोज जलाते हैं, सेना पर हमला करते हैं खूनी पाक मनाते हैं, हम दिल्ली की खामोशी पर शर्मिंदा रह जाते हैं भारत मुर्दाबाद बोलकर वे ¨जदा रह जाते हैं जब चौराहों पर हत्यारे महिमा मंडित होते हों, भारत मां के मर्यादे के मंजर खंडित होते हों, भारत के नारे हो गुलमर्ग के गलियों में, शिमला समझौता चलता हो बंदूक के नलियों में, अब केवल आवश्यकता है केवल खुद्दारी में दिल्ली केवल दो दिनों की मोहलत दे दे तैयारी की, सेना को देश थमा दो बाकी गैर नही होगी, जहां तिरंगा नहीं मिलेगा उनकी खैर नहीं होगी, बर्मा बंगलादेश तलक सीमा पर रहते-रहते, और हमारे नेता चूड़ी पहन के बैठे रहते, दिल्ली डरी-डरी रहती है, पाक-चीन के बॉर्डर पर, सेना बांधे हाथ खड़ी रहती है जाने किसके ऑर्डर पर, दुनिया को एहसास कराओ हम नहीं डर सकते हैं, हम भी ईंटों का जवाब पत्थर से दे सकते हैं, अब तो वक्त बदलना सीखों डर-डर के जीने का, दुनिया को एहसास कराओ 56 इंच सिने का, सैनिक अपने प्राण गंवा कर देश बड़ा कर जाता है, बलिदानों की बुनियादों पर राष्ट्र खड़ा कर जाता है, जिनको मां के मेधावी बेटों से प्यार नहीं होगा उनको तिरंगा लहराने का अधिकार नहीं होगा, ¨सहासन का माने होता है ¨सहों का असल रूप, कायरता से दूर हटो संकल्पों का अनुशासन हो, राजमहल के आचरों से गंघ हवा में जाती है, राजा कायर हो तो बिल्ली ¨सहों को धमकाती है, भारत एक अखंड राज है, सेना हमारी ताकत है, कोई हमें आंख दिखाये किसकी ये हिमाकत है, दुनिका के हर सिकन्दर को ये भाषा समझा दो, अब खंडित भारत मां की तस्वीर नहीं होने वाली, कश्मीर किसी के अब्बा की जागीर नहीं होने वाली'' देश के प्रतिष्ठित कवि डा. हरि ओम पवार द्वारा पेश किये गये इस भरे देश प्रेम की कविता से समापन हुए दैनिक जागरण द्वारा प्रस्तुत अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में शनिवार को श्रोताओं ने जमकर हास्य व्यंग्य का लुत्फ उठाया और खूब ठहाके लगाये। कार्यक्रम में हास्य व्यंग्य के महारथी पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे ने भी लोगों को अपने हास्य काव्य से अपने इस खास अंदाज में उपस्थित दर्शकों को खूब गुदगुदाए और भरपूर तालियां भी बटोरी। वहीं कवियित्री डॉ. सुमन दुबे ने भी अपने गजल व कविता से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जब तक कार्यक्रम समाप्त नहीं हो गया अपनी कुर्सी छोड़ने को राजी ही नहीं थे। कवि मनजीत ¨सह, महेन्द्र सौलंकी, महेन्द्र अजनवी ने भी अपने हास्य व्यंग से श्रोताओं को भरपूर मनोरंजन कराया और तालियां भी बटोरी। पूरा कला भवन परिसर तालियों की गड़गराहट से गूंज रहा था। कवियों ने राजनेता व पुलिसवाले पर भी कई हास्य व्यंग के बाण चलाये जिससे श्रोताओं को हंसने के लिए मजबूर कर दिया और लोग हंस हंसकर लोट-पोट हो गए।